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MP में पैरामेडिकल शिक्षा बेपटरी: 5 साल में भी डिग्री नहीं, 2025 का सत्र अब तक शुरू नहीं

Medical Education in MP: मध्य प्रदेश में नर्सिंग के बाद अब पैरामेडिकल शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बेपटरी हो गई है, जहां 3 साल के कोर्स को पूरा करने में छात्रों को 5 साल लग रहे हैं. साल 2021 बैच के छात्र आज भी अपनी डिग्री का इंतजार कर रहे हैं, वहीं प्रदेश में 2025 का नया सत्र और दाखिला प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हो पाई है. एनडीटीवी की इस विशेष रिपोर्ट में पढ़ें कैसे हजारों छात्रों का भविष्य अधर में लटका दिया है.

MP में पैरामेडिकल शिक्षा बेपटरी: 5 साल में भी डिग्री नहीं, 2025 का सत्र अब तक शुरू नहीं

Paramedical Student MP: मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा की स्थिति एक के बाद एक घोटालों और अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ती जा रही है. व्यापम और नर्सिंग कॉलेज घोटाले के बाद अब राज्य की पैरामेडिकल शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बेपटरी हो चुकी है, जिससे हजारों छात्रों का भविष्य अंधकार में है. साल 2020 से शुरू हुई यह बदहाली अब इस कदर बढ़ गई है कि सत्र, परीक्षा और नतीजे सब कई साल पीछे चल रहे हैं. सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि 2021 बैच के छात्र आज भी अपनी डिग्री का इंतजार कर रहे हैं, जबकि 2025 का नया सत्र और दाखिला प्रक्रिया अब तक अधूरी पड़ी है.

खंडवा से उठी विरोध की आवाज

मध्य प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों तक में हालात संतोषजनक नहीं हैं. खंडवा के शासकीय नंद कुमार सिंह चौहान मेडिकल कॉलेज के छात्र खुलकर अपनी पीड़ा बता रहे हैं. Bachelor of Medical Laboratory Technology (BMLT) की छात्रा खुशी पटेल का कहना है कि सत्र इतना लेट है कि उनके सपने समय से पहले ही दम तोड़ रहे हैं. वहीं छात्र मरीन गिनवा का कहना है कि 2021 में आए उनके सीनियर्स का ग्रैजुएशन 2025 में भी पूरा नहीं हो पाया है. दूसरे शब्दों में कहें तो 3 साल के कोर्स में 5 साल लगना अब यहां की नई नियति बन गई है.

243 कॉलेजों में पढ़ाई ठप

दरअसल पूरे प्रदेश में सिस्टम के बोझ तले छात्र दबे हुए हैं. राज्य में करीब 243 पैरामेडिकल संस्थान हैं जहां लैब टेक्नीशियन, रेडियोलॉजी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी और फिजियोथेरेपी जैसे महत्वपूर्ण कोर्स संचालित होते हैं.

इन संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र सिस्टम की लेटलतीफी से सीधे प्रभावित हो रहे हैं. जिम्मेदारों का तर्क है कि पैरामेडिकल काउंसिल ने कॉलेजों की मान्यता देने में बहुत देर की, जिसका असर मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर की संबद्धता प्रक्रिया पर पड़ा. इसी खींचतान में छात्रों का कीमती समय बर्बाद हो रहा है.

अधिकारियों के दावे और हकीकत

मप्र आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (जबलपुर) के कुलपति अशोक खंडेलवाल और रजिस्ट्रार पुष्पराज का कहना है कि अब चीजें नियमित हो रही हैं. उनके मुताबिक, काउंसिल से मान्यता मिलने के आधार पर विश्वविद्यालय ने संबद्धता दे दी है और भविष्य में सत्रों को समय पर लाने की कोशिश की जा रही है. दूसरी तरफ उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार भी जल्द सब कुछ ठीक होने का आश्वासन दे रहे हैं, लेकिन हकीकत में 2025 बैच कब शुरू होगा, इसकी कोई स्पष्ट जानकारी अभी भी नहीं है.

स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ पर संकट

विशेषज्ञों का मानना है कि पैरामेडिकल सेक्टर किसी भी अस्पताल की रीढ़ की हड्डी होता है. यदि लैब टेक्नीशियन और फिजियोथेरेपिस्ट जैसे प्रशिक्षित कर्मियों की पढ़ाई समय पर पूरी नहीं होगी, तो आने वाले समय में अस्पतालों में भारी कमी देखी जा सकती है. इसका सीधा नुकसान मरीजों को होगा, क्योंकि बिना टेक्नीशियन के जांच और इलाज की प्रक्रिया अधूरी है.

हालांकि एक पक्ष ये भी है कि हाईकोर्ट की रोक और बैकडेट में मान्यता का खेल इस पूरी अव्यवस्था के बीच मामला अब कानूनी दांव-पेंच में भी फंस गया है. हाल ही में हाईकोर्ट ने पैरामेडिकल प्रवेश प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. अदालत में दाखिल याचिका के अनुसार, 2023 में कई कॉलेजों को बैकडेट में मान्यता दी जा रही है. सबसे बड़ी विडंबना यह है कि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ. राजेंद्र शुक्ला, जो पैरामेडिकल काउंसिल के पदेन चेयरमैन हैं, उनके नेतृत्व के बावजूद यह देरी और अनियमितताएं जारी हैं. छात्र अब केवल यह पूछ रहे हैं कि क्या उन्हें उनकी डिग्री समय पर मिल पाएगी या उनका पूरा करियर सिस्टम की भेंट चढ़ जाएगा?
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