
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ अधिनियम को लेकर बेहद अहम सुनवाई चल रही है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के बीच इस मुद्दे पर तीखी बहस अदालत में हुई. बुधवार को SG तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखा. SG मेहता ने आज के तर्क में विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर “झूठी कहानियाँ” फैलाई जा रही हैं.
SG तुषार मेहता ने दिया ऐतिहासिक संदर्भ: SG तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि 1923, 1954 और 1995 के वक्फ अधिनियमों में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान था कि कोई भी व्यक्ति वक्फ संपत्ति का पंजीकरण करा सकता है. इसके लिए किसी दस्तावेज की अनिवार्यता नहीं थी. उन्होंने यह भी कहा कि यह झूठ फैलाया जा रहा है कि अब लोगों को संपत्ति के दस्तावेज देने होंगे या वक्फ पर जबरन कब्जा हो जाएगा. वास्तव में, पंजीकरण की प्रक्रिया पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए थी, न कि दमन का साधन.
खातों का वार्षिक विवरण और ऑडिट: सरकार की तरफ से SG मेहता ने कहा कि हमने 1923 से चली आ रही बुराई को खत्म की. हर हितधारक की बात सुनी गई. मेहता ने बताया कि वक्फ की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए 1923 के कानून में ही वैधानिक ऑडिट की व्यवस्था कर दी गई थी. मुत्तवल्ली को हर साल वक्फ की संपत्ति और आय का पूरा विवरण देना होता था. याचिकाकर्ता ने इस पर तर्क दिया कि इस प्रावधान का कोई असर नहीं हुआ, लेकिन अदालत ने माना कि यह दायित्व महत्त्वपूर्ण था. CJI गवई ने कहा कि सिब्बल तकनीकी रूप से सही हैं, लेकिन मेहता ने इसका विरोध किया और इसे कानून की गलत व्याख्या कहा.
SG तुषार मेहता ने कहा परामर्श के बाद बना है कानून: कई राज्य सरकारों से परामर्श किया गया वक्फ बोर्ड से परामर्श किया गया. जेपीसी ने हर खंड में दर्ज किया है कि वक्फ बोर्ड किस खंड से सहमत है या नहीं है. विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई-कुछ सुझाव स्वीकार किए गए या स्वीकार नहीं किए गए. जब धाराओं में संशोधन के लिए सुझाव दिए गए, तो विधेयक को पेश किया गया और अभूतपूर्व बहुमत से पारित किया गया. मेहता ने कहा कि वक्फ, अपने स्वभाव से ही एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है.
वक्फ कानूनों का ऐतिहासिक विकास और प्रशासनिक बदलाव: मेहता ने बताया कि 1954 का वक्फ अधिनियम स्वतंत्र भारत में पहला व्यापक कानून था. इसमें 1923 के कानून की तुलना में एक और परत जोड़ी गई थी. वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण. अब यदि कोई पंजीकरण नहीं कराता, तो प्रशासन स्वतः सर्वेक्षण करेगा. पहले इन मामलों की निगरानी अदालत करती थी, लेकिन अब यह जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड को दे दी गई है. इससे कानून की निगरानी और अनुपालन की व्यवस्था और सशक्त हुई है.
यह कानून संतुलन बनाने की कोशिश है: SG मेहता ने आज के तर्क में विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर “झूठी कहानियाँ” फैलाई जा रही हैं. जैसे कि सामूहिक कब्जे या दस्तावेजों की अनिवार्यता. उन्होंने कहा कि राज्य 140 करोड़ नागरिकों की ओर से सार्वजनिक संपत्तियों का संरक्षक है. यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि किसी भी धार्मिक संस्था को गैरकानूनी लाभ न मिले और सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग रोका जाए. यह कानून संतुलन बनाने की कोशिश है, न कि हस्तक्षेप.