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नहीं मिली एम्बुलेंस तो झोले में ही ले जाना पड़ा बेटे का शव, रुला देगी दर्द में डूबे पिता की बेबसी की कहानी

चार साल के बेटे की मौत के बाद एम्बुलेंस न मिलने पर पिता को शव को झोले में भरकर घर ले जाने की घटना सामने आई है. यह खबर सरकारी सिस्टम की बेरुखी और गरीबों की लाचारी का सबसे कड़वा सच सामने लाती है. (एनडीटीवी के लिए राधेश्याम की रिपोर्ट)

नहीं मिली एम्बुलेंस तो झोले में ही ले जाना पड़ा बेटे का शव, रुला देगी दर्द में डूबे पिता की बेबसी की कहानी
  • झारखंड के चाईबासा में डिम्बा चातोम्बा ने अपने चार वर्षीय बेटे का इलाज कराया लेकिन वह जिंदगी की जंग हार गया
  • बेटे का शव घर ले जाने के लिए अस्पताल में एम्बुलेंस की मांग की गई लेकिन घंटों इंतजार के बाद भी नहीं मिली
  • पिता के पास पैसे नहीं थे और किसी ने भी उसकी मदद नहीं की, जिससे वह मजबूर हो गया
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पश्चिमी सिंहभूम:

आप फर्ज कीजिए कि किसी पिता के लिए सबसे बड़ा दर्द क्या हो सकता है? यकीनन अपने बच्चे को खो देना. लेकिन ये दर्द तब और बड़ा हो जाता है जब उस मासूम की आखिरी यात्रा भी सम्मानजनक न हो, झारखंड के चाईबासा में एक गरीब पिता की मजबूरी और बेबसी की ऐसी ही दर्दभरी कहानी सामने आई है. जिसके बारे में सुनकर ही हर कोई अंदर तक हिल जाएगा. ऐसी घटनाएं बताती है कि मुफलिसीभरी जिंदगी इंसान को किस कदर लाचार बना देती है.

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बेटे का शव ले जाने को एम्बुलेंस तक नहीं मिली

पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा सदर अस्पताल में डिम्बा चातोम्बा अपने चार वर्षीय बेटे को इलाज के लिए लाया था. दो दिन तक उम्मीदों के सहारे जीने के बाद शुक्रवार को उसका बेटा जिंदगी की जंग हार गया. लेकिन ये दर्द यही खत्म नहीं हुआ बल्कि ये दर्द तब और बढ़ता चला गया. जब डिम्बा ने अस्पताल में एम्बुलेंस की गुहार लगाई ताकि वह अपने बेटे का शव घर ले जा सके. इसी आस में घंटों इंतजार किया, लेकिन सिस्टम ने उसकी पुकार नहीं सुनी.

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सिस्टम की नाकामी के आगे इंसान की कदर नहीं

पिता की जेब में पैसे नहीं थे और मदद का कोई हाथ नहीं बढ़ा. अंततः मजबूरी ने उसे ऐसा कदम उठाने पर मजबूर कर दिया, जिसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. वह अपने मासूम बेटे की लाश को एक झोले में भरकर सदर अस्पताल से नोवामुंडी प्रखंड के बालजोड़ी गांव तक पैदल ले गया. रास्ते में लोग देखते रहे, कुछ हैरान हुए, कुछ चुप. लेकिन किसी ने उस दर्द को नहीं बांटा. यह घटना सिर्फ एक पिता की बेबसी नहीं, बल्कि उस सिस्टम की नाकामी है जो गरीबों के लिए सिर्फ कागजों में जिंदा है.

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