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दादी-पोती ने जोड़े हाथ तो रक्षक बन गए गजराज, वायनाड में कुदरत की तबाही के बीच चमत्कार की 5 कहानियां

सुजाता ने बताया कि जंगली हाथी से वैसे ही बात की जैसे किसी इंसान से करते हैं. हाथी से कहा कि हमने सबकुछ खो दिया है. हम पर हमला मत करना. इसके बाद उसके बगल में हमने पूरी रात बिताई. हालांकि उनके सामने ही उनकी पूरी बसी-बसाई दुनिया उजड़ गई थी.

दादी-पोती ने जोड़े हाथ तो रक्षक बन गए गजराज, वायनाड में कुदरत की तबाही के बीच चमत्कार की 5 कहानियां

केरल के वायनाड में भूस्खलन से मची तबाही शायद ही वहां के बाशिंदे भूल पाएंगे, जिसने सैकड़ों जिंदगियों को लील लिया, घर-के-घर उजड़ गए. इतने भीषण हादसे में बहुत से लोग अपने रिश्तेदारों को मलबे में ढूंढ रहे हैं. वहीं बहुत से ऐसे भी हैं जिन्हें खुद का बचना किसी चमत्कार से कम नहीं लग रहा. ऐसे ही मेप्पाडी में राहत शिविर से पत्रकारों से बात करते हुए एक बुजुर्ग महिला सुजाता ने बताया कि कैसे उन्होंने और उनकी पोती ने एक जंगली हाथी के बगल में रात बिताई और सुरक्षित रहीं. उन्होंने जंगली हाथी से वैसे ही बात की जैसे किसी इंसान से करते हैं. हाथी से कहा कि हमने सबकुछ खो दिया है. हम पर हमला मत करना. इसके बाद उसके बगल में हमने पूरी रात बिताई. हालांकि उनके सामने ही उनकी पूरी बसी-बसाई दुनिया उजड़ गई थी. वह वहीं चाय के बगान में काम करती थीं. उन्होंने बताया कि जब भूस्खलन हुआ तो वह किसी तरह अपने टूटे हुए घर से बच पाईं. इसके बाद वह नजदीक की पहाड़ी की ओर भागीं. जैसे ही उन्हें लगा कि वह सुरक्षित स्थान पर पहुंच गई हैं, उन्होंने खुद को एक हाथी के पास खड़े हुए पाया.सुजाता के सिर में पेड़ की डाली से चोट लगी थी, लेकिन वह और उनकी पोती मृदुला बिल्कुल सुरक्षित रिलीफ कैंप में मौजूद थीं. वहीं परिवार के अन्य सदस्य गंभीर रूप से घायल हैं और उनका इलाज अस्पताल में चल रहा है. सुजाता के मुताबिक- जब ये हादसा हुआ तो उस समय परिवार के पांच लोग घर में थे. सुजाता, उनका बेटा गिगीश, बहू सुजीता और पोता सूरज और पोती मृदुला. परिवार सो रहा था जब पानी उनके घर में अचानक घुसा. बेटे गिगीश ने परिवार के सभी सदस्यों को बचाया.

सूझबूझ से बचाई परिवार की जान

पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर मोहम्मद बासिल (25) ने बताया कि भूस्खलन से 10 मिनट पहले ही उनके परिवार ने सूझबूझ दिखाते हुए जंगलों में भागकर पहाड़ियों पर चले गए. इस फैसले के चलते बेसिल, उनकी मां सुहारा (53) और पिता अब्दुल हामिद (57) की जान बच गई.उन्होंने बताया कि मेरा घर नदी के ऊपरी छोर पर है. भारी बारिश के कारण हमारा यहां सोना मुश्किल हो रहा था तो हमने चाचा के घर में शरण ली, जो सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर था.हालांकि वहां पहुंचने के कुछ देर बाद ही वहां भी पानी के तेज बहाव की आवाजें आने लगी और वह घर भी हिलने लगा. मलबे से मेरे चाचा के घर के दरवाजे अटक कर बंद हो गए. हमने पूरी ताकत से उन्हें खोला और जल्द से जल्द पहाड़ी पर चढ़कर जंगल में पहुंच गए. पानी का तेज बहाव हमारे घर को बहाकर ले गया.जंगल में कई घंटे गुजराने के बाद उसके माता-पिता ने सुबह 3 बजे के आसपास ट्री वैली रिजॉर्ट में शरण ली.अगर देर की होती तो ना जाने क्या होता.

आंखों के सामने ही पत्थरों के नीचे समा गया घर 

इसके साथ ही जीवित बचे सिराजुद्दीन ने बताया कि उनकी नजरों के सामने उनका घर और आजीविका का एकमात्र साधन ऑटोरिक्शा इस आपदा में बड़े-बड़े पत्थरों के नीचे दब गया.  उन्होंने बताया कि मंगलवार की सुबह उन्हें तेज आवाजें और बहता हुआ पानी सुनाई दिया.जब उन्होंने देखा कि घर में कीचड़ से भरा पानी घुसता जा रहा है तो वह भागकर ऊंची जगह पर चले गए. इसके बाद उनकी नजरों के सामने ही बड़े बड़े हत्थरों और पेड़ों से उनके घर की एक एक चीज कुचली गई और ऑटोरिक्शा भी टूट गया.

एक सेकंड भी वेस्ट नहीं किया पहाड़ पर भाग गए

चूरलमाला के गणेश भी उन लोगों में से एक हैं जिनकी जान इसमें बची. उन्होंने कहा कि वह सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं और सोमवार देर रात घर आए थे. जब घर पहुंचे तो उन्होंने कीचड़ से भरा पानी देखा. उन्होंने एक सेकंड भी वेस्ट नहीं किया और पत्नी को जगाकर पास की पहाड़ी पर चले गए. गणेश ने इस आपदा में अपनी बहन, जीजा, बहन के बेटे-बहू, पोते-पोतियों को भी खो दिया. उन्होंने उस रात के खौफनाक मंजर का जिक्र करते हुए कहा कि जैसे ही पानी बढ़ा हम पहाड़ी की चोटी पर भागे. हमने अपनी आंखों के सामने पहले भूस्खलन में अपनी बहन का और दूसरे में मेरा खुद का घर बहते देखा. उन्होंने ये भी बताया कि ये अच्छी बात रही कि उनके रिश्तेदार हादसे के वक्त मन्नतवाड़ी में थे.

इस पिता का दर्द कैसे कम होगा

बता दें कि वायनाड से बहुत ही दुखद कहानियां सामने आ रही हैं.मलबे में लोग अपने प्रियजनों की तलाश करते दिख रहे हैं. इनमें से एक 14 साल की बच्ची के पिता भी हैं. उन्होंने कहा कि मेरी सबसे छोटी बेटी लापता है. जब तक मैं उसे पहचान नहीं लेता, मुझे विश्वास नहीं होगा कि वह चली गई है. मैं यही समझूंगा कि वह पढ़ने चली गई है. मैसूरू के रहने वाले दो भाई माधवन और नंजुंदन अपनी बहन और जीजा की तलाश में मेप्पाडी आए हैं. उनकी बहन और जीजा वहीं चाय के बगान में काम करते थे.नंजुंदन ने मीडिया से कहा कि भूस्खलन से पहले मेरे बड़े भाई यहां आए थे और हमने उनसे कहा था कि बारिश खत्म होने तक एक सप्ताह तक हमारे साथ रहें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. (इनपुट्स भाषा से भी)

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