'बदलाव और निरंतरता वाला शहर है दिल्ली'

किसी भी शहर के राजधानी बनने में उसके भोगौलिक स्थिती और राजनीतिक महत्व का महत्वपूर्ण योगदान होता है. दिल्ली 10वीं शताब्दी के बाद से लगातार राजधानी बना रहा है.

'बदलाव और निरंतरता वाला शहर है दिल्ली'

दिल्ली के इतिहास पर लिखी गई है किताब (Delhi A History)

नई दिल्ली:

दिल्ली भारत की राजधानी के अलावा तेजी से बढ़ता हुआ एक शहर है. इस शहर की अपनी एक संस्कृति है, एक अलग रंग है, एक अलग बनावट है. दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों पर कई किताबे लिखी जा चुकी है. लेकिन पूरे दिल्ली के इतिहास को एक जगह समग्र रुप में नहीं लिखा गया था. दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर डॉ. मनीषा चौधरी ने दिल्ली के इतिहास पर एक किताब लिखी है(Delhi A History). डॉ. मनीषा चौधरी हिमाचल के शिमला में स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज़ में फेलो रही हैं. इतिहास पर उनकी यह दूसरी किताब है. इस किताब में उन्होंने दिल्ली के इतिहास को बड़े करीने से आम पाठकों के लिए सजाया है.

किताब को लेकर NDTV के अमित ने उनसे चर्चा की है जो सवाल-जवाब की शक्ल में यहां दिए जा रहे हैं. यह छोटी सी चर्चा निश्चित ही दिल्ली की पूरी कहानी तो नहीं बताती, लेकिन फिर भी आपको ये बताती हैं कि अगर दिल्ली से आपको भी प्यार है तो यह किताब आपके लिए क्यों जरूरी हो सकती है.

1- दिल्ली के इतिहास पर यह किताब क्यों? इससे पहले भी कई दावे मौजूद हैं. यह किताब दूसरों से कितनी अलग है?

जवाब- दिल्ली पर अबतक जितनी भी किताबे लिखी गयी थी वो किसी न किसी निश्चित विषय या समय को केंद्रित कर के ही लिखी गयी थी. आप देखेंगे कि या तो सल्तनत काल की दिल्ली या मुग़ल काल की दिल्ली या फिर अंग्रेजों की दिल्ली करके किताबें लिखी गयी हैं. कोई भी ऐसी किताब उपलब्ध नहीं है जिसमे प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास तक शामिल है. जैसे अगर आप एक अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक की किताब को देखेंगे तो उन्होंने यहां के लोगों के व्यवहार को, शहर की स्प्रिट को बताया है लेकिन इतिहास का कोई जिक्र नहीं है उसमें.

2- इतिहास लेखन के स्रोतों के संदर्भ में देखा जाए तो किताब लिखने में क्या-क्या चुनौतियां थीं?

जवाब- जब आप प्राचीन दिल्ली के इतिहास की बात करते हैं तो आपको मुख्य रूप से ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की समग्री को ही आधार बनाना होता है. वहीं जब मध्य काल की बात होगी तो लगभग सभी राजाओं ने अपने समय में कुछ न कुछ लिखवाया है, जिसे हमने आधार बनाया है. लिखते हुए दो चुनौतियां थी कि एक, किताब आम पाठक को ध्यान में रखकर लिखी जा रही है तो बहुत जटिल इतिहास लेखन नहीं होना चाहिेए और दूसरा, दिल्ली का कोई एक थीम नहीं है, बल्कि यह लगातार बदलती रही है तो उस बदलाव को इसमें साफ-साफ आना चाहिए.

3- इस किताब को लिखने की प्रेरणा कहां से मिली?

जवाब- सबसे पहली बात दिल्ली में वर्षो तक रहने के बाद मेरी यह इच्छा हुई. एक लगाव हो गया इस शहर से... इसके अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण है, वो है कि इतिहास में मैंने जब लगातार दिल्ली को पढ़ा तो मुझे लगा, कहीं कुछ अधूरा है. दिल्ली के बारे में हम जो पढ़ते हैं, यह शहर बस उतना नहीं है. दिल्ली को लेकर अभी बहुत कुछ लिखा जाना बाकि है.

4-दिल्ली कहां से शुरू होती है, उसका इतिहास कितने पीछे जाता है? आज का नाम delhi/दिल्ली कब से पड़ा? कुल कितनी दिल्लियों का इतिहास मिलता है... क्या इनकी संख्या कम-ज्यादा होती है?

जवाब- लैंडमार्क के रूप में दिल्ली हमेशा से रही है. इसका इतिहास नवपाषाण काल से शुरु होता है. अगर नामकरण के लिहाज से देंखे तो लगभग 3500 ईसापूर्व इंद्र की दिल्ली थी, जिस कारण इसे इंद्रप्रस्थ कहा गया. तीसरी सदी के आसपास अरब के विद्वानजनों में इसकी चर्चा हस्तिनापुर के नाम से मिलती है. तो तीसरी और पांचवी सदी तक दिल्ली शब्द का कोई जिक्र नहीं है. 7वीं सदी के बाद ही दिल्ली (Dhilli) शब्द का उल्लेख मिलता है. इसके नाम के पीछे भी कई कहानियां हैं जिसमें एक है कि यहां की मिट्टी ऐसी नहीं थी जिसमें तंबू लगाए जा सकें तो ढीली मिट्टी से ढिल्ली-ढिल्ली होते हुए दिल्ली बनी. लेकिन चूंकि यह बाज़ारों का एक समूह थी, एक क्लब जैसी थी तो लगता है वहीं से इसका नाम दिल्ली पड़ा.

जहां तक बात कितनी दिल्लियों की है, तो हम उन सात दिल्लियों की बात करते हैं, जब यह सत्ता के केंद्र में थी, इसका अपना एक तंत्र था, राजस्व संग्रहण होता था. जो लोग इसकी संख्या ज्यादा बताते हैं वे जो भी आबादी-बस्ती को दिल्ली मानते हैं. इसी कारण इसकी अलग-अलग संख्याएं सामने आती हैं. हर्षवर्धन के समय कन्नौज और थानेश्वर सत्ता के केंद्र थे. उसके बाद त्रिपक्षीय संघर्ष में कोई भी दिल्ली के लिए नहीं लड़ रहा था. इसके बाद 10वीं सदी में पृथ्वीराज चौहान ने राय-पिथौरा किला बनवाया, यहीं से दिल्ली को एक आकार दिए जाने की बात सामने आती है. उसके बाद गौरी ने तराइन में पृथ्वीराज को हराया तो उसने जिस सल्तनत की नींव डाली, उसकी राजधानी दिल्ली को बनाया. इस तरह दिल्ली को आधुनिक सत्ता का केंद्र बनाने की शुरुआत दिल्ली सल्तनत से होती.

5-इस किताब में आपने दिल्ली को मेट्रोपॉलिटन सिटी कहने के बजाय कॉस्मोपॉलिटन सिटी कहा है, इसके पीछे क्या कारण है?

जवाब- इसके लिए पहले हमें मेट्रोपॉलिटन और कॉस्मोपॉलिटन शब्दों के अंतर को समझना होगा. मेट्रोपॉलिटन वो शहर है जो अचानक से बनता है, नए लोग आते हैं. अपने रोजी-रोजगार की तलाश में... वहीं कॉस्मोपॉलिटियन वो शहर है, जहाँ समय-समय पर लोग आते गए और बसते चले जाते हैं. दिल्ली में अलग-अलग समय, अलग-अलग क्षेत्रों की, अलग-अलग संस्कृति है. आप महरौली और चांदनी चौक के फर्क को देख सकते हैं. महरौली एक दूसरी दुनिया लगती है, बड़े-बड़े पार्क, हरियाली, शांति है तो वहीं चांदनी चौक में ऐसा नहीं है. ऐसे ही हर दूसरा क्षेत्र अपने आप में अलग है. लेकिन मेट्रोपॉलिटन शहर में आप एक रूपता देखेंगे, जो आपको दिल्ली में नहीं देखने को मिलते हैं. और नज़दीक से देखें तो नोएडा और ग्रेटर नोएडा मेट्रोपॉलिटन सिटी हैं.

6-अक्सर यह सवाल उठता है कि दिल्ली के मूल निवासी कौन हैं? दिल्ली किसकी है, तो आप क्या कहेंगी, दिल्ली किसकी है?

जवाब- दिल्ली एक क्रॉस रोड पर बसा शहर है. क्रॉस रोड का अर्थ है, कोई भी ऐसा शहर जो मुख्यमार्गों के मिलन बिंदु पर बसा हो. यहां से गुजरकर ही लोग एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पहुंच पाते हैं. दिल्ली से गुजरकर ही मध्य भारत से लोग कश्मीर या अन्य जगहों पर जाते रहे हैं. दिल्ली किसकी है, यह ठीक-ठीक जवाब देना सही नहीं होगा, क्योंकि समय-समय पर लोग यहाँ आकर बसते रहे हैं. भारत के कई इलाकों में उनके मूल निवासियों की पहचान हो जाती है. वे भले आज जनजातियों तक सीमित हों लेकिन अपनी पहचान है. दिल्ली के साथ ऐसा किसी का नाम नहीं जुड़ा. आज दिल्ली की अर्थव्यवस्था को अगर सबसे अधिक किसी ने दिया है तो वो 1947 के बाद आए रिफ्यूजी हैं. भारत के अन्य राज्यों या शहरों की तरह दिल्ली पर कोई एक दावा नहीं कर सकता है कि दिल्ली उसकी है.

7- भारत में जिस तरह की विविधता पाई जाती है, तो ऐसे में क्या दिल्ली भी इसी भारत का प्रतिनिधित्व कर पाती है?

जवाब- लोगों के मामले में देखे तों निश्चित ही यहां सभी इलाकों के लोग मिलते हैं. लेकिन फ्लोरा-फ्यूना के हिसाब से देखें तो प्राचीन काल में दिल्ली जंगलों से आच्छादित थी लेकिन मध्यकाल से यह खत्म होता गया. क्योंकि बढ़ती हुई आबादी के लिए जंगलों को साफ किया गया. भौगोलिक परिवर्तन हुए. जैसे मध्यकाल के लेखकों ने यमुना को निज़ामुद्दीन के एकदम बगल में बताया है लेकिन आज हम देंखें तो यमुना तो इतने पास नहीं दिखती जितना बताया जाता है. तो यहीं से उस फ्लोरा-फ्यूना का अंत होना शुरु हुआ. दिल्ली के अंदर समय के साथ बदलाव होते गए, लेकिन दिल्ली ने अपने कैरक्टर को बचा कर रखा. कई शहरों के साथ यह समस्या होती है कि वो बनते हैं और टूट जाते हैं, लेकिन दिल्ली लगातार बनता हुआ शहर है.

8-पिछले कुछ समय से दिल्ली को 'रेप कैपिटल' कहा जाने लगा, या भारत के एक खास इलाकों से आने वाले लोगों पर जातीय (नस्लीय) टिप्पियां की जाती हैं, उन्हें एक खास नाम से बुलाया जाता है. इसका क्या कारण है?

जवाब-ये प्रश्न आधुनिक समय के हैं, इतिहास से इसका कोई संबंध नहीं है. एक समय स्त्री की पूजा होने के कारण यह योगिनीपुरम भी कहलाती थी. लेकिन आज रेप कैपिटल कहला रही है. तो दोनों के बीच कोई संबंध नहीं. आज जो बुराइयां आई हैं, वो यहां आने वाले लोगों के साथ आईं हैं. अवसरों की तलाश में बहुत बड़ी संख्या में लोग यहां आ रहे हैं. ये लोग जिस समाज से यहां आते हैं, वहां शिक्षा की कमी है तो वे उस सभ्यता-संस्कृति से एकदम अपने आपको नहीं ढाल पाते जो दिल्ली की पुरानी पहचान रही है. इसी कारण ये बुराइयां देखने को मिलती हैं.

9- समय-समय पर कई राजाओं ने दिल्ली से अलग अपनी राजधानी बनाई थी, क्या भविष्य में ऐसी कोई संभावना है? ... अगर ऐसा होता है तो किस शहर में ऐसी क्षमता है?

जवाब- किसी भी शहर के राजधानी बनने में उसके भोगौलिक स्थिती और राजनीतिक महत्व का महत्वपूर्ण योगदान होता है. दिल्ली 10वीं शताब्दी के बाद से लगातार राजधानी बना रहा है. मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली से दौलताबाद गए, मुग़ल अपनी राजधानी आगरा ले जाने के बाद फिर वापस आ गए. अंग्रेजों ने भी लगभग 150 वर्ष तक कोलकाता से राज करने के बाद 1911 में दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया. दिल्ली का क्रॉस रोड पर होना उसे आर्थिक और राजनीतिक आधार पर मजबूत बनाता है, साथ ही साथ दिल्ली के पास अपना एक सांस्कृतिक महत्व भी है. 2014 में नई सरकार ये कोशिश की थी कि राष्ट्रीय त्योहारों को देश के अन्य हिस्सों में भी इसी उत्साह-उमंग के साथ मनाया जाए, एक तरह का शिफ्ट किया जाए लेकिन यह हो न सका. अंत में... हालांकि बदलावों से इंकार नहीं कर सकता लेकिन निकट भविष्य में ऐसे किसी परिवर्तन की संभावना नहीं दिखती.

10-किताब में आपने एक विद्वान को उदृत किया है जिनका निष्कर्ष कुछ ऐसा है; "इस शहर की बुनियाद में तबाही है, मिट्टी में खून है. ऐसा शहर, जिसने तमाम साम्राज्य-सल्तनतों को गिरते देखा है और तमाम को जन्म भी दिया है. जन्म और मृत्यु इस शहर की पहचान है, और 'बदला' इसके स्वभाव में है." क्या आप इस मत से सहमत हैं...?

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जवाब- जी, हां... जैसी इस चर्चा में सामने आया है, दिल्ली कुछ-कुछ ऐसी ही है. बदला की जगह मैं कहूंगा कि बदलाव और निरंतरता इसके स्वभाव में है.