क़ुर्रतुल ऐन हैदर जिन्हें ऐनी आपा के नाम से जाना जाता है एक प्रसिद्ध उपन्यासकार और लेखिका थीं. ऐनी आपा ने बहुत ही छोटी उम्र में लेखन शुरू कर दिया था. उन्होंने महज छ: साल की उम्र में अपनी कलम से पहली कहानी को कागज पर उकेरा. 'बी चुहिया' ऐनी आपा की पहली प्रकाशित कहानी थी.
लेखन उन्हें अपने माता-पिता से विरासत में मिला, यह कहना गलत नहीं होगा. उनके पिता 'सज्जाद हैदर यलदरम' उर्दू के जाने-माने लेखक थे. वे ब्रिटिश शासन में राजदूत की हैसियत से अफगानिस्तान, तुर्की जैसे कई देशों में तैनात रहे. ऐनी आपा की मां भी उर्दू की लेखिका थीं. कागज और कलम का जो रिश्ता ऐनी आपा से बचपन में जुड़ा वह युवाअवस्था और उम्र के अंतिम पड़ाव तक उनके साथ ही बढ़ता और परिपक्व होता रहा. ऐनी आपा को लेखन से प्रेम था. उन्होंने उस दौर में विवाह न करने का निर्णय लिया था, जिस दौर में औरत के लिए मर्द का सहारा जरूरी माना जाता था. उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें पदमश्री से भी सम्मानित किया गया. आज इसी महान लेखिका का जन्मदिन है.
क़ुर्रतुल ऐन हैदर का प्रसिद्ध उपन्यास आग का दरिया आज़ादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास है.आग का दरिया समेत उनके बहुत से उपन्यास का अनुवाद अंग्रेज़ी और हिंदी भाषा में हो चुका है.
प्रमुख कृतियां
ऐनी आपा के उपन्यासों में आग का दरिया, आख़िरे-शब के हमसफ़र, सफ़ीन-ए-ग़मे दिल, मेरे भी सनम-ख़ाने, गर्दिशे-रंगे-चमन और चांदनी बेगम शामिल हैं. उनकी कहानियों के संकलन में सितारों से आगे, शीशे के घर, पतझड़ की आवाज़ और रोशनी की रफ़्तार शामिल हैं.
आपा ने कई जीवनी-उपन्यास, रिपोर्ताज़ भी लिखे हैं.
अनुवाद के मैदान में भी उन्होंने काफ़ी काम किया है. क़ुर्रतुल ऐन हैदर ने हेनरी जेम्स के उपन्यास पोर्ट्रेट ऑफ़ ए लेडी का अनुवाद किया, जिसे नाम दिया हमीं चराग़, हमी परवाने. यह अनुवाद काफी चर्चित रहा.
पुरस्कार व सम्मान
1967 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, उपन्यास आख़िरी शब के हमसफ़र के लिए
1984 में पद्मश्री - साहित्यिक योगदान के लिए, गालिब मोदी अवार्ड
1985 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, कहानी पतझड़ की आवाज़,
1987 में इकबाल सम्मान
1989 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, अनुवाद के लिये, में ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण
देखें क़ुर्रतुल ऐन हैदर के साक्षात्कार -
लेखन उन्हें अपने माता-पिता से विरासत में मिला, यह कहना गलत नहीं होगा. उनके पिता 'सज्जाद हैदर यलदरम' उर्दू के जाने-माने लेखक थे. वे ब्रिटिश शासन में राजदूत की हैसियत से अफगानिस्तान, तुर्की जैसे कई देशों में तैनात रहे. ऐनी आपा की मां भी उर्दू की लेखिका थीं. कागज और कलम का जो रिश्ता ऐनी आपा से बचपन में जुड़ा वह युवाअवस्था और उम्र के अंतिम पड़ाव तक उनके साथ ही बढ़ता और परिपक्व होता रहा. ऐनी आपा को लेखन से प्रेम था. उन्होंने उस दौर में विवाह न करने का निर्णय लिया था, जिस दौर में औरत के लिए मर्द का सहारा जरूरी माना जाता था. उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें पदमश्री से भी सम्मानित किया गया. आज इसी महान लेखिका का जन्मदिन है.
क़ुर्रतुल ऐन हैदर का प्रसिद्ध उपन्यास आग का दरिया आज़ादी के बाद लिखा जाने वाला सबसे बड़ा उपन्यास है.आग का दरिया समेत उनके बहुत से उपन्यास का अनुवाद अंग्रेज़ी और हिंदी भाषा में हो चुका है.
प्रमुख कृतियां
ऐनी आपा के उपन्यासों में आग का दरिया, आख़िरे-शब के हमसफ़र, सफ़ीन-ए-ग़मे दिल, मेरे भी सनम-ख़ाने, गर्दिशे-रंगे-चमन और चांदनी बेगम शामिल हैं. उनकी कहानियों के संकलन में सितारों से आगे, शीशे के घर, पतझड़ की आवाज़ और रोशनी की रफ़्तार शामिल हैं.
आपा ने कई जीवनी-उपन्यास, रिपोर्ताज़ भी लिखे हैं.
अनुवाद के मैदान में भी उन्होंने काफ़ी काम किया है. क़ुर्रतुल ऐन हैदर ने हेनरी जेम्स के उपन्यास पोर्ट्रेट ऑफ़ ए लेडी का अनुवाद किया, जिसे नाम दिया हमीं चराग़, हमी परवाने. यह अनुवाद काफी चर्चित रहा.
पुरस्कार व सम्मान
1967 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, उपन्यास आख़िरी शब के हमसफ़र के लिए
1984 में पद्मश्री - साहित्यिक योगदान के लिए, गालिब मोदी अवार्ड
1985 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, कहानी पतझड़ की आवाज़,
1987 में इकबाल सम्मान
1989 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, अनुवाद के लिये, में ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण
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