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'उस्‍ताद' खिताब मिलने से लेकर 'बिखरी-बिखरी जुल्‍फों' के राज तक... जाकिर हुसैन से जुड़े दिलचस्‍प किस्‍से

दूरदर्शन चैनल को दिये एक इंटरव्‍यू में जाकिर हुसैन ने बताया था, 'जब मुझे 1988 में पद्म श्री पुरस्‍कार से नवाजा गया था, तो वो लम्‍हा मेरे लिए बेहद खास था. वो अवार्ड मुझे देने की जब घोषणा की गई थी, तो सुबह के 4 बजे थे...!

'उस्‍ताद' खिताब मिलने से लेकर 'बिखरी-बिखरी जुल्‍फों' के राज तक... जाकिर हुसैन से जुड़े दिलचस्‍प किस्‍से
जाकिर हुसैन का अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में एक अस्पताल में निधन
नई दिल्‍ली:

जाकिर हुसैन का जाना शास्‍त्रीय संगीत के लिए बहुत बड़ी क्षति है. रागों की ताल और लय के साथ तबले पर कभी थिरकती, कभी तैरती और कभी उड़ती हुई जाकिर हुसैन की उंगलियां संगीत का एक जादू सा पैदा करती थीं. वह केवल तबला वादक ही नहीं, तालवादक, संगीतकार और यहां तक कि अभिनेता भी थे. वह एक किंवदंती थे जो भारत के तो अपने थे ही, लेकिन पूरी दुनिया के भी थे. संगीत के अलावा उनके पहनावे, बाल और आकर्षण को लेकर भी लोगों में काफी उत्‍सुकता रहती थी. आइए आपको बताते हैं जाकिर हुसैन से जुड़े कुछ दिलचस्‍प किस्‍से...!  

जब जाकिर हुसैन को मिला 'उस्‍ताद' का खिताब

दूरदर्शन चैनल को दिये एक इंटरव्‍यू में जाकिर हुसैन ने बताया था, 'जब मुझे 1988 में पद्म श्री पुरस्‍कार से नवाजा गया था, तो वो लम्‍हा मेरे लिए बेहद खास था. वो अवार्ड मुझे देने की जब घोषणा की गई थी, तो सुबह के 4 बजे थे. एक शख्‍स अखबार लेकर आया, जिसमें लिखा था कि मुझे अवार्ड मिलने जा रहा है. उस समय मैं जेवियर्स कॉलेज में पंडित रवि शंकर के साथ तबला बजा रहा था. सामने ही मेरे पिता उस्ताद अल्ला रक्खा भी फ्रंट सीट पर बैठे हुए थे. उनको किसी ने कान में कहा कि मैं अखबार देख रहा हूं और उसमें लिखा है कि जाकिर हुसैन को पद्मश्री से नवाजा जाएगा, तो ये सुनकर वो बेहद एक्‍साइटेड हो गए. इस बीच उन्‍होंने किसी तरह से रविशंकर जी को मैसेज पहुंचवाया स्‍टेज पर. फिर पंडित जी उस वक्‍त घोषणा की कि मुझे पद्म श्री मिलने वाला है. तब उस वक्‍त पंडित जी ने मुझे पहली बार 'उस्‍ताद' कहा था. उन्‍होंने कहा था- उस्‍ताद जाकिर हुसैन को ये अवार्ड दिया गया है. मुझे प्रेरणा देने वाले दो शख्‍स पहले मेरे पिता और दूसरे पंडित रविशंकर के सामने मुझे अवार्ड देने की बात का पता चला, जो मेरे लिए बेहद गर्व की बात थी.' 

पहले कॉन्‍सर्ट में जाकिर हुसैन को कितने पैसे मिले थे?

उस्ताद अल्ला रक्खा जैसे महान तबला संगीतकार के बेटे जाकिर हुसैन ने बचपन से ही तबले पर अपनी उंगलियों से संगीत का जादू जगाना शुरू कर दिया था. जाकिर हुसैन का पहला म्यूजिक कॉन्सर्ट जब हुआ था, तब उनकी उम्र महज 11 साल थी. उन्होंने 12 साल की उम्र में अमेरिका में शो किया था. उसमें उन्हें 5 रुपये मिले थे. जाकिर हुसैन ने एक इंटरव्‍यू में कहा था, 'मैंने जीवन में बहुत पैसे कमाए, लेकिन जो 5 रुपये मिले थे वे सबसे ज्यादा कीमती थे. मेरे जीवन की वो पहली कमाई थी. करियर की पहली कमाई मिलने की जो खुशी होती है, उसे शब्‍दों में बयां नहीं किया जा सकता है. वो पांच रुपये मेरे लिए बेशकीमती हैं.' जाकिर हुसैन का सिर्फ संगीत से ही नाता नहीं रहा, उन्होंने अभिनय भी किया. उन्होंने सन 1983 में आई ब्रिटिश फिल्म 'हीट एंड डस्ट' में शशि कपूर के साथ एक भूमिका निभाई थी.

जाकिर हुसैन का आखिरी वीडिया 

जाकिर हुसैन ने अपने आखिरी सोशल मीडिया मैसेज में प्राकृति को महसूस करते हुए देखा गया. इस मैसेज में वह कह रहे हैं, 'पेड़ रंग बदल रहा है, धीरे-धीरे हवा में झूल रहा है...' इस वीडियो को 29 अक्‍टूबर को पोस्‍ट किया गया था. इस वीडियो को देखकर ऐसा लग रहा है कि जाकिर हुसैन को अहसास हो गया था कि उनके जीवन में बदलाव आने वाला है. कुछ होने वाला है. 

बिखरी-बिखरी जुल्‍फें क्‍यों रखते थे जाकिर हुसैन? 

जाकिर हुसैन की पर्सनालिटी ऐसे थी कि हर कोई उनकी ओर खिंचा चला जाता था. खासतौर पर उनके घुंघराले बाल, जिन्‍हें वह ऐसे ही खुला रखते थे, उनके लाखों लोग दीवाने थे. एक बार जब जाकिर हुसैन से पूछा गया था कि क्या आप जानबूझकर अपने बालों को खुला रखते हैं, लोगों को परेशान करने के लिए...? इस सवाल पर मुस्‍कुराते हुए जाकिर हुसैन ने जवाब दिया था, 'जुल्‍फों के बारे में तो यही कहना है- जुल्‍फें संवारने से न बनेगी कोई बात... लोग एक-एक दो घंटे अपनी जुल्फों को संवारने के लिए निकाल देते हैं. हम दो चार घंटे में जुल्फे बिखेर लेते हैं. मैं कभी भी अपने बालों को संवारता नहीं था. मैं  पिछले 15-20 साल से अपने साथ ब्रश रखता जरूर हूं, लेकिन कभी इस्‍तेमाल नहीं करता हूं. नहाने के बाद बालों को ऐसे ही छोड़ देता था. सालों से ऐसा ही चला आ रहा है और आगे भी ऐसा ही चलता रहेगा.'

मां के गाल, रसोई के बर्तन... हर जगह चलती थी अंगुलियां 

जाकिर हुसैन से संगीत का जुड़ाव बचपन से ही था. पिता उस्ताद अल्ला रक्खा जैसे महान तबला वादक थे, इसलिए संगीत उन्‍हें विरासत में मिला. जाकिर हुसैन की जिंदगी पर Zakir and His Tabla Dha Dhin Da नाम की किताब लिखी गई है. इसमें एक किस्‍सा बताया गया है कि जाकिर हुसैन बचपन में कोई भी समतल जगह देखते थे, तो ऊंगलियों से धुन बजाने लगते थे. इस दौरान वह नहीं देखते थे कि वह कहा बैठे हैं. कभी वह अपनी मां के गाल पर, तो कभी कुर्सी की बांह पर थाप देने लगते थे. रसोई के बर्तन भी उनकी अंगुलियों से नहीं बचते थे. तवा, हांडी, थाली, कटोरी सभी पर वह थाप देने लगते थे. वह इस दौरान कई बार खाना रखे बर्तनों को भी पलट देते थें और सब्‍जी उनपर गिर जाती थी. कई बार मां उन्‍हें इस बात के लिए डांटती भी थी और मार भी लगाती थी. 

भारत और विदेश में जाना-माना नाम हुसैन अपने पीछे 60 साल से ज्यादा का संगीत अनुभव छोड़ गए हैं. उन्होंने कुछ महानतम भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संगीतकारों के साथ मंच पर तबला बजाया तथा भारतीय शास्त्रीय एवं विश्व संगीत का ‘फ्यूजन' रचा, जिससे तबले को एक नयी पहचान मिली.

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