सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जताई है कि पूर्व और वर्तमान जजों के खिलाफ यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए एक स्थायी तंत्र होना चाहिए।
इससे पूर्व, अदालत ने कहा था कि उसके पास पूर्व जजों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए कोई प्रशासनिक नियंत्रण नहीं है, इसलिए वह पूर्व जजों के खिलाफ इस तरह के मामलों को सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं कर सकती। अदालत के इस रुख की कड़ी आलोचना हुई थी और कहा गया था कि यह जिम्मेदारी से भागने जैसा प्रयास है।
हाल ही के दिनों में सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व जजों के खिलाफ इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें उन्हीं के साथ इंटर्न के तौर पर काम कर रही महिलाओं ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए। पिछले ही हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज ने अपने खिलाफ उनकी एक पूर्व महिला इंटर्न द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया था। पूर्व इंटर्न का आरोप था कि जज ने पिछले साल अगस्त में उसका यौन शोषण किया था और उस समय वह सुप्रीम कोर्ट के जज थे।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि वह पूर्व जज के खिलाफ इंटर्न की शिकायतों पर कोई विचार व्यक्त नहीं कर रहा है, लेकिन कोर्ट ने सवाल किया कि इंटर्न इतने विलंब से यह आरोप क्यों लगा रही है।
जजों ने नामी वकील फली नरीमन तथा केके वेणुगोपाल से इस बारे में सुझाव मांगे कि यौन शोषण से जुड़े मामलों को कैसे चलाया जाना चाहिए और उनकी जांच कैसे होनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल के अंत में जस्टिस एके गांगुली को भी सुप्रीम कोर्ट की एक समिति ने अपनी तत्कालीन महिला इंटर्न के साथ गलत शाब्दिक तथा शारीरिक व्यवहार का दोषी बताया था। गांगुली ने बाद में इसी महीने पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
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