राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल (फाइल फोटो)
मुंबई:
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा है कि टाइगर मेमन नहीं मिला तो याकूब को सजा दे दी यह कहना गलत है।
डोभाल ने कहा है कि गुरुवार को वह मुंबई में थे जब नागपुर में याकूब को फांसी दी गई और बाद में उसका शव मुंबई लाया गया था। वह दिन किसी ईवेंट की तरह था। एक नेता के बयान को लेकर किसी ने उन्हें ट्वीट किया था कि "याकूब की फांसी राज्य प्रायोजित क़त्ल था।" उन्होंने कहा कि इस तर्क के हिसाब से सुरक्षा के लिए उठाया गया कानूनी कदम हत्या के तौर पर देखा जा सकता है। यह मूल्यों का विरोधभास है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मुंबई में ललित दोषी मेमोरियल लेक्चर में कहा कि 9/11 हमले के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने कहा था कि हम आजादी के पक्षधर हैं । लेकिन वह देश हित के आड़े नहीं आनी चाहिए। इसलिए यह कहना कि टाइगर मेमन नहीं मिला तो याकूब को फांसी दे दी गई, गलत है। किसी के अपराध को किसी और के अपराध से नहीं जोड़ा जा सकता।
कार्यक्रम के अंत में अजीत डोभाल से सवाल-जवाब का एक सत्र चला। दाऊद इब्राहिम को अभी तक न पकड़े जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह सही है कि हम शक्तिशाली देश हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सेना एक भगोड़े के लिए दूसरे देश पर आक्रमण करे। उसके लिए कानूनी रास्ता है।
एक सवाल में यह भी पूछा गया कि क्या राज्य हिंसा का इस्तेमाल कर सकता है ? राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने दो टूक उत्तर दिया, देश हित में अगर जरूरी हो तो अवश्य।
महात्मा गांधी के अहिंसा के सवाल पर अजीत डोभाल का कहना था वह राष्ट्रपिता की किसी बात पर टिप्पणी नहीं करेंगे। लेकिन इतना जरूर है कि कमजोरी दुश्मन को उत्तेजित करती है, इसलिए खुद को समर्थ और शक्तिशाली बनाना जरूरी होता है। डोभाल ने साफ किया कि राज्य का पहला कर्तव्य सुरक्षा है। सुरक्षा की कोशिश में मूल्यों का विरोधभास स्वाभाविक है।
उफा में पाकिस्तानी सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज से सीधे बातचीत कर विदेश मंत्री के अधिकार का हनन करने के सवाल पर अजीत डोभाल ने कहा कि जानकारी सही नहीं है। लेकिन मैं उसे सही भी नहीं करूंगा। उफा में तय हुआ था कि सीमा पर गोलीबारी नहीं होगी, लेकिन पाकिस्तान की तरफ से की गई। उन्हें यह बताना जरूरी था कि अगर गोली चलेगी तो जवाब भी गोली से मिलेगा।
जब तुरंत बात की दरकार हो तो कौन किससे बात कर रहा यह जरूरी नहीं होता। वैसे भी सुषमा स्वराज वहां नहीं थीं। ऐसे में समय में अगर तत्कालीन जरूरत के हिसाब से कदम उठाने की बजाय अफसरशाही तरीका अपनाएंगे तो आप उस जगह पर रहने लायक नहीं हैं, जहाँ हैं।
डोभाल ने कहा है कि गुरुवार को वह मुंबई में थे जब नागपुर में याकूब को फांसी दी गई और बाद में उसका शव मुंबई लाया गया था। वह दिन किसी ईवेंट की तरह था। एक नेता के बयान को लेकर किसी ने उन्हें ट्वीट किया था कि "याकूब की फांसी राज्य प्रायोजित क़त्ल था।" उन्होंने कहा कि इस तर्क के हिसाब से सुरक्षा के लिए उठाया गया कानूनी कदम हत्या के तौर पर देखा जा सकता है। यह मूल्यों का विरोधभास है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मुंबई में ललित दोषी मेमोरियल लेक्चर में कहा कि 9/11 हमले के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने कहा था कि हम आजादी के पक्षधर हैं । लेकिन वह देश हित के आड़े नहीं आनी चाहिए। इसलिए यह कहना कि टाइगर मेमन नहीं मिला तो याकूब को फांसी दे दी गई, गलत है। किसी के अपराध को किसी और के अपराध से नहीं जोड़ा जा सकता।
कार्यक्रम के अंत में अजीत डोभाल से सवाल-जवाब का एक सत्र चला। दाऊद इब्राहिम को अभी तक न पकड़े जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह सही है कि हम शक्तिशाली देश हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सेना एक भगोड़े के लिए दूसरे देश पर आक्रमण करे। उसके लिए कानूनी रास्ता है।
एक सवाल में यह भी पूछा गया कि क्या राज्य हिंसा का इस्तेमाल कर सकता है ? राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने दो टूक उत्तर दिया, देश हित में अगर जरूरी हो तो अवश्य।
महात्मा गांधी के अहिंसा के सवाल पर अजीत डोभाल का कहना था वह राष्ट्रपिता की किसी बात पर टिप्पणी नहीं करेंगे। लेकिन इतना जरूर है कि कमजोरी दुश्मन को उत्तेजित करती है, इसलिए खुद को समर्थ और शक्तिशाली बनाना जरूरी होता है। डोभाल ने साफ किया कि राज्य का पहला कर्तव्य सुरक्षा है। सुरक्षा की कोशिश में मूल्यों का विरोधभास स्वाभाविक है।
उफा में पाकिस्तानी सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज से सीधे बातचीत कर विदेश मंत्री के अधिकार का हनन करने के सवाल पर अजीत डोभाल ने कहा कि जानकारी सही नहीं है। लेकिन मैं उसे सही भी नहीं करूंगा। उफा में तय हुआ था कि सीमा पर गोलीबारी नहीं होगी, लेकिन पाकिस्तान की तरफ से की गई। उन्हें यह बताना जरूरी था कि अगर गोली चलेगी तो जवाब भी गोली से मिलेगा।
जब तुरंत बात की दरकार हो तो कौन किससे बात कर रहा यह जरूरी नहीं होता। वैसे भी सुषमा स्वराज वहां नहीं थीं। ऐसे में समय में अगर तत्कालीन जरूरत के हिसाब से कदम उठाने की बजाय अफसरशाही तरीका अपनाएंगे तो आप उस जगह पर रहने लायक नहीं हैं, जहाँ हैं।
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