भारत ने इजरायल-हमास युद्ध में 'संघर्ष विराम' की मांग वाले UN के प्रस्ताव पर क्यों नहीं किया मतदान?

Israel Hamas War: इजराइल-हमास जंग से जुड़े प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहे भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि आतंकवाद ‘हानिकारक’ है और उसकी कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं है तथा दुनिया को आतंकवादी कृत्यों को जायज ठहराने वालों की बातों को तवज्जो नहीं देनी चाहिए.

नई दिल्‍ली :

Israel Hamas War: इजरायल ने गाजा पट्टी में हमास के खिलाफ हमले तेज कर दिये हैं. अब तक हजारों लोग इस जंग में मारे जा चुके हैं. ये युद्ध कब रुकेगा, कह पाना बड़ा मुश्किल है. इस बीच भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा ( UN General Assembly Resolution) के उस प्रस्ताव में मतदान नहीं किया, जिसमें इज़रायल-हमास युद्ध में तत्काल मानवीय संघर्ष विराम की बात कही गई थी. मतदान से अनुपस्थित रहने के अपने फैसले के बारे में बताते हुए भारत ने कहा कि प्रस्ताव में हमास का जिक्र नहीं है और संयुक्त राष्ट्र को आतंक के खिलाफ स्पष्ट संदेश भेजने की जरूरत है.

संयुक्त राष्ट्र में भारत की उप स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने कहा, "हमें उम्मीद है कि इस सभा के विचार-विमर्श से आतंक और हिंसा के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश जाएगा और हमारे सामने मौजूद मानवीय संकट को संबोधित करते हुए कूटनीति और बातचीत की संभावनाओं का विस्तार होगा." 

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मसौदा प्रस्ताव में संघर्ष को तत्काल रोकने और गाजा पट्टी में निर्बाध मानवीय पहुंच का आह्वान किया गया था, जो इजरायल के हवाई हमलों का लक्ष्य रहा है.

जॉर्डन ने रखा था प्रस्ताव 
भारत संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘आम नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी एवं मानवीय दायित्वों को कायम रखने' शीर्षक वाले जॉर्डन के मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहा. इस प्रस्ताव में इजराइल-हमास युद्ध में तत्काल मानवीय संघर्ष-विराम और गाजा पट्टी में निर्बाध मानवीय पहुंच सुनिश्चित करने का आह्वान किया गया था. संयुक्त राष्ट्र की 193 सदस्यीय महासभा ने उस प्रस्ताव को अपनाया, जिसमें तत्काल, टिकाऊ और निरंतर मानवीय संघर्ष-विराम का आह्वान किया गया है, ताकि शत्रुता समाप्त हो सके.

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44 सदस्य मतदान से दूर रहे
प्रस्ताव के पक्ष में 121 देशों ने मत किया, 44 सदस्य मतदान से दूर रहे और 14 सदस्यों ने इसके खिलाफ वोट दिया. प्रस्ताव में पूरी गाजा पट्टी में आम नागरिकों को आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं का तत्काल, निरंतर, पर्याप्त और निर्बाध प्रावधान करने की मांग की गई थी. संयुक्त राष्ट्र में भारत की उप स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने मतदान पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि ऐसी दुनिया में जहां मतभेदों और विवादों को बातचीत से हल किया जाना चाहिए, इस प्रतिष्ठित संस्था को हिंसा का सहारा लेने की घटनाओं पर गहराई से चिंतित होना चाहिए.

"आतंकवाद की कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं"
योजना  पटेल ने कहा, "हिंसा जब इतने बड़े पैमाने और तीव्रता पर होती है, तो यह बुनियादी मानवीय मूल्यों का अपमान है." उन्होंने कहा कि राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में हिंसा का इस्तेमाल भारी नुकसान पहुंचाता है और यह किसी भी टिकाऊ समाधान का मार्ग प्रशस्त नहीं करती. पटेल ने इजराइल में सात अक्टूबर को हुए आतंकवादी हमलों को चौंकाने वाला बताते हुए कहा कि ये हमले निंदनीय हैं. मतदान के बारे में भारत के स्पष्टीकरण में हमास का उल्लेख नहीं किया गया. पटेल ने कहा, "आतंकवाद हानिकारक है और इसकी कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं होती. दुनिया को आतंकवादी कृत्यों को जायज ठहराने की कोशिश करने वालों पर गौर नहीं करना चाहिए. आइए, हम मतभेदों को दूर रखें, एकजुट हों और आतंकवाद को कतई बर्दाश्त न करने का दृष्टिकोण अपनाएं."

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प्रस्‍ताव के पक्ष-विपक्ष में खड़े दिखे ये प्रमुख देश
शुरुआत में इराक प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहा था, लेकिन बाद में वोटिंग के समय ‘तकनीकी समस्या' का हवाला देते हुए उसने इसके पक्ष में मतदान किया. प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने वाले देशों में इजराइल और अमेरिका शामिल थे. चीन, फ्रांस और रूस ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि कनाडा, जर्मनी, जापान, यूक्रेन और ब्रिटेन अनुपस्थित रहे.

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