झारखंड में कांग्रेस विधायक शिल्पी नेहा तिर्की के एक बयान पर विवाद पैदा हो गया है.उन्होंने राज्य में बांग्लादेशी नागरिकों के घुसपैठ के मुद्दे पर कहा कि डेमोग्राफी चेंज पूरे झारखंड में हुआ है. उन्होंने कहा कि रामगढ़ में बिहारी लोग मुखिया बन रहे हैं, लोग इस पर बात क्यों नहीं करते हैं. इसके बाद संथाल के बारे में भी हम बात करेंगे. दरअसल राज्य में आदिवासियों की घटती जनसंख्या पर चिंता जताई जा रही है. आदिवासी बहुल झारखंड में स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा काफी पुराना है. इससे निपटने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार ने स्थानीयता को परिभाषित करने के लिए विधेयक पारित किया है.इसमें स्थानीयता के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाया गया है.
किस बयान पर बढ़ा है विवाद
कांग्रेस विधायक शिल्पी नेहा तिर्की ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि डेमोग्राफी चेंज पूरे झारखंड में हुआ है,रामगढ़ में बिहारी लोग मुखिया बन रहे हैं,लोग इस पर बात क्यों नहीं करते हैं. इसके बाद संथाल के बारे में भी हम बात करेंगे.बीजेपी पर हमला बोलते हुए कांग्रेस विधायक ने कहा कि सबसे ज्यादा वक्त तक ये लोग सत्ता में थे.साल 1985 आधारित डोमिसाइल नीति लाकर अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों को भी इन्होंने रेसिडेंशियल सर्टिफिकेट दे दिया.यहां के आदिवासी-मूलवासियों को शहर और आलीशान भवनों से दूर किसी कोने-खोमचे में समेट दिया गया है.
दरअसल गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और प्रदेश बीजेपी प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने संताल परगना के कुछ जिलों में मुस्लिम आबादी बढ़ने का हवाला देते हुए इसे बांग्लादेशी घुसपैठ बताया था. तिर्की से बीजेपी नेताओं के इन्हीं बयानों पर प्रतिक्रिया मांगी गई थी. वहीं तिर्की के पिता और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा कि घुसपैठ का विरोध हर स्तर पर होना चाहिए. केंद्र सरकार को अपनी एजेंसियों के माध्यम से बीएसएफ अधिकारियों से पूछना चाहिए कि उनके रहते हुए आखिर बांग्लादेश से घुसपैठ कैसे हो रहा है.
क्या चुनाव में मुद्दा बनेगा डेमोग्रेफी में बदलाव
कांग्रेस विधायक के बयान पर बीजेपी प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कांग्रेस विधायक के बयान को ओछा बयान बताया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस विधायक ने बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की तुलना बिहार से आकर बसे लोगों से कर दी है. लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि देश के बाहर से जो मुस्लिम घुसपैठिए आए हैं, हम उस पर सवाल उठा रहे हैं, जबकि वो बिहार के लोगों का अपमान कर इस मामले को अलग रंग देने की कोशिश कर रही हैं.
डेमोग्राफी में आए बदलाव पर जिस तरह की राजनीति हो रही है, उससे लग रहा है कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा हो सकता है.
झारखंड में स्थानीय बनाम बाहरी
नवंबर 2000 में झारखंड राज्य बनने के बाद से ही राज्य में स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा उठ खड़ा हुआ था. इससे निपटने के लिए 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने 1932 के खतियान को आधार बनाने की कोशिश की. लेकिन हिंसक आंदोलन शुरू हो जाने के बाद उस पर कुछ हो नहीं पाया.उसके बाज सीएम बने अर्जुन मुंडा ने सुदेश महतो की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनाई थी, लेकिन उस पर कुछ नहीं हुआ. फिर 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने स्थानीय नीति को परिभाषित करते हुए 1985 से झारखंड में रहने वालों को स्थानीय माना. लेकिन 2019 में सत्ता में आई झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार ने 1932 के खतियान को स्थानीयता का आधार बनाने के लिए नवंबर 2022 विधेयक लेकर आई. लेकिन केंद्र ने उसे लौटा दिया. इसके बाद हेमंत सोरेन सरकार ने उसमें संशोधन किए बिना ही दिसंबर 2022 में एक बार फिर विधानसभा से पारित कराकर केंद्र सरकार को भेजा है.
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