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This Article is From Dec 29, 2019

Flashback 2019: साल 2019 की वो 5 चर्चित किताबें, जो आपको जरूर पढ़नी चाहिए...

हर साल तमाम विधाओं की अनेक किताबें प्रकाशित होती हैं, लेकिन कुछ किताबें लोगों के बीच अपनी खास जगह बना लेती हैं. साल 2019 भी ऐसा ही रहा.

Flashback 2019: साल 2019 की वो 5 चर्चित किताबें, जो आपको जरूर पढ़नी चाहिए...
2019 में भी कहानी, उपन्यास, कविता, जीवनी, यात्रा वृतांत जैसी विधाओं में तमाम किताबें प्रकाशित हुईं.
नई दिल्ली:

हर साल तमाम विधाओं की अनेक किताबें प्रकाशित होती हैं, लेकिन कुछ किताबें लोगों के बीच अपनी खास जगह बना लेती हैं. साल 2019 भी ऐसा ही रहा. इस साल भी कहानी, उपन्यास, कविता, जीवनी, यात्रा वृतांत जैसी विधाओं में तमाम किताबें प्रकाशित हुईं. इनमें से कुछ किताबों की खूब चर्चा भी हुई. जहां, पाठकों को चर्चित लेखिका अरुंधति रॉय की किताब 'द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस' के हिंदी अनुवाद 'अपार खुशी का घराना' के जरिये उनके सम्मोहक लेखनी से रूबरू होने का मौका मिला. तो दूसरी तरफ, पेशे से डॉक्टर प्रवीण झा की किताब 'कुली लाइन्स' के जरिये गिरमिटिया मजदूरों के जीवन में झांकने और उनके दर्द को करीब से महसूस करने का भी मौका मिला. इन सबके बीच विक्रम संपथ की किताब 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट' ने भी सुर्खी बटोरी. हम आपके लिए 2019 की ऐसी ही 5 चर्चित किताबों को लेकर आए हैं, जो आपको जरूर पढ़नी चाहिए.

1. 'अपार खुशी का घराना'
चर्चित लेखिका अरुंधति रॉय की किताब 'द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस' का हिंदी अनुवाद 'अपार खुशी का घराना' साल 2019 की चर्चित किताबों में शुमार है. राजकमल से प्रकाशित इस किताब का अनुवाद लेखक मंगलेश डबराल ने किया है.‘अपार ख़ुशी का घराना' हमें कई वर्षों की यात्रा पर ले जाता है. यह एक ऐसी कहानी है जो वर्षों पुरानी दिल्ली की तंग बस्तियों से खुलती हुई फलते-फूलते नए महानगर और उससे दूर कश्मीर की वादियों और मध्य भारत के जंगलों तक जा पहुंचती है, जहां युद्ध ही शान्ति है और शान्ति ही युद्ध है और जहां बीच-बीच में हालात सामान्य होने का एलान होता रहता है. यह किताब में अरुंधति रॉय की कहानी-कला का करिश्मा हर पन्ने पर दर्ज नजर आता है. 

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2. 'कुली लाइन्स'
पेशे से डॉक्टर प्रवीण कुमार झा की किताब 'कुली लाइन्स' ने भी इस साल खूब चर्चा बटोरी. इस किताब में उन लाखों गिरमिटिया मजदूरों की दास्तान को सामने लाने का प्रयास किया गया है, जिन्हें इतिहास के पन्नों में लगभग भुला दिया गया. वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब में उन भारतीयों के संघर्ष, जीवन की सच्चाईयों, सुख-दुख और मानवीय पहलुओं को समेटने का प्रयास किया गया है, जिन्हें भेड़-बकरियों की तरह पानी के जहाज में भरकर सात समंदर पार ब्रिटिश कॉलोनियो में भेज दिया गया था. इन गिरमिटिया मजदूरों में से तमाम अपनी यात्रा भी पूरी नहीं कर पाए और रास्ते में ही दम तोड़ दिया और अधिकतर ऐसे थे जो चाहकर भी अपने घर वापस नहीं लौट पाए. बकौल प्रवीण झा, इस किताब को लिखने के लिए उन्होंने कई देशों की यात्राएं की और तमाम लोगों से मिले. जिसके बाद 'कुली लाइन्स' के रूप में गिरमिटिया मजदूरों के संघर्ष का एक दस्तावेज तैयार हो पाया. 

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3. 'बोलना ही है'
वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की किताब ‘बोलना ही है' उन किताबों में शामिल है, जो इस साल चर्चा के केंद्र में रहीं. राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित यह किताब इस बात की पड़ताल करती है कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किस-किस रूप में बाधित हुई है, परस्पर सम्वाद और सार्थक बहस की गुंजाइश कैसे कम हुई है और इससे देश में नफ़रत और असहिष्णुता को कैसे बढ़ावा मिला है. कैसे जनता के चुने हुए प्रतिनिधि, मीडिया और अन्य संस्थान एक मजबूत लोकतंत्र के रूप में हमें विफल कर रहे हैं. हिंदी के साथ-साथ यह किताब अंग्रेजी, मराठी और कन्नड़ में भी प्रकाशित हो चुकी है.

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4. 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट' 
विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर) का नाम इन दिनों खूब चर्चा में है. कोई उन्हें हीरो बता रहा है तो कोई विलेन साबित करने में जुटा है. इन तमाम बहस-मुबाहिस के बीच हाल ही में आई लेखक विक्रम संपथ की नई किताब 'सावरकर- इकोज़ फ्रॉम अ फॉरगॉटन पास्‍ट' ने लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा. पेंग्विन से प्रकाशित इस किताब में विक्रम संपथ ने सावरकर के जीवन के कई अनछुए पहलुओं को सामने लाने का प्रयास किया है. बकौल संपथ यह किताब दो हिस्सों में हैं, दूसरा हिस्सा आना अभी बाकी है. पहले हिस्से में सावरकर के जन्म यानी 1883 से लेकर 1924 तक की घटनाओं और विभिन्न पहलुओें को शामिल किया गया है. इस किताब को हिंदी, मराठी, बंग्ला और तेलुगु में अनुवाद करने की भी तैयारी चल रही है.  

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5. 'फिर मेरी याद'
डॉ. कुमार विश्वास युवाओं के बीच जितने लोकप्रिय हैं, इस साल प्रकाशित उनका काव्य संग्रह ‘फिर मेरी याद'भी उतनी तेजी से ही लोकप्रिय हुआ. राजकमल से प्रकाशित यह कुमार विश्वास का तीसरा काव्य-संग्रह है. इसमें गीत, कविता, मुक्तक, क़ता, आज़ाद अशआर, सब शामिल हैं. शायर और गीतकार निदा फ़ाज़ली की जुबान में कहें तो, 'डॉ. कुमार विश्वास उम्र के लिहाज़ से नये लेकिन काव्य-दृष्टि से खूबसूरत कवि हैं.' वे आगे कहते हैं, 'गोपालदास नीरज के बाद अगर कोई कवि, मंच की कसौटी पर खरा लगता है, तो वो नाम कुमार विश्वास के अलावा कोई दूसरा नहीं हो सकता है.' ‘फिर मेरी याद' निदा फ़ाज़ली साहब के इस बयान को और पुख़्ता करता है.  

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