2021 अमृत राय का जन्म शताब्दी वर्ष था जो धीरे-धीरे बीत गया और हमारा हिन्दी का पूरा का पूरा समाज जिसमें तीनों लेखक संघ भी शामिल हैं, बाकायदा चुप रहा. विजय राय लमही पत्रिका के ऐसे इकलौते सम्पादक हैं, जिन्होंने सदैव अपने समय के महत्वपूर्ण रचनाकारों को उनकी गरिमा के अनुरूप उन्हें सम्मान देकर याद किया है. हाल में अमृत राय पर एक मुकम्मल विशेषांक निकाल कर लमही ने उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व के हर पक्ष से हिन्दी के नये पाठकों को परिचित कराते हुये एक ऐसी नायाब सन्दर्भ सामग्री प्रस्तुत की है जिसे वर्षों तक उनके अध्येता शोध कार्यों के लिये प्रयोग करते रहेंगे.
लमही पत्रिका के फणीश्वर नाथ रेणु विशेषांक के बाद अमृत राय विशेषांक का कई दृष्टियों से अपना अलग और ऐतिहासिक महत्व है. अमृत राय पर इस अंक मॆं मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, रेखा अवस्थी, विश्वनाथ त्रिपाठी, विष्णु खरे, हरीश त्रिवेदी, रणजीत साहा, राजेन्द्र कुमार, रमेश अनुपम, शम्भु गुप्त, ज्ञान चतुर्वेदी, शम्भुनाथ, बटरोही, अवधेश प्रधान, अरुण होता, गजेन्द्र पाठक, कुमार वीरेन्द्र, सुधीर सक्सेना, सियाराम शर्मा, राजेश कुमार, राजीव रंजन गिरि, नीरज खरे, अम्बरीश त्रिपाठी, ब्रजेश आदि के महत्वपूर्ण आलेख और टिप्पणियाँ हैं. कलम के सिपाही के लेखक अमृत राय का सम्यक मूल्यांकन उनके जीवन काल में तो नहीं हो सका और उसके बाद भी एक लम्बे समय तक उनका जिक्र होना ही बन्द हो गया था. लमही के इस डिजिटल विशेषांक से उम्मीद है कि अमृत राय चर्चा के केन्द्र में अवश्य आयेंगे.
(समीक्षक: ग़ज़ल जैगम)
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