उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट (Amethi Lok Sabha Constituency) 'गांधी परिवार' का मजबूत गढ़ मानी जाती रही है. पहले संजय गांधी और उनके निधन के बाद राजीव गांधी ने लोकसभा में अमेठी की नुमाइंदगी (Amethi Seat) की. वहीं, 1999 में सोनिया गांधी भी यहां से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचीं. साल 2004 में कांग्रेस ने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अमेठी से मैदान में उतारा और उन्होंने जीत हासिल की. फिर 2009 और 2014 में भी वह यहां से सांसद चुने गए. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेठी (Amethi Seat) में कांग्रेस कितनी मजबूत है. हालांकि केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी, कांग्रेस के इस मजबूत किले पर कब्जा जमाने के लिए भरसक प्रयास कर रही है और इस बार भी केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को यहां से मैदान में उतारा है. 2014 में भले ही स्मृति ईरानी को अमेठी में हार का सामना करना पड़ा हो, लेकिन वह लगातार यहां सक्रिय रही हैं और पार्टी की जमीन मजबूत करती रही हैं. जिसका नतीजा भी दिख रहा है. स्मृति ईरानी (Smriti Irani) के नामांकन में अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली. इससे कांग्रेस का चिंतित होना स्वभाविक है, लेकिन इस बार अमेठी में सपा और बसपा ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है. जिससे कांग्रेस को एक तरीके से 'वॉक ओवर' मिल गया है.
सपा-बसपा की वजह से कांग्रेस का पलड़ा भारी
समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस बार कांग्रेस को परोक्ष रूप से समर्थन देते हुए अमेठी में अपना उम्मीवार नहीं उतारा है. आंकड़ों पर गौर करें तो अमेठी (Amethi News) में सपा के मुकाबले बसपा ज्यादा मजबूत नजर आती है और पिछले चुनावों तक यहां से प्रत्याशी उतारती रही है. 2014 में अमेठी से बसपा के उम्मीदवार को 50 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. जबकि 2009 और 2004 में एक लाख के आसपास. वहीं, सपा ने आखिरी बार 1999 में इस सीट से अपना उम्मीदवार उतारा था, जिसे मात्र 16 हजार के आसपास वोट ही मिले थे. इससे पहले 1998 में सपा के प्रत्याशी को 30 हजार के आसपास और 1996 में 80 हजार के करीब वोट मिले थे.
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सपा-बसपा के मतदाता बन सकते हैं कांग्रेस का सहारा
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने साल 2004 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से करीब 2.90 लाख वोट से जीत दर्ज की थी, जबकि 2009 में जीत का अंतर करीब 3.70 लाख था. लेकिन 2014 के चुनाव में जीत का अंतर घटकर 1.07 लाख आ गया. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को जहां 408,651 वोट मिले थे, वहीं बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी (Smriti Irani) ने उन्हें कड़ी टक्कर दी और 300,748 वोट हासिल किये. पिछले बार के आंकड़े बताते हैं कि इस बार अमेठी में राहुल गांधी की राह आसान नहीं है, लेकिन पार्टी के लिए संतोषजनक बात यह है कि सपा-बसपा का प्रत्याशी न होने की वजह से उसका पलड़ा भारी है. पुराने आंकड़ों को देखें तो सपा और बसपा मिलकर अमेठी में एक से डेढ़ लाख मतदाताओं को प्रभावित करती रही हैं और इस बार दोनों पार्टियां कांग्रेस के साथ खड़ी हैं. अगर सपा-बसपा के परंपरागत मतदाताओं में से 50 प्रतिशत मतदाता भी कांग्रेस के पक्ष में खड़े होते हैं, तो उसका पलड़ा भारी होना लाजिमी है.
15 में से 13 बार कांग्रेस ने दर्ज की है जीत
अब तक हुए कुल 15 चुनावों में से 13 बार कांग्रेस के प्रत्याशी अमेठी से जीतते रहे हैं. अमेठी में पहली बार 1967 में चुनाव हुआ था, जब कांग्रेस के विद्याधर बाजपेयी ने जीत हासिल की थी, और वही 1971 में भी जीते. एमरजेंसी के बाद 1977 में हुए अगले चुनाव में जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह ने इस सीट पर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन 1980 में इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी को यहां से लड़ाया गया, और वह जीते. उनके निधन के बाद उनके बड़े भाई राजीव गांधी को इस सीट पर उपचुनाव लड़वाया गया, और 1991 में अपने निधन तक वह चार बार इस सीट से सांसद रहे. राजीव के निधन के बाद गांधी परिवार के करीबी सतीश शर्मा इस सीट पर दो बार चुनाव जीते, लेकिन 1998 में BJP के संजय सिंह ने इस सीट पर कब्ज़ा कर लिया. हालांकि यह कब्ज़ा लम्बा नहीं चला, और अगले ही साल दिवंगत राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने इस सीट से चुनाव लड़ा, और जीत गईं. उसके बाद वर्ष 2004 में राजीव और सोनिया के पुत्र तथा कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी सीट से प्रत्याशी बनाया गया, और तब से लगातार वह जीतते आ रहे हैं.
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