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This Article is From Apr 16, 2019

ओम प्रकाश राजभर के बागी तेवर : बीजेपी की हालत सांप-छछूंदर जैसी, न निगलते बन रहा और न उगलते

2014 के गठबंधन ने ओम प्रकाश राजभर और बीजेपी दोनों को सत्ता तक पहुंचाया.  इसके बाद  ओम प्रकाश राजभर की पार्टी से 2017 के विधानसभा में भी गठबंधन हुआ.  बीजेपी ने भासपा को 8 सीटें दी थी.  जिनमें 4 सीटों पर जीत मिली और इसके साथ ही सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी का पहली बार विधानसभा में खाता भी खुला और ओम प्रकाश कैबिनेट मंत्री बने.

ओम प्रकाश राजभर के बागी तेवर : बीजेपी की हालत सांप-छछूंदर जैसी, न निगलते बन रहा और न उगलते
पीएम मोदी और अमित शाह (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव के बीच में ही उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर  के  एक बार फिर बगावती  तेवर सामने आये हैं.  इस बार तो इन्होने गठबंधन से अलग पूर्वांचल की 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया है.  उनकी इस घोषणा के बाद बीजेपी सकते में हैं वह अपने नफ़ा नुकसान का भी आकलन कर रही है. एक यह भी कयास लगाया जा रहा है कि नाराज़ ओम प्रकाश को बीजेपी आखिरी तक मना लेगी क्योंकि पूर्वांचल में बीजेपी के लिये अपना दल के बाद भासपा यानी ओम प्रकाश राजभर की पार्टी बड़े मायने रखती है. इन्ही दो पार्टियों की कश्ती पर सवार होकर बीजेपी न सिर्फ 2014 में उत्तर प्रदेश में 73 सीट के रिकार्ड आंकड़े तक पहुंची थी बल्कि  2017 के विधानसभा में सूबे की सत्ता तक पहुंचने में भी कामयाब हुई थी. विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में राजभरों के वोटों के प्रतिशत से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. राजभर बिरादरी का पूर्वांचल में बड़ा वोट बैंक है.  2012 के चुनावों में बलिया, गाज़ीपुर, मऊ, वाराणसी में इनकी ताकत दिखी थी. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश ने गाज़ीपुर की ज़हूराबाद सीट पर 49600 वोट हासिल किए थे.

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पार्टी को बलिया के फेफना में 42000, रसडॉ में 26000, सिकंदरपुर में 40000 बेल्थरा रोड में 38000 वोट मिले. गाज़ीपुर, आज़मगढ़ , वाराणसी में भी पार्टी उम्मीदवारों ने 18 से 30 हज़ार वोट बटोर.  लेकिन  कोई सीट जीतन में कामयाब नहीं हो पाई थी. लेकिन इन सीटों पर मिले वोट बताते हैं कि यह समीकरणों को किस तरह से बिगाड़ सकते हैं.  अब इन वोटों के जरिये सत्ता का मजा चखने के लिये ओम प्रकाश राजभर को किसी मज़बूत कंधे की ज़रूरत थी और भाजपा को भी.  लिहाजा 2014 के गठबंधन ने ओम प्रकाश राजभर और बीजेपी दोनों को सत्ता तक पहुंचाया.  इसके बाद  ओम प्रकाश राजभर की पार्टी से 2017 के विधानसभा में भी गठबंधन हुआ.  बीजेपी ने भासप को 8 सीटें दी थी.  जिनमें 4 सीटों पर जीत मिली और इसके साथ ही सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी का पहली बार विधानसभा में खाता भी खुला और ओम प्रकाश कैबिनेट मंत्री बने.

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इस सफलता के बाद 2019 का लोकसभा का चुनाव नजदीक आ गया तो ओम प्रकाश राजभर ने तकरीबन साल भर पहले से ही विरोधी तेवर दिखाने लगे  और इस बार वो अपनी पार्टी के लिये 31 टिकट की मांग करने लगे.  बीजेपी ने उनकी बात तो नहीं मानी लेकिन चुनाव के घोषणा से एक दिन पहले उनकी पार्टी के तकरीबन 9 लोगों को अलग-अलग आयोगों का उपाध्यक्ष और अध्यक्ष बना कर राज्य मंत्री का दर्ज़ा दिया.  जिसके बाद उनका बागवती तेवर शान्त हो गए  लेकिन फिर वह लोकसभा की 2 सीटें मांग रहे हैं. जिसे बीजेपी ने नहीं दिया यहां तक कि जिस घोसी सीट पर वो अपनी पार्टी के सिम्बल से लड़ना चाह रहे थे वहां भी  उन्हें बीजेपी ने अपने सिम्बल से लड़ने का  ऑफर दिया.  जिसके बाद फिर से ओम प्रकाश राजभर भड़क गये और अब  अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया.

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ओपी राजभर की पार्टी की पूर्वांचल सहित प्रदेश के 15 जिलों में अच्छी-खासी ताकत है.  पिछले चुनाव में उनके वोटों की ताक़त भी कई सीटों पर 18 से 45 हज़ार के आसपास दिखाई पड़ी.  अगर ओम प्रकाश राजभर अलग लड़ते हैं तो पूर्वांचल में बीजेपी का गणित कई सीटों पर बिगड़ सकता है. इस बात को ओम प्रकाश राजभर भी बाखूबी समझते हैं इसलिये वह बार-बार ऐसी नूरा कुश्ती भी करते हैं.  ओम प्रकाश राजभर को लेकर बीजेपी की स्थिति  सांप-छछूंदर जैसी हो गई  हैं जो न निगलते बन रहे हैं न उगलते.

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