क्या भारत की बढ़ती आबादी में मुसलमानों की तादाद कुछ सालों में हिंदुओं के बराबर हो जाएगी? क्या मुसलमान हिंदुओं से ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं? ऐसे तमाम सवालों को लेकर जारी सियासत के बीच पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने इस मुद्दे पर एक किताब लिखी थी. इसका नाम है- द पॉपुलेशन मिथ : इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया. एसवाई कुरैशी ने एनडीटीवी के साथ खुलकर अपने बयान भी साझा किए हैं.
उनका कहना है कि भारत में जनसंख्या वृद्धि को लेकर सबसे बड़ी भ्रांति ये हैं कि मुसलमान ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं. इसी वजह से जनसंख्या बढ़ रही है, लेकिन तथ्य नहीं है. NFHS की पिछली पांच रिपोर्टों के मुताबिक- हिन्दू और मुसलमानों में बच्चे पैदा करने का अंतर एक बच्चे से ज्यादा कभी नहीं रहा.
NFHS के हिसाब से तीस साल पहले जो गैप 1.1 का वो था अब NFHS 5 के मुताबिक वो 3.0 रह गया है. हिन्दू मुस्लिम प्रजनन दर तकरीबन बराबर आ गया है. अगले पांच से आठ साल में बिल्कुल ही बराबर आ जाएगा. इससे पता चल रहा है कि मुस्लिम महिलाएं तेजी से फैमिली प्लानिंग कर रही हैं. हालांकि उनकी प्रजनन दर ज्यादा तो है लेकिन वे तेजी से कंट्रोल भी कर रहे हैं. 53 प्रतिशत मुसलमान फैमिली प्लानिंग नहीं करते तो वहीं 42 प्रतिशत हिन्दू भी फैमिली प्लानिंग नहीं करते.
उन्होंने आगे बताया कि आखिर किस वजह से लोग फैमिली फ्लानिंग अच्छी कर पाते हैं. पहली शिक्षा खासतौर पर लड़कियों की शिक्षा, जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे बच्चे घटते जाएंगे. दूसरा आमदनी जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती है वैसे-वैसे बच्चे घटते हैं. तीसरा सर्विस, जहां सेवाएं पहुंचेंगी, वहां बच्चे कम होंगे. इन तीनों में ही मुसलमान पिछड़े हैं, लेकिन जो लोग मुसलमानों को बोलते हैं, वे कभी मुसलमानों की शिक्षा की बात नहीं करते, वो मुसलमानों की आमदनी बढ़ाने की बात नहीं करते. बल्कि वे कहते हैं कि उनका बॉयकॉट कर दो इससे तो वो और गरीब हो जाएंगे. इसका नुकसान ही होगा.
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