बीबी जगदीश कौर के पति और बेटे को 1984 के दंगों में जलाकर मार डाला गया था.
नई दिल्ली:
कांग्रेस के नेता सज्जन कुमार को सन 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में आजीवन कारावास की सजा मिलते ही बीबी जगदीश कौर का नाम चर्चा में आ गया है. जगदीश कौर 34 साल पहले सिखों पर हुए जुल्मों के खिलाफ लड़ाई की नायिका के रूप में चर्चा में आ गई हैं. कौन हैं जगदीश कौर और कैसा संघर्ष उन्हें करना पड़ा? यह यहां जानिए विस्तार से..
देश में सन 1984 में जहां प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की काली इबारत लिखी गई वहीं सिखों के खिलाफ भारतीय समाज को शर्मसार करने वाले दंगों की घटनाएं हुईं. 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. उनकी हत्या उन्हीं के सुरक्षा गार्डों ने की, जो कि सिख थे. इसके बाद सिखों के खिलाफ दंगे भड़के. दंगे देश भर में हुए लेकिन इनके केंद्र में राजधानी दिल्ली थी. देश भर में सैकड़ों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया. सबसे ज्यादा मौतें दिल्ली में हुईं.
बीबी जगदीश कौर नाम की महिला, जो कि सन 1984 में 46 साल की थीं, दिल्ली कैंट के राजनगर में अपने परिवार के साथ रहती थीं. दंगों की आग उनके घर तक भी पहुंच गई. एक नवंबर को दंगे शुरू होने पर सरकारी दफ्तरों में छुट्टी हो गई. जगदीश कौर के पति केहर सिंह दोपहर बारह बजे घर लौट आए. वे परिवार के साथ बैठी थीं कि पड़ोसियों ने बताया कि शहर में सिखों को मारा जा रहा है. पड़ोसियों ने उन्हें अपने बच्चों को कहीं सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की सलाह दी. इस पर इस सिख परिवार ने चार बच्चों को पड़ोस के हिंदू परिवार के घर भेज दिया.
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जब दिल्ली दंगों की आग से जल रही थी तब अनजान आशंका से डरी हुईं जगदीश कौर अपने पति केहर सिंह व 18 वर्षीय बेटे गुरप्रीत सिंह के साथ घर में छुपकर बैठी थीं. दोपहर में करीब एक बजे अचानक दरवाजा खुला और दंगाई अंदर घुस गए. उनके सिर पर खून सवार था. दंगाइयों का नेतृत्व सज्जन कुमार कर रहा था. उसके साथ कांग्रेस के स्थानीय नेता भी थे. उन्होंने जगदीश कौर के पति, बेटे और मामा के तीन बेटों रघुविंदर सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह को जलाकर मार डाला. वे इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने घर में आग भी लगा दी. अपने पति और बेटे को अपनी आंखों के सामने जलकर मरते हुए देखकर जगदीश कौर कांप रहीं थीं. उनके चार अन्य बच्चे पड़ोसी के घर में थे. उनकी चिंता में वे बदहवास हालत में घर से बाहर निकलीं. इलाके में चारों तरफ हिंसा और आगजनी हो रही थी.
जान बचाने के लिए संघर्ष करतीं जगदीश कौर अपने चार बच्चों को लेकर यहां-वहां भटकती रहीं. जब कुछ हालात सुधरे तो वे तीन नवंबर को अपने घर लौटीं. घर में तीन दिन बाद भी पति, बेटे और मामा के बेटों के अधजले शव वहीं पड़े हुए मिले. इस विकट स्थिति में भी संयम बरतते हुए उन्होंने घर की अधजली लकड़ियां, कपड़े वगैरह शवों पर रखे और उनको आग लगाकर मृतकों का अंतिम संस्कार किया. जले हुए घर में यह अंतिम संस्कार किया गया.
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दिल्ली कैंट में दंगाइयों का नेतृत्व कांग्रेस नेता व सांसद सज्जन कुमार ने किया यह सबको पता था लेकिन उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बना. दंगे के बाद पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए दंगाइयों को अज्ञात लिखा. बीबी जगदीश कौर ने तीन नवंबर 1984 को पुलिस थाने में शिकायत की और सज्जन कुमार का नाम बताया. इसके बाद उन्होंने एक बार फिर शिकायत दी लेकिन पुलिस ने मामले में दंगाइयों की भीड़ के साथ 'एक प्रमुख नेता' लिखकर सज्जन कुमार का नाम दबा दिया. पुलिस के इस रुख के बावजूद जगदीश कौर हारीं नहीं और उन्होंने कांग्रेस नेता समेत सभी दंगाइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का निश्चय कर लिया. उन्होंने नानावती आयोग में शिकायत दी. आयोग में पूछताछ हुई तो उन्होंने सांसद सज्जन कुमार का नाम बताया.
जगदीश कौर एक माह बाद दिसंबर 1984 में अमृतसर चली गईं. उन्होंने बच्चों को अपने मायके गुरदासपुर भेजा और खुद तीन माह तक सराय में रुकीं. बाद में वे गुरुनानकवाड़ा में किराये के घर में रहने लगीं. जगदीश कौर ने बच्चों के पालन-पोषण और गुजारे के लिए कपड़े बेचे और जरूरत पड़ने पर कर्ज भी लिया. बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने के लिए संघर्ष करती रहीं जगदीश कौर दंगाइयों को फांसी पर चढ़ते हुए देखना चाहती थीं.
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इस दौरान दंगों के मामले में उन्हें दिल्ली से समन भेजे गए लेकिन वे दिल्ली नहीं आईं. उन्हें डर था कि दिल्ली में उनकी हत्या हो सकती है. उन्होंने अपना प्रकरण अमृतसर स्थानांतरित करने की मांग की लेकिन पुलिस ने इससे इनकार कर दिया. साल 2005 में उनका केस सीबीआई को मिला. इसके बाद जगदीश कौर के बयान, नानावती कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर सज्जन कुमार, कांग्रेस नेता कैप्टन भागमल, पूर्व एमएलए महेंद्र यादव, गिरधारी लाल, कृष्ण खोखर और पूर्व पार्षद बलवंत खोखर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.
बीबी जगदीश कौर ने न्याय के लिए बहुत लंबी लड़ाई लड़ी. वे दंगे की प्रत्यक्षदर्शी गवाह हैं. उन्होंने सभी आरोपियों को करीब से देखा था. उन्होंने अदालत में दंगाइयों को पहचान लिया. दिल्ली कैंट में बलवान खोखर पार्षद था. कोर्ट ने कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और बलवंत खोखर को उम्रकैद की सजा सुनाई है. महेंद्र यादव और कृष्ण खोखर को तीन साल की सजा दी गई है. मामले के मुख्य आरोपी सज्जन कुमार को उम्र कैद की सजा दी गई है.
VIDEO : अदालत के फैसले से थोड़ा सुकून मिला
सन 1984 से न्याय के लिए संघर्ष करती रहीं जगदीश कौर अब 80 साल की हैं. 34 साल बाद जब उन्हें न्याय मिला तो उनकी आंखों में आंसू थे. हालांकि जगदीश कौर इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं. उनका कहना है कि सज्जन कुमार के लिए आजीवन कारावास कम है. उसको फांसी पर लटका देना चाहिए.
देश में सन 1984 में जहां प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की काली इबारत लिखी गई वहीं सिखों के खिलाफ भारतीय समाज को शर्मसार करने वाले दंगों की घटनाएं हुईं. 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. उनकी हत्या उन्हीं के सुरक्षा गार्डों ने की, जो कि सिख थे. इसके बाद सिखों के खिलाफ दंगे भड़के. दंगे देश भर में हुए लेकिन इनके केंद्र में राजधानी दिल्ली थी. देश भर में सैकड़ों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया. सबसे ज्यादा मौतें दिल्ली में हुईं.
बीबी जगदीश कौर नाम की महिला, जो कि सन 1984 में 46 साल की थीं, दिल्ली कैंट के राजनगर में अपने परिवार के साथ रहती थीं. दंगों की आग उनके घर तक भी पहुंच गई. एक नवंबर को दंगे शुरू होने पर सरकारी दफ्तरों में छुट्टी हो गई. जगदीश कौर के पति केहर सिंह दोपहर बारह बजे घर लौट आए. वे परिवार के साथ बैठी थीं कि पड़ोसियों ने बताया कि शहर में सिखों को मारा जा रहा है. पड़ोसियों ने उन्हें अपने बच्चों को कहीं सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की सलाह दी. इस पर इस सिख परिवार ने चार बच्चों को पड़ोस के हिंदू परिवार के घर भेज दिया.
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जब दिल्ली दंगों की आग से जल रही थी तब अनजान आशंका से डरी हुईं जगदीश कौर अपने पति केहर सिंह व 18 वर्षीय बेटे गुरप्रीत सिंह के साथ घर में छुपकर बैठी थीं. दोपहर में करीब एक बजे अचानक दरवाजा खुला और दंगाई अंदर घुस गए. उनके सिर पर खून सवार था. दंगाइयों का नेतृत्व सज्जन कुमार कर रहा था. उसके साथ कांग्रेस के स्थानीय नेता भी थे. उन्होंने जगदीश कौर के पति, बेटे और मामा के तीन बेटों रघुविंदर सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह को जलाकर मार डाला. वे इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने घर में आग भी लगा दी. अपने पति और बेटे को अपनी आंखों के सामने जलकर मरते हुए देखकर जगदीश कौर कांप रहीं थीं. उनके चार अन्य बच्चे पड़ोसी के घर में थे. उनकी चिंता में वे बदहवास हालत में घर से बाहर निकलीं. इलाके में चारों तरफ हिंसा और आगजनी हो रही थी.
जान बचाने के लिए संघर्ष करतीं जगदीश कौर अपने चार बच्चों को लेकर यहां-वहां भटकती रहीं. जब कुछ हालात सुधरे तो वे तीन नवंबर को अपने घर लौटीं. घर में तीन दिन बाद भी पति, बेटे और मामा के बेटों के अधजले शव वहीं पड़े हुए मिले. इस विकट स्थिति में भी संयम बरतते हुए उन्होंने घर की अधजली लकड़ियां, कपड़े वगैरह शवों पर रखे और उनको आग लगाकर मृतकों का अंतिम संस्कार किया. जले हुए घर में यह अंतिम संस्कार किया गया.
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दिल्ली कैंट में दंगाइयों का नेतृत्व कांग्रेस नेता व सांसद सज्जन कुमार ने किया यह सबको पता था लेकिन उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बना. दंगे के बाद पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए दंगाइयों को अज्ञात लिखा. बीबी जगदीश कौर ने तीन नवंबर 1984 को पुलिस थाने में शिकायत की और सज्जन कुमार का नाम बताया. इसके बाद उन्होंने एक बार फिर शिकायत दी लेकिन पुलिस ने मामले में दंगाइयों की भीड़ के साथ 'एक प्रमुख नेता' लिखकर सज्जन कुमार का नाम दबा दिया. पुलिस के इस रुख के बावजूद जगदीश कौर हारीं नहीं और उन्होंने कांग्रेस नेता समेत सभी दंगाइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का निश्चय कर लिया. उन्होंने नानावती आयोग में शिकायत दी. आयोग में पूछताछ हुई तो उन्होंने सांसद सज्जन कुमार का नाम बताया.
जगदीश कौर एक माह बाद दिसंबर 1984 में अमृतसर चली गईं. उन्होंने बच्चों को अपने मायके गुरदासपुर भेजा और खुद तीन माह तक सराय में रुकीं. बाद में वे गुरुनानकवाड़ा में किराये के घर में रहने लगीं. जगदीश कौर ने बच्चों के पालन-पोषण और गुजारे के लिए कपड़े बेचे और जरूरत पड़ने पर कर्ज भी लिया. बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने के लिए संघर्ष करती रहीं जगदीश कौर दंगाइयों को फांसी पर चढ़ते हुए देखना चाहती थीं.
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इस दौरान दंगों के मामले में उन्हें दिल्ली से समन भेजे गए लेकिन वे दिल्ली नहीं आईं. उन्हें डर था कि दिल्ली में उनकी हत्या हो सकती है. उन्होंने अपना प्रकरण अमृतसर स्थानांतरित करने की मांग की लेकिन पुलिस ने इससे इनकार कर दिया. साल 2005 में उनका केस सीबीआई को मिला. इसके बाद जगदीश कौर के बयान, नानावती कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर सज्जन कुमार, कांग्रेस नेता कैप्टन भागमल, पूर्व एमएलए महेंद्र यादव, गिरधारी लाल, कृष्ण खोखर और पूर्व पार्षद बलवंत खोखर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.
बीबी जगदीश कौर ने न्याय के लिए बहुत लंबी लड़ाई लड़ी. वे दंगे की प्रत्यक्षदर्शी गवाह हैं. उन्होंने सभी आरोपियों को करीब से देखा था. उन्होंने अदालत में दंगाइयों को पहचान लिया. दिल्ली कैंट में बलवान खोखर पार्षद था. कोर्ट ने कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और बलवंत खोखर को उम्रकैद की सजा सुनाई है. महेंद्र यादव और कृष्ण खोखर को तीन साल की सजा दी गई है. मामले के मुख्य आरोपी सज्जन कुमार को उम्र कैद की सजा दी गई है.
VIDEO : अदालत के फैसले से थोड़ा सुकून मिला
सन 1984 से न्याय के लिए संघर्ष करती रहीं जगदीश कौर अब 80 साल की हैं. 34 साल बाद जब उन्हें न्याय मिला तो उनकी आंखों में आंसू थे. हालांकि जगदीश कौर इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं. उनका कहना है कि सज्जन कुमार के लिए आजीवन कारावास कम है. उसको फांसी पर लटका देना चाहिए.
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