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This Article is From Mar 08, 2019

राजनीति में आने से पहले 'लिट्टी-चोखा' बेचना चाहते थे अखिलेश यादव, पढ़ें- दिलचस्प किस्सा

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अपने दोस्तों की तरफ मुड़े. कहा, "हमें भी यहां यहां किसी बिजनेस के बारे में सोचना चाहिए. क्यों न मैकडोनाल्ड के बर्गर की तरह लिट्टी चोखा की चेन शुरू करें''

राजनीति में आने से पहले 'लिट्टी-चोखा' बेचना चाहते थे अखिलेश यादव, पढ़ें- दिलचस्प किस्सा
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) लिट्टी-चोखा का चेन शुरू करना चाहते थे.
नई दिल्ली:

साल 1996. 23 साल के युवा अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) उस वक्त ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में पढ़ाई कर रहे थे. अखिलेश को लोगों से मिलना और नई जगहों को एक्सप्लोर करना खूब पसंद था. एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ घूमने निकले थे और इसी दौरान उन्होंने नोटिस किया कि सिडनी में कैसे फास्ट फूड चेन तेजी से फैलती जा रही हैं. अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) थोड़ी देर सोचते रहे. गहरी सांस ली और अपने दोस्तों की तरफ मुड़े. कहा, "हमें भी यहां यहां किसी बिजनेस के बारे में सोचना चाहिए. क्यों न मैकडोनाल्ड के बर्गर की तरह लिट्टी चोखा की चेन शुरू करें! मुझे पक्का पता है कि यह बहुत पॉपुलर होगा". पढ़ाई के दौरान अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने राजनीति में आने के बारे में सोचा भी नहीं था. जब उनके दोस्त पूछते तो अखिलेश यही कहते कि वो आगे एनवायरमेंट इंजीनियरिंग में ही करियर बनाएंगे. उस वक्त शायद उन्हें भी अंदाजा नहीं था कि कुछ सालों बाद वे देश के सबसे बड़े सूबे की सियासत की अहम कड़ी बनने वाले हैं. 

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दोस्त ने पूछा, तो कहा- पिता किसान हैं...
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) जब सिडनी में पढ़ाई कर रहे थे तो उनकी मुलाकात लखनऊ के ही रहने वाले चंद्रशेखर से हुई. दरअसल, अखिलेश हॉस्टल छोड़ना चाहते थे और उन्हें किसी पीजी की तलाश थी. जब अखिलेश ने अपने एक दोस्त से इसका जिक्र किया तो उन्होंने चंद्रशेखर का नंबर दे दिया. अखिलेश (Akhilesh Yadav) ने चंद्रशेखर से फोन पर बात की और अपना संक्षिप्त परिचय दिया, लेकिन अपना राजनीतिक परिचय छिपा लिया. वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरोन अखिलेश की बायोग्राफी ''अखिलेश यादव : विंड्स ऑफ चेंज'' में लिखती हैं कि, 'जब अखिलेश पहली बार चंद्रशेखर से मिलने पहुंचे तो पहली ही नजर में चंद्रशेखर को अखिलेश (Akhilesh Yadav) की शक्ल-सूरत तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव से मिलती-जुलती लगी. वैसी ही नाक...वैसी ही चाल-ढाल. हालांकि अखिलेश से जब इसका जिक्र किया तो वह टाल गए. सिर्फ इतना ही कहा कि उनके पिता एक 'किसान' परिवार से ताल्लुक रखते हैं. बहुत बाद में उन्होंने चंद्रशेखर (जिसे प्यार से चंद्रू कहने लगे थे) को अपनी राजनैतिक पहचान के बारे में बताया. 

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पढ़ाई के दौरान एक-एक कौड़ी गिनते थे 
सुनीता एरोन अपनी किताब ''अखिलेश यादव : विंड्स ऑफ चेंज'' में लिखती हैं कि अखिलेश यादव पर्स नहीं रखते थे. ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई के दौरान बेहद कंजूसी से रहते और बहुत कम पैसों में अपना खर्च चलाते थे. अखिलेश (Akhilesh Yadav) के जिगरी दोस्तों में शुमार चंद्रशेखर बताते हैं, 'सिडनी में रहने के दौरान अखिलेश कभी-कभार ही शॉपिंग के लिए जाते थे. मेरा हफ्ते का खर्च 120 डॉलर था, जबकि अखिलेश 90 डॉलर से भी कम में काम चला लेते थे. वह एक-एक कौड़ी गिनते रहते थे. यहां तक कि उन्होंने मोबाइल फोन भी नहीं रखा था. लैंडलाइन के जरिये ही घर पर बात किया करते थे''. चंद्रशेखर आगे कहते हैं, 'जब मैं मोबाइल खरीदकर लाया तो अखिलेश (Akhilesh Yadav) बोले, ''देखना एक दिन यह भारत के गावों की तस्वीर बदल देगा''. 

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