प्रतीकात्मक तस्वीर
बचपन में लगता था मालगुडी सचमुच कोई शहर है. इसी सोच के साथ हम दो तीन पक्के दोस्तों ने एक कसम खाई थी कि जब बड़े हो कर पैसे कमाने लगेंगे, तो सब मिल कर पूरा एक महीना मालगुडी में रहेंगे. तब कहां जानते थे कि जिस शहर में हम रहते हैं उसके हर घर में एक मालगुडी बसता है...
एक दिन जब रहा नहीं गया और रो कर पापा से जिद कर दी कि इन गर्मी की छुट्टियों में मालगुडी जाना है बस. उन्होंने खूब समझाया कि यह काल्पनिक है वास्तविक नहीं. उसके बाद से जब भी अपने पैत्रिक गांव जाना होता उसी को मालगुडी समझ कर खुद को 'स्वामी' (स्वामी एंड फ्रेंड्स उपन्यास का किरदार) समझ लेते थे.
मालगुडी को इतना जीवंत और वास्तविक बना देने वाले हैं आर के नारायण. भारत में अंग्रेजी साहित्य के सबसे महान उपन्यासकारों में गिने जाने वाले नारायण ने अपनी रचनाओं में जीवन का जो चित्रण पेश किया वह आज भी उतना ही सार्थक और जीवंत है, जो रचना के सृजन के समय था.
पद्मराग फिल्म्स के टी.एस.नरसिम्हन ने मालगुडी पर धारावाहिक बनाने का निर्णय किया. मालगुडी डेज कार्यक्रम की शुरुआत में जो चित्र दिखते थे, जानते हैं उन्हें बनाने वाले खुद जाने माने आर के लक्ष्मण हैं, जो आर के नारायण के भाई हैं. यह धारावाहिक इतना प्रभावी था कि आज तक जब भी इस विषय पर बात चलत है, सब के मुंह पर एक ही धुन आ जाती है... ता ना ना ना ना ना ना...
नारायण उस समय के प्रसिद्ध तीन अंग्रेजी साहित्यकारों मूलक में से एक हैं. उनके अलावा राज आनंद और राजा राव भी उस समय के अंग्रेजी लेखकों में अपना अलग ही स्थान रखते हैं. इन तीनों लेखकों को भारतीय अंग्रेजी साहित्य का जनक कहा जाता है.
अंग्रेजी उपन्यास की दुनिया में पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले नारायण नारायण खुद अंग्रेजी में फेल हो गए थे. जी हां, नारायण स्नातक में अंग्रेजी विषय में फेल हो गए थे. बाद में दोबारा परीक्षा देकर वे पास हुए. इन्हीं दिनों में नारायण ने लिखना शुरू किया था. आर के नारायण ने लेखन की शुरुआत ‘द हिन्दू’ में प्रकाशित लघुकथाओं से की.
नारायण की कल्पना कितनी मजबूत और संवेदनशील होगी वह उनकी कहानियों, उपन्यासों को पढ़ने से पता चलता है. वे हर परिस्थिति को इस तरह चित्रित करते कि पाठक के मन में उसकी एक फिल्म सी चलने लगती थी. शायद यही वजह रही होगी कि उनके उपन्यास और लघु कहानियों को खूब फिल्माया गया.
नारायण के उपन्यास ‘गाइड’ के लिय उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. विश्वस्तरीय रचनाकार नारायण को पद्म विभूषण द्वारा अलंकृत किया गया.
वे मौसूर के यादव गिरी में करीब दो दशक तक रहे. 1990 में बीमारी की वजह से वो चेन्नई चले गए और 2001 में उन्होंने अंतिम सांसे लीं. जिस मकान में नारायण रहते थे, वो मकान आज भी हैं. नारायण के चाहने वाले चाहते हैं कि उनके घर को विरासत के रुप में सहेजा जाए.
एक दिन जब रहा नहीं गया और रो कर पापा से जिद कर दी कि इन गर्मी की छुट्टियों में मालगुडी जाना है बस. उन्होंने खूब समझाया कि यह काल्पनिक है वास्तविक नहीं. उसके बाद से जब भी अपने पैत्रिक गांव जाना होता उसी को मालगुडी समझ कर खुद को 'स्वामी' (स्वामी एंड फ्रेंड्स उपन्यास का किरदार) समझ लेते थे.
मालगुडी को इतना जीवंत और वास्तविक बना देने वाले हैं आर के नारायण. भारत में अंग्रेजी साहित्य के सबसे महान उपन्यासकारों में गिने जाने वाले नारायण ने अपनी रचनाओं में जीवन का जो चित्रण पेश किया वह आज भी उतना ही सार्थक और जीवंत है, जो रचना के सृजन के समय था.
पद्मराग फिल्म्स के टी.एस.नरसिम्हन ने मालगुडी पर धारावाहिक बनाने का निर्णय किया. मालगुडी डेज कार्यक्रम की शुरुआत में जो चित्र दिखते थे, जानते हैं उन्हें बनाने वाले खुद जाने माने आर के लक्ष्मण हैं, जो आर के नारायण के भाई हैं. यह धारावाहिक इतना प्रभावी था कि आज तक जब भी इस विषय पर बात चलत है, सब के मुंह पर एक ही धुन आ जाती है... ता ना ना ना ना ना ना...
नारायण उस समय के प्रसिद्ध तीन अंग्रेजी साहित्यकारों मूलक में से एक हैं. उनके अलावा राज आनंद और राजा राव भी उस समय के अंग्रेजी लेखकों में अपना अलग ही स्थान रखते हैं. इन तीनों लेखकों को भारतीय अंग्रेजी साहित्य का जनक कहा जाता है.
अंग्रेजी उपन्यास की दुनिया में पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले नारायण नारायण खुद अंग्रेजी में फेल हो गए थे. जी हां, नारायण स्नातक में अंग्रेजी विषय में फेल हो गए थे. बाद में दोबारा परीक्षा देकर वे पास हुए. इन्हीं दिनों में नारायण ने लिखना शुरू किया था. आर के नारायण ने लेखन की शुरुआत ‘द हिन्दू’ में प्रकाशित लघुकथाओं से की.
नारायण की कल्पना कितनी मजबूत और संवेदनशील होगी वह उनकी कहानियों, उपन्यासों को पढ़ने से पता चलता है. वे हर परिस्थिति को इस तरह चित्रित करते कि पाठक के मन में उसकी एक फिल्म सी चलने लगती थी. शायद यही वजह रही होगी कि उनके उपन्यास और लघु कहानियों को खूब फिल्माया गया.
नारायण के उपन्यास ‘गाइड’ के लिय उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. विश्वस्तरीय रचनाकार नारायण को पद्म विभूषण द्वारा अलंकृत किया गया.
वे मौसूर के यादव गिरी में करीब दो दशक तक रहे. 1990 में बीमारी की वजह से वो चेन्नई चले गए और 2001 में उन्होंने अंतिम सांसे लीं. जिस मकान में नारायण रहते थे, वो मकान आज भी हैं. नारायण के चाहने वाले चाहते हैं कि उनके घर को विरासत के रुप में सहेजा जाए.
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Malgudi Days, R.K. Narayan, Rasipuram Krishnaswami Iyer Narayanaswami, Writer, Author, साहित्य, मालगुडी डेज, आरके नारायण