भारतीय नववर्ष के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यकाम भवन में "शिक्षा में उभरती वैश्विक तकनीकी, सांस्कृतिक चुनौतियों के प्रतिकार के सामर्थ्य का विकास आवश्यक" विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (एन.डी.टी.एफ़.) द्वारा आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उत्तर क्षेत्र के संघ चालक और पेसिफिक यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा ने कहा कि प्राचीन साहित्य का ठीक से शोध हो तो भारत को पिछड़ा कहने का दृष्टिकोण बदल जाएगा. प्राचीन साहित्य का आज की दृष्टि से अध्य्यन करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि प्राचीन साहित्य में प्रकाशित सामग्री का पुनः भारतीय नजरिए से मूल्यांकन किए जाने की जरूरत है.
उन्होंने ये भी कहा कि आज भारत में बड़ी मात्रा में बेरोजगारी है, जिसके कारण कई बार सामाजिक तनाव भी पैदा हो जाता है. आज तकनीक रोज बदल रही है, हमें बदलती तकनीक के साथ चलना होगा नहीं तो हम पिछड़ जाएंगे. विदेशों में भारतीय, तकनीक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. हमारे देश में भी यह काम किया जा सकता है. वक्त आ गया है कि भारत में भी अब कम खर्चीली तकनीक के इस्तेमाल पर काम किया जाए.
बदलते सामाजिक और सांकृतिक परिदृश्य में आज शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने की जरूरत है. इसके लिए क्लासरूम टीचिंग के साथ शिक्षण के अन्य प्रारूपों को भी अपनाने की जरूरत है. आज भारत के सामने अनेक चुनौतियां है. हमें इनके मुकाबले के लिए स्वयं को तैयार करना होगा तभी विश्व के साथ हम कदम मिलाकर चल पाएंगे.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सदस्य डॉ इंद्रमोहन कपाही ने संगोष्ठी में कहा कि एन. डी. टी. एफ़. ने सदैव राष्ट्रीय विचारों के वाहक की भूमिका निभाई है. यह नववर्ष हमें हमारी जड़ों से जोड़ने का काम करता है. कार्यक्रम के अंत में एन.डी.टी.एफ़ के अघ्यक्ष अजय भागी ने कहा कि एन.डी.टी.एफ ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और ये शिक्षकों की समस्याओं के समाधान के लिए निरंतर कार्यरत है.
उन्होंने ये भी कहा कि आज भारत में बड़ी मात्रा में बेरोजगारी है, जिसके कारण कई बार सामाजिक तनाव भी पैदा हो जाता है. आज तकनीक रोज बदल रही है, हमें बदलती तकनीक के साथ चलना होगा नहीं तो हम पिछड़ जाएंगे. विदेशों में भारतीय, तकनीक के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. हमारे देश में भी यह काम किया जा सकता है. वक्त आ गया है कि भारत में भी अब कम खर्चीली तकनीक के इस्तेमाल पर काम किया जाए.
बदलते सामाजिक और सांकृतिक परिदृश्य में आज शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने की जरूरत है. इसके लिए क्लासरूम टीचिंग के साथ शिक्षण के अन्य प्रारूपों को भी अपनाने की जरूरत है. आज भारत के सामने अनेक चुनौतियां है. हमें इनके मुकाबले के लिए स्वयं को तैयार करना होगा तभी विश्व के साथ हम कदम मिलाकर चल पाएंगे.
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सदस्य डॉ इंद्रमोहन कपाही ने संगोष्ठी में कहा कि एन. डी. टी. एफ़. ने सदैव राष्ट्रीय विचारों के वाहक की भूमिका निभाई है. यह नववर्ष हमें हमारी जड़ों से जोड़ने का काम करता है. कार्यक्रम के अंत में एन.डी.टी.एफ़ के अघ्यक्ष अजय भागी ने कहा कि एन.डी.टी.एफ ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और ये शिक्षकों की समस्याओं के समाधान के लिए निरंतर कार्यरत है.
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