लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election 2019) के लिए चुनावी प्रचार के दौरान बिहार के दरभंगा में कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री की रैली का एक वीडियो सामने आया था, जिसमें अपना भाषण समाप्त करने के बाद पीएम मोदी (PM Modi) और मंच पर मौजूद सभी नेता वंदे मातरम का नारा लगा रहे हैं, लेकिन NDA के अहम सहयोगी नीतीश कुमार (Nitish Kumar) इस भीड़ से दूर चुपचाप बैठे रहे. दरअसल, बिहार के दरभंगा में भाजपा-जेडीयू (BJP-JDU) की एक संयुक्त रैली हुई, जिसमें पीएम मोदी (PM Modi) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक साथ मंच पर थे, मगर जब वंदे मातरम का नारा लगाया गया, तब सभी नेता और सभा में मौजूद भीड़ ने मुठ्ठी बांधकर और हाथ ऊपर उठाकर वंदे मातरम का नारा लगाया, मगर नीतीश कुमार चुपचाप बैठे रहे. सोशल मीडिया पर नीतीश कुमार इसे लेकर काफी ट्रोल हो रहे हैं. इसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. यह भी सवाल उठा रहे हैं कि क्या बीजेपी इस नारे से नीतीश कुमार सहज महसूस नहीं कर रहे हैं? क्या वो इस नारे से सहमत नहीं हैं? इस मुद्दे के साथ-साथ केसी त्यागी ने धारा 370, यूनिफार्म सिविल कोड, चुनाव आयुक्त पर उठ रहे सवाल और राम-मंदिर के मुद्दे पर बात की.
सर आप ने कहा कि नरेंद्र मोदी NDA के नेता हैं और BJP मतलब नरेंद्र मोदी हैं, न गिरिराज सिंह, न प्रज्ञा सिंह ठाकुर जैसे आवारा नेता?
देखिए 40-45 साल से हम जनसंघ के साथ और भारतीय जनता पार्टी के साथ गैर कांग्रेसवादी राजनीति से जुड़े रहे. जिस तरह की भाषा इस समय कुछ लोग आजकल बीजेपी की आड़ में या उसका अनुसांगिक संगठन में होने की नातिर बोलते हैं वो आपत्तिजनक है, वो गलत है और हम उसको सही नहीं मानते हैं.
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सर नीतीश कुमार जी क्या वंदे मातरम और भारत माता की जय जैसे नारे से सहज महसूस नहीं कर रहे हैं? आपने देखा होगा दरभंगा की एक रैली में जब नरेंद्र मोदी यह नारा लगा रहे थे तब नीतीश चुपचाप बैठे हुए थे. उनकी तरफ से कोई रिएक्शन नहीं था. क्या वो ऐसे नारे से सहमत नहीं हैं?
समाजवादी आंदोलन में हम कार्यक्रमों के नारे लगाते थे. लोहिया जी के आंदोलन में भी और जेपी जी के 74 आंदोलन में भी, जो नारे हमारे दिल के और जज्बातों के करीब है. हमारे नारे थे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब के घर मे है महंगाई. महंगाई और भ्रष्टाचार है सत्ता सब की ज़िम्मेदार है. भारत माता की जय या वंदे मातरम से हमे परहेज नहीं है, लेकिन यह किसी पे थोपने की वजाय जो लगाना चाहते हैं उन्हें लगाने दे और जो न लगाने चाहते हैं उन्हें न लगाने दे. यह राष्ट्रीयता के प्रतीक के रूप में माने जाएंगे या राष्ट्र के राष्ट्रीयता के रूप में माने जायंगे ऐसा हम नहीं मानते हैं. वंदे मातरम आज़ादी के आंदोलन में उन मतवालों के मुहं से भी निकला है जो फांसी पर भी चढ़े, जिह्नोने यातनाएं भी सही सही, तकलीफ़ें भी सही. इसीलिए यह नेशनलिस्ट को भी छोड़ देना चाहिए. जैसे इस्लाम के अंदर है उनका मज़हब जो है वो किसी और चीज को पूज्य मानने को तैयार नहीं हैं. जो मुस्लिम बोलना चाहते हैं बोले. आज़ादी की लड़ाई में, 71 की लड़ाई में भी, करगिल में भी, 65 के युद्ध में भी प्रॉमिनेंट मुस्लिम ने जान दी. अगर वो वंदे मातरम की जगह देश की जय बोलना चाहते हैं मैं उसमें कोई गलती नहीं मानता हूं.
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आप को लगता है इस नारे के जरिये वोटर को लुभाने की कोशिश की जाती है? जो हिन्दू वोटर्स है उन्हें इमोशनली ब्लैकमेल किया जाता है?
भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों और जनसंघ के कार्यक्रम में यह नारे चलते रहे हैं क्योंकि हम उनके साथ काम किए हैं. आपातकालीन जेल में भी संघ के और भारतीय जनसंघ कार्यक्रमों में नारा लगते हैं. हमें ऐतराज नहीं, लेकिन हम एनडीए के सयुंक्त कार्यक्रम का हिस्सा नहीं हैं यह हम कहना चाहते हैं.
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370 आर्टिकल को लेकर भी कई सवाल उठाए जा रहे हैं?
जवाब: जनता पार्टी में भी आर्टिकल 370 था जिसमें भारतीय जनता पार्टी और भारतीय जनसंघ उसका हिस्सा थी. आप 1977 का जनता पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र निकालिए जिसमें अटल जी भी थे, आडवाणी जी भी थे, नाना जी देशमुख भी थे. उस घोषणापत्र में लिखा है हम आर्टिकल 370 के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे.
बीजेपी का कहना है अगर वो पावर में आएगी तो आर्टिकल 370 को हटा देंगे?
भारतीय जनता पार्टी को अपनी विचारधारा प्रसारित और प्रचारित करने का पूरा अधिकार है. उसी तरह हमें समाजवादियों को भी असहमति रखने का पूरा अधिकार है. आर्टिकल 370 पर हमारी राय भिन्न है. यूनिफॉर्म सिविल कोड पर हम भिन्न हैं. अयोध्या विवाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला माना जाए. हम कोई और फैसला स्वीकार नहीं. करते हैं. उस पर हमारी राय भिन्य है फिर भी हम साथ काम करते हैं.
EC को लेकर भी कई सवाल उठाए जा रहे हैं. आपने देखा होगा लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव आयोग कोई करवाई नहीं कर रही है. कई जगह एयर स्ट्राइक को लेकर वह भाषण देते हैं या वोट मांगते हैं, लेकिन EC विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई तो करती है मोदी जी के खिलाफ क्यों नहीं करती है?
देखिए जो लोग यह आरोप लगा रहे हैं वो देश के कर एक मुख्य चुनाव आयुक्त जो रिटायर्ड हो गए थे उन्हें अपनी पार्टी की सदस्यता दिलाई. राज्यसभा का सांसद बनाया फिर मिनिस्टर बनाया. अगर कांग्रेस पार्टी ने कोई ऐसे गलती नहीं की है तो वो भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाने के लिए स्वतंत्र हैं. जो मुख्य चुनाव आयुक्त को अपने सरकार में मंत्री बनवा दिया. उस समय उसकी तठस्थ का कार्य कर रही होगी. इसीलिए कांग्रेस पार्टी के इस आरोप को मैं सीरियसली खारिज करता हूं.
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अगर कांग्रेस ने गलती की है तो क्या यहां पर भी गलती हो रही है?
यह भी एक संवैधानिक संस्था है और जो विपक्षी दल होते हैं आमतौर पर अपनी मर्जी के फैसले करवाने के लिए चुनाव आयुक्त के पास जाते हैं. जब ऐसे फैसले नहीं हो पाते हैं तब उनको दिक्कतें होती हैं.
लेकिन आपको भी लगता है EC की क्रेडिबिलिटी को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं उस पर सोचना चाहिए?
हमारी सारी ज़िंदगी तो कांग्रेस पार्टी के समय पे जो चुनाव थे उनसे लड़ते हुए ही चली गई.
लेकिन अब आप नहीं लड़ रहे हैं?
अगर अब कोई गलत बात होती है तो हम लड़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन चुनाव आयोग को तटस्थ होना चाहिए. उसे स्वाबलंबी होना चाहिए और बगैर भेदभाव फैसले करना चाहिए. यह लोकतांत्रिक मर्यादायों का उस पर भी तकाजा है.
एयर स्ट्राइक को लेकर आजकल वोट मांगे जा रहे हैं, क्या आपको लगता है यह सही है?
पुलवामा में जो लोग शहीद हुए हैं उसकी तारीख न बीजेपी ने तय की न नरेंद्र मोदी जी ने तय की. यह एक आफ़त आई थी भारत के सैनिकों पर जिसका भारत की सेना ने शौर्य के साथ और स्वाभिमान के साथ जवाब दिया. सेना की इस पराक्रम की तारीफ करना कोई जुर्म नहीं, लेकिन इसकी आड़ में सरकार की इस बात पर आलोचना की जाए कि सरकार ने यही वक्त क्यों चुना जवाब देने के लिए यह भी तर्कसंगत नहीं है.
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क्या इसके नाम पर वोट मांगना चाहिए?
इसके नाम पर किसी को यह कहकर वोट नहीं मांगना चाहिए कि क्योंकि हमने पुलवामा का बदला लिया है हमें वोट दो, लेकिन सेना की पराक्रम और शौर्य की तारीफ करना मैं बुरा नहीं मानता.
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