
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पिछले 3 दिन लंबी बहस चली. कोर्ट ने पक्ष और विपक्ष दोनों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया. इसके बाद गुरुवार को तीन मुद्दों पर अपना अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें 'अदालतों द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति भी शामिल है. सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही संवैधानिकता की धारणा के संशोधित वक्फ कानून के पक्ष में होने की बात दोहराई, जिससे अंदाजा हो गया है कि फैसला क्या आने की उम्मीद है. इस मामले को प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने संशोधित वक्फ कानून को चुनौती देने वालों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक सिंघवी और हुजेफा अहमदी तथा केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों को सुना. आइए आपको बताते हैं कि 3 दिन में पक्ष और विपक्ष की ओर से क्या-क्या बड़ी दलीलें दी गईं.
तीन प्रमुख मुद्दे जिन पर टिका है पूरा मामला
- पहला मुद्दा 'अदालतों द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति से जुड़ा हुआ है.
- दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है. याचिकाकर्ताओं की दलील है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में काम करना चाहिए.
- तीसरा मुद्दा उस प्रावधान से जुड़ा है, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.
केंद्र सरकार की ओर तुषार मेहता ने रखी ये दलीलें

1- वक्फ अपनी प्रकृति से एक 'धर्मनिरपेक्ष अवधारणा'
केंद्र सरकार ने इस अधिनियम का दृढ़ता से समर्थन करते हुए कहा कि वक्फ अपनी प्रकृति से एक 'धर्मनिरपेक्ष अवधारणा' है और 'संवैधानिकता की धारणा' के इसके पक्ष में होने के मद्देनजर इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती. उसने दलील दी कि वक्फ भले ही एक इस्लामी अवधारणा है, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है.
2- 'वक्फ अल्लाह के लिए है. इसे बदला नहीं जा सकता'
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने अदालत से आग्रह किया कि वह विधिवत रूप से बनाए गए कानून पर रोक लगाने में जल्दबाजी न करे. उन्होंने कहा, 'प्रस्ताव पेश करना कठिन नहीं है और सिर्फ इसलिए कि बहस की जा सकती है, सक्षम विधायिका की ओर से पारित कानून पर रोक लगाना उचित नहीं है.' कानून के तहत आदिवासी भूमि को शामिल न किए जाने के प्रावधान को रेखांकित करते हुए मेहता ने कहा कि अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियां संवैधानिक रूप से संरक्षित वर्ग हैं और संशोधित कानून में इस व्यवस्था का सम्मान किया गया है. मेहता ने कहा, 'वक्फ अल्लाह के लिए है. इसे बदला नहीं जा सकता. अगर बाद में इसे असंवैधानिक पाया जाता है, तो इसे रद्द किया जा सकता है. लेकिन इस बीच अपरिवर्तनीय वक्फ बनाने के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.'
3- वक्फ का इस्तेमाल क्यों किया जाए?
सॉलिसिटर जनरल ने उस प्रावधान का बचाव किया, जिसमें कहा गया है कि केवल वही व्यक्ति वक्फ बना सकता है, जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा है. उन्होंने कहा कि यह प्रावधान फर्जी वक्फ की स्थापना को रोकने के लिए आवश्यक है, न कि वास्तविक धार्मिक प्रथाओं को नकारने के लिए. मेहता ने कहा, 'अगर कोई हिंदू कोई धर्मार्थ संस्था बनाना चाहता है, तो इसके लिए कानूनी रास्ते मौजूद हैं. वक्फ का इस्तेमाल क्यों किया जाए?' उन्होंने कहा कि गैर-मुस्लिम भी ट्रस्ट बनाकर दान कर सकते हैं.
4- वक्फ बनाने और उसे दान देने में अंतर है
तुषार मेहता ने कहा कि आवश्यक धार्मिक प्रथाओं की अवधारणा ‘वक्फ बाई यूजर' की रक्षा नहीं करती, जो मूल इस्लामी सिद्धांत के बजाय कानून के तहत विकसित की गई अवधारणा है. उन्होंने गैर-मुस्लिमों के वक्फ संपत्ति बनाने संबंधी चिंताओं का जिक्र किया और कहा, 'वक्फ बनाने और उसे दान देने में अंतर है. हिंदू वक्फ को दान तो दे सकता है, लेकिन वक्फ नहीं बना सकता.'
5- वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं
वक्फ कानून पर सुप्रीम सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, वक्फ इस्लामिक सिद्धांत है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं. वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है... लेकिन यह इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है. दान हर धर्म का हिस्सा है और यह क्रिश्चियन के लिए भी हो सकता है. हिंदुओं में दान की एक प्रणाली है. सिखों में भी यह मौजूद है. इस्लाम में वक्फ कुछ और नहीं बल्कि दान है. वक्फ बोर्ड का काम केवल वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन करना, हिसाब-किताब सही रखना, खातों का ऑडिट रखना आदि है.
6- वक्फ एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आगे कहा, कई राज्य सरकारों से परामर्श किया गया वक्फ बोर्ड से परामर्श किया गया. जेपीसी ने हर खंड में दर्ज किया है कि वक्फ बोर्ड किस खंड से सहमत है या नहीं है. विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई-कुछ सुझाव स्वीकार किए गए या स्वीकार नहीं किए गए. जब धाराओं में संशोधन के लिए सुझाव दिए गए, तो विधेयक को पेश किया गया और अभूतपूर्व बहुमत से पारित किया गया. मेहता ने कहा कि वक्फ, अपने स्वभाव से ही एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है.
7- केंद्र ने 1923 से चली आ रही बुराई को खत्म किया
सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि हमने 1923 से चली आ रही बुराई को खत्म की. हर हितधारक की बात सुनी गई. मेरा कहना है कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का दावा नहीं कर सकते. हमें 96 लाख प्रतिनिधित्व मिले. जेपीसी की 36 बैठकें हुईं.
8- वक्फ बाई यूजर' सिद्धांत का उपयोग
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कोई भी व्यक्ति सरकारी जमीन पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता है. सरकार को ‘वक्फ बाई यूजर' सिद्धांत का उपयोग करके वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को दोबारा हासिल करने का कानूनन अधिकार है.
9- वक्फ के विरोध में झूठी कहानी
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में दावा किया कि वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध में झूठी और काल्पनिक कहानी गढ़ी जा रही है कि उन्हें दस्तावेज उपलब्ध कराने होंगे या वक्फ पर सामूहिक कब्जा कर लिया जाएगा. वक्फ कोई मौलिक अधिकार नहीं है और इसे कानून द्वारा मान्यता दी गई है. एक फैसले के मुताबिक, अगर कोई अधिकार कानून के तहत प्रदान किया जाता है, तो उसे कानून के तहत लिया भी जा सकता है.
कपिल सिब्बल की याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें
1- मैं सरकार को क्यों दिखाऊं मुसलमान हूं.
वरिष्ठ कपिल कपिल सिब्बल ने वक्फ वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए दलील दी- मैं सरकार को क्यों दिखाऊं कि मैं एक मुसलमान हूं. इसका फैसला कौन करेगा और मैं 5 साल तक क्यों इंतजार करूं. यह अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन है. अब वक्फ बाय यूजर को हटा दिया गया है. इसे कभी नहीं हटाया जा सकता. यह ईश्वर को समर्पित है, यह कभी खत्म नहीं हो सकता. अब यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि केवल वही वक्फ बाय यूजर बचेगा जो रजिस्टर्ड है.
2- ये गैर कानूनी वक्फ संपत्ति के कंट्रोल को छीनने वाला
सिब्बल ने कहा कि ये गैर कानूनी है और वक्फ संपत्ति के कंट्रोल को छीनने वाला है. वक्फ की जाने वाली संपत्ति पर किसी विवाद की आशंका से जांच होगी. कलेक्टर जांच करेंगे और कलेक्टर सरकारी आदमी है. ऐसे में जांच की कोई समय सीमा नहीं है. जब तक रिपोर्ट नहीं आएगी, संपत्ति वक्फ नहीं हो सकती. जबकि अल्लाह के नाम पर संपत्ति दी जाती है. एक बार वक्फ हो गया तो हमेशा के लिए हो गया. सरकार उसमें आर्थिक मदद नहीं दे सकती. सिब्बल ने दलील देते हुए आगे कहा कि मंदिरों की तरह मस्जिदों में चढ़ावा नहीं होता. ये संस्थाएं दान से चलती हैं.
3- कानून की यह धारा अधिकारों का हनन
कपिल सिब्बल ने कहा कि एक अन्य प्रावधान लाया गया है, वक्फ करने वाले का नाम और पता, वक्फ करने का तरीका और वक्फ की तारीख मांगी गई है, लोगों के पास यह कैसे होगा? 200 साल पहले बनाए गए वक्फ मौजूद हैं और अगर वे यह नहीं देते हैं तो मुतवल्ली को 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ेगा. कानून की यह धारा अधिकारों का हनन करती है, यह अन्यायपूर्ण और मनमाना है और अधिकारों का उल्लंघन है.
4- प्रावधान अनुच्छेद 25 का उल्लंघन
याचिकाकर्ताओं की ओर कपिल सिब्बल ने कहा कि यह प्रावधान अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है. संशोधन से वक्फ को सरकार ने अपने पास से लिया है. इसके बाद यदि कोई अनुसूचित जनजाति मुस्लिम है और वक्फ बनाना चाहता है... तो ऐसी संपत्ति वक्फ नहीं है और यह सीधे तौर पर अधिग्रहण है और अनुच्छेद 25 के तहत अधिकार छीन लिया जाता है.
5- मदिंरों को 2000-3000 करोड़ चंदा
कपिल सिब्बल ने विरोध करते हुए कहा कि हम तो सभी मुद्दों पर दलील रखेंगे. मदिंरों की तरह मस्जिदों में 2000-3000 करोड़ चंदे में नहीं आते. वे कहते हैं, पिछले अधिनियम में पंजीकरण की आवश्यकता थी और क्योंकि आपने पंजीकरण नहीं कराया- इसे वक्फ नहीं माना जाएगा. कई 100, 200 और 500 साल पहले बनाए गए थे.
6- एक भी व्यक्ति गैर हिंदू नहीं
हमारी आपत्ति भी यही है कि किसी भी हिंदू धर्मस्थान की बंदोबस्ती में एक भी व्यक्ति गैर हिंदू नहीं है. यदि आप अन्य धार्मिक समुदाय को विशेषाधिकार दे रहे हैं तो यहां क्यों नहीं? कपिल सिब्बल ने कोर्ट को वक्फ काउंसिल के गठन के बारे में बताया कि पहले इसमें केवल मुसलमान सदस्य थे और अब इसमें बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम हैं. ये सभी आपस में जुड़े हुए प्रावधान हैं, संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए, कानून की प्रक्रिया के बिना, लेकिन कानून के माध्यम से. उन्होंने कहा कि हम यह मानकर चल रहे हैं कि बोर्ड में ऐसे गैर मुस्लिम भी हो सकते हैं जिनकी नियुक्ति पर रोक नहीं है. अधिकतम हम एक बार में 8 की गारंटी दे सकते हैं.
7- 11 सदस्यों में से 7 अब गैर मुस्लिम
सिब्बल ने कहा, 'नया कानून कहता है कि जैसे ही किसी भी इमारत को एएसआई एक्ट के तहत प्राचीन संरक्षित स्मारक घोषित किया जाता है, उस पर वक्फ का अधिकार खत्म हो जाएगा. नए कानून में प्रावधान किया गया है कि धर्मांतरण के जरिए इस्लाम अपनाने वाला व्यक्ति 5 साल से पहले वक्फ नहीं कर सकता. यह प्रावधान पूरी तरह असंवैधानिक है. पहले वक्फ बोर्ड में लोग चुनकर आते थे और सभी मुस्लिम होते थे. अब सभी सदस्य मनोनीत होंगे और 11 सदस्यों में से 7 अब गैर मुस्लिम हो सकते हैं."
8- वक्फ पर 'कब्जा करने' का जरिया
याचिकाकर्ताओं की पैरवी कर रहे सिब्बल ने इस कानून को 'ऐतिहासिक कानूनी और संवैधानिक सिद्धांतों से पूर्ण विचलन' तथा 'गैर-न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से वक्फ पर कब्जा करने' का जरिया बताया. सिब्बल ने कहा, 'यह वक्फ संपत्तियों पर सुनियोजित तरीके से कब्जा करने का मामला है. सरकार यह तय नहीं कर सकती कि कौन से मुद्दे उठाए जा सकते हैं.'
9- धार्मिक अधिकारों पर अतिक्रमण
कपिल सिब्बल ने धार्मिक अधिकारों पर अतिक्रमण का लगाया आरोप वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और संपत्ति संबंधी अधिकारों का अतिक्रमण करता है. उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्तियां धर्म से जुड़ी होती हैं और इनपर राज्य का नियंत्रण अनुचित और असंवैधानिक है, जो धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है.
कब शुरू हुआ वक्फ पर विवाद?
केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था. इसे पांच अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिली थी. वक्फ संशोधन विधेयक को लोकसभा में 288 सदस्यों के मत से पारित किया गया था, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे. राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 सदस्यों ने मतदान किया था.
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