नयी दिल्ली:
साहित्यिक हलकों में इस बात को लेकर कयासों का बाजार गरम है कि गुरूवार को नोबेल साहित्य पुरस्कार किसे मिलेगा। पुरस्कार पर निगाह रखने वालों का कहना है कि अदूनिस के नाम से मशहूर सीरियाई शायर अली अहमद सईद इसबर की झोली में जाएगा जबकि कुछ की निगाह भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रूश्दी पर भी है।
अकादमी अपनी गोपनीयता के लिए मशहूर है और आखिरी पल तक लोगों को पता नहीं चलता है कि नोबेल पुरस्कार किसकी झोली में जाने वाला है। साहित्य के पुरस्कार के लिए वह लेखकों के कूट नाम का इस्तेमाल करती है। यहां तक कि सार्वजनिक तौर पर पढ़ते समय किताबों के जाली कवर इस्तेमाल किए जाते हैं।
हालात यह है कि नामांकित साहित्यकारों की सूची कभी सार्वजनिक नहीं की जाती है। साहित्यकारों पर ज्यूरी की चर्चा आधी सदी तक गोपनीय रखी जाती है।
बहरहाल, साहित्य के पुरस्कार को लेकर सस्पेंस और कयासों का सिलसिला गुरूवार को भारतीय समयानुसार दोपहर एक बजे खत्म हो जाएगा जब विजेता की घोषणा की जाएगी।
स्वीडिश अकादमी के सदस्य पर वास्टबर्ग ने एएफपी के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि ‘‘कैलेंडर संबंधी कारणों’’ से यह सामान्य से एक हफ्ते बाद इस पुरस्कार की घोषणा होगी।
उधर, स्वीडन के मुख्य दैनिक ‘दागेन्स नाइहेतर’ के सांस्कृतिक पन्ने के संपादक जोर्न विमैन ने कैलेंडर मुद्दे से असहमति जताते हुए कहा, ‘‘यह संकेत है कि किसी विजेता को चुनने की प्रक्रिया में असहमति है।’’ स्वीडिश रेडियो के सांस्कृतिक संवाददाता का कहना है कि संभवत: अकादमी के 18 सदस्यों ने ‘‘अदूनिस जैसे राजनीतिक रूप से किसी विवादित साहित्यकार’’ पर चर्चा की है। अदूनिस राजनतिक इस्लाम पर शास्त्रार्थ को ले कर अभी चर्चा में रहे हैं।
अगर, अकादमी किसी ऐसे साहित्यकार को देख रहा है जो विचारों को बांटता है तो उसने अपना ध्यान रूश्दी पर डाला होगा। मार्च में ही अकादमी ने रूश्दी पर ईरानी फतवे की निंदा की थी। उसने इस मुद्दे पर 27 साल की अपनी चुप्पी को अपनी निष्पक्षता और स्वतंत्रता से जोड़ा था।
बहरहाल, स्वेंसका दागब्लादेत की साहित्यिक समालोचक मैडेलीन लेवी कहती है कि बस एक ही चीज निश्चित है: हम जानते हैं कि हम अकादमी की पसंद के बारे में कुछ नहीं जानते।
अकादमी अपनी गोपनीयता के लिए मशहूर है और आखिरी पल तक लोगों को पता नहीं चलता है कि नोबेल पुरस्कार किसकी झोली में जाने वाला है। साहित्य के पुरस्कार के लिए वह लेखकों के कूट नाम का इस्तेमाल करती है। यहां तक कि सार्वजनिक तौर पर पढ़ते समय किताबों के जाली कवर इस्तेमाल किए जाते हैं।
हालात यह है कि नामांकित साहित्यकारों की सूची कभी सार्वजनिक नहीं की जाती है। साहित्यकारों पर ज्यूरी की चर्चा आधी सदी तक गोपनीय रखी जाती है।
बहरहाल, साहित्य के पुरस्कार को लेकर सस्पेंस और कयासों का सिलसिला गुरूवार को भारतीय समयानुसार दोपहर एक बजे खत्म हो जाएगा जब विजेता की घोषणा की जाएगी।
स्वीडिश अकादमी के सदस्य पर वास्टबर्ग ने एएफपी के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि ‘‘कैलेंडर संबंधी कारणों’’ से यह सामान्य से एक हफ्ते बाद इस पुरस्कार की घोषणा होगी।
उधर, स्वीडन के मुख्य दैनिक ‘दागेन्स नाइहेतर’ के सांस्कृतिक पन्ने के संपादक जोर्न विमैन ने कैलेंडर मुद्दे से असहमति जताते हुए कहा, ‘‘यह संकेत है कि किसी विजेता को चुनने की प्रक्रिया में असहमति है।’’ स्वीडिश रेडियो के सांस्कृतिक संवाददाता का कहना है कि संभवत: अकादमी के 18 सदस्यों ने ‘‘अदूनिस जैसे राजनीतिक रूप से किसी विवादित साहित्यकार’’ पर चर्चा की है। अदूनिस राजनतिक इस्लाम पर शास्त्रार्थ को ले कर अभी चर्चा में रहे हैं।
अगर, अकादमी किसी ऐसे साहित्यकार को देख रहा है जो विचारों को बांटता है तो उसने अपना ध्यान रूश्दी पर डाला होगा। मार्च में ही अकादमी ने रूश्दी पर ईरानी फतवे की निंदा की थी। उसने इस मुद्दे पर 27 साल की अपनी चुप्पी को अपनी निष्पक्षता और स्वतंत्रता से जोड़ा था।
बहरहाल, स्वेंसका दागब्लादेत की साहित्यिक समालोचक मैडेलीन लेवी कहती है कि बस एक ही चीज निश्चित है: हम जानते हैं कि हम अकादमी की पसंद के बारे में कुछ नहीं जानते।
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