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बेदाग छवि, मजबूत फैसले, भरोसेमंद वोट बैंक.. समझिए बिहार में एनडीए के लिए क्यों जरूरी हैं नीतीश कुमार

Nitish Kumar News: बिहार में भले ही महागठबंधन एनडीए के सीएम फेस को लेकर बीजेपी पर हमला कर रही हो लेकिन भगवा दल को पता है कि राज्य की राजनीति में नीतीश कुमार कितने जरूरी हैं.

बेदाग छवि, मजबूत फैसले, भरोसेमंद वोट बैंक.. समझिए बिहार में एनडीए के लिए क्यों जरूरी हैं नीतीश कुमार
नीतीश कुमार बिहार में एनडीए के लिए जरूरी
  • बिहार में सीएम नीतीश कुमार एनडीए के लिए हैं बेहद जरूरी
  • विकास वाली छवि, मजबूत वोट बैंक के जरिए नीतीश सभी मुद्दों पर पड़ते हैं भारी
  • बिहार में एनडीए के लिए केवल नीतीशे कुमार हैं, बीजेपी भी इस बात को अच्छे से समझती है
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नई दिल्ली:

छठ पर्व समाप्त होते ही बिहार विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार ने जोर पकड़ लिया है. जहां महागठबंधन ने तेजस्वी प्रण के नाम से अपना घोषणापत्र जारी कर दिया वहीं एनडीए अगले सप्ताह अपने एजेंडा फॉर गवर्नेंस जारी करने जा रहा है. प्रधानमंत्री मोदी भी बिहार पहुंच रहे हैं और तीस अक्तूबर और दो नवंबर को जमकर प्रचार करेंगे जिनमें पटना में एक बड़ा रोड शो भी शामिल है. इस बीच, एनडीए के लिए नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार में सबसे बड़ा चेहरा बन कर सामने आए हैं. विपक्ष पूछ रहा है कि एनडीए नीतीश कुमार को फिर सीएम बनाएगा या नहीं. क्या बीजेपी महाराष्ट्र की ही तरह बिहार में भी सहयोगी दलों को किनारा कर अपना सीएम तो नहीं बना देगी. इन सबके बीच बीजेपी बार-बार कह रही है कि नीतीश कुमार ही एनडीए का चेहरा हैं. वे मुख्यमंत्री थे, हैं और रहेंगे. बीजेपी ने नारा भी दे दिया है- पच्चीस से तीस, मोदी और नीतीश. 
 

नीतीश हैं क्यों जरूरी, समझिए 

यह बताता है कि बिहार की राजनीति के लिए नीतीश कुमार अपरिहार्य हैं. बीस साल के शासन के बावजूद उनकी वोट खींचने की क्षमता कम नहीं हुई है. उनके स्वास्थ्य को लेकर तरह-तरह की बातें की जाती हैं, लेकिन इन बातों का उनके राजनीतिक करिश्मे पर विपरीत असर नहीं हुआ है. जेडीयू के नेताओं का दावा है कि नीतीश कुमार के स्वास्थ्य के बारे में सवाल उठा कर विपक्ष ने अपना ही नुकसान किया है क्योंकि जनता में इससे नीतीश के प्रति सहानुभूति पैदा हो रही है. उनके समर्थक मानते हैं कि यह नीतीश कुमार का आखिरी विधानसभा चुनाव है और ऐसे में उनका खुल कर समर्थन करना जरूरी है. उनके मुताबिक तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से महागठबंधन को कोई अतिरिक्त लाभ नहीं होगा क्योंकि यह मान कर चला जा रहा था कि महागठबंधन के नेता वहीं हैं. इसी तरह लड़ाई नीतीश बनाम तेजस्वी बनाना भी विपक्ष को भारी पड़ेगा क्योंकि नीतीश कुमार का अनुभव और प्रशासनिक क्षमता तेजस्वी से बहुत अधिक है.


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वो फैसले जिससे नीतीश मजबूत 

जेडीयू नेताओं के अनुसार ऐसी कई बातें हैं जो नीतीश कुमार के पक्ष में जा रही हैं. नीतीश कुमार ने कई फैसलों से महिला मतदाताओं को साधा है. चाहे नौकरियों में 33 प्रतिशत आरक्षण हो या फिर पंचायत में पचास प्रतिशत आरक्षण. मुख्यमंत्री रोजगार योजना के माध्यम से 1 करोड़ बीस लाख महिलाओं के बैंक खातों में चुनाव से ठीक पहले और चुनाव के दौरान भी दस हजार रुपए देना मास्टर स्ट्रोक है. यह संख्या दो करोड़ महिलाओं तक पहुंच जाएगी और बिहार के करीब तीन करोड़ परिवारों के हिसाब से देखें तो दो-तिहाई परिवारों में यह रकम आने से बड़ा प्रभाव पड़ेगा. जेडीयू नेताओं के अनुसार यह संदेश भी दिया गया है कि बाद में यह रकम बढ़ाई भी जा सकती है. इसी तरह शराबबंदी पर पुनर्विचार की बात को पूरी तरह से खारिज करके भी महिला मतदाताओं को बड़ा संदेश दिया गया है. दूसरी ओर, महागठबंधन ताड़ी से प्रतिबंध हटाने और शराबबंदी के नियमों को लागू करने के तरीकों पर विचार करने की बात कह रहा है.

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सुशासन वाली छवि 

सुशासन बाबू के रूप में नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी एक अलग छवि बनाई है. यह लालू-राबड़ी के पंद्रह साल के राज के इतर है जिसे एनडीए जंगलराज कहता है. कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारना, सड़क-बिजली-पानी के हालात बेहतर करना, स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर हालात सुधारना, युवाओं को रोजगार और नौकरियां देने के लिए पहल करना, नीतीश कुमार के पिछले दो दशक के कार्यकाल की कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं जिनके चलते बिहार की स्थिति में सुधार हुआ है. अब अगले पांच साल के लिए एक करोड़ रोजगार और नौकरियां देने का वादा किया गया है. युवाओं के पलायन को रोकने के लिए भी कई बड़े कदम उठाने की बात की जा रही है.
 

नीतीश का मजबूत वोट बैंक 

इसी तरह नीतीश कुमार ने बिहार में अपना एक अलग वोट बैंक तैयार किया है. कुर्मी-कोइरी-कुशवाहा के अलावा उन्होंनें गैर यादव ओबीसी और अति पिछड़े वर्ग को मजबूती से एनडीए में जोड़ा है. महादलित श्रेणी बना कर इस वर्ग के लिए कई बड़ी योजनाओं की शुरुआत कर मजबूती से अपने साथ खड़ा कर लिया. वहीं बीजेपी सामान्य वर्ग के मतदाताओं को एनडीए के पाले में लाती है. इस तरह महागठबंधन के मुस्लिम-यादव वोट के आगे एनडीए का अपना इंद्रधनुषी जातीय गठजोड़ खड़ा है जो उसकी स्थिति को मजबूत करता है.
 

बिहार सीएम की छवि बेदाग 

हालांकि पिछले कुछ महीनों से उनके स्वास्थ्य की खबरों और सार्वजनिक मंचों पर उनके कुछ क्रियाकलापों से ऐसा संदेश गया कि सरकार से उनकी पकड़ ढीली हो रही है. इसीलिए विपक्ष आरोप लगाता है कि इस कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला क्योंकि कुछ मंत्रियों को मनमानी करने का मौका मिल गया. हालांकि इतने वर्षों तक सरकार की कमान संभालने के बावजूद नीतीश कुमार की छवि बेदाग है. फिर भी, एंटी इंकमबेंसी से बचने के लिए कई मंत्रियों और विधायकों के टिकट काटे गए हैं. नीतीश कुमार ने अपने परिवार को राजनीति से दूर रख कर भी वंशवाद के आरोप स्वयं पर नहीं लगने दिए. यह बात उनके पक्ष में जाती है क्योंकि दूसरी ओर महागठबंधन की अगुवाई लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव कर रहे हैं.
 

बीजेपी का भी आकलन समझिए 

यही सब कारण हैं जो नीतीश कुमार को बिहार में एनडीए का निर्विवादित नेता बनाते हैं. 2015 में बीजेपी अलग चुनाव लड़ कर देख चुकी है. उसका अपना अंदरूनी आकलन भी यही कहता है कि बिहार में नीतीश को साथ लेकर ही सरकार बनाई जा सकती है. इसीलिए चाहे बीजेपी बिहार में छोटे भाई से जुड़वा भाई की भूमिका में आ चुकी हो, लेकिन महाराष्ट्र की तरह बड़ा भाई बनने से पहले बहुत सोच-विचार करेगी.

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