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This Article is From Dec 10, 2023

भारत का प्रदर्शन अनुकरणीय, कुछ वैश्विक संस्थाओं ने इसके साथ अनुचित व्यवहार किया : उपराष्ट्रपति धनखड़

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस बात पर ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर बहस’’ करने की जरूरत है कि यह राजकोषीय संरक्षण अर्थव्यवस्था, जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक सामंजस्य के लिए दीर्घकाल में कितना महंगा है.

भारत का प्रदर्शन अनुकरणीय, कुछ वैश्विक संस्थाओं ने इसके साथ अनुचित व्यवहार किया : उपराष्ट्रपति धनखड़
दुनिया का कोई भी हिस्सा ‘‘हमारे देश की तरह मानवाधिकारों से इतना समृद्ध नहीं है’’: उपराष्ट्रपति
नई दिल्ली:

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि कुछ वैश्विक संस्थाओं ने भारत के साथ ‘सर्वाधिक अनुचित' व्यवहार किया है क्योंकि उन्होंने इसके प्रदर्शन का गहन अवलोकन नहीं किया है. उन्होंने उनसे देश में ‘शासन में हुए बड़े बदलाव' पर ध्यान देने का भी आग्रह किया. मानवाधिकार दिवस के अवसर पर यहां एक कार्यक्रम में संबोधन के दौरान की गई उनकी यह टिप्पणी अक्टूबर में जारी ‘वैश्विक भूख सूचकांक-2023' में 125 देशों में भारत के 111वें स्थान पर रहने की पृष्ठभूमि में आई.

धनखड़ ने कहा, ‘‘मैं दुख के साथ कहता हूं, हमें हानिकारक आख्यानों और बाहरी आशंकाओं के प्रति सचेत रहने की जरूरत है जो हमारे अनुकरणीय प्रदर्शन को नजरअंदाज कर देते हैं.''

उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह इस बात से हैरान हैं कि 1.4 अरब की आबादी वाले देश के बारे में लोग ‘भूख संकट' को लेकर बात करने लगते हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘क्या उन्हें एहसास नहीं है कि अप्रैल 2020 से 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है. यही इस देश की ताकत है.''

धनखड़ ने मानवाधिकार दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा ‘भारत मंडपम' में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया का कोई भी हिस्सा ‘‘हमारे देश की तरह मानवाधिकारों से इतना समृद्ध नहीं है.''

इस अवसर पर मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की 75वीं वर्षगांठ भी मनाई गई. भारत में संयुक्त राष्ट्र के स्थानिक समन्वयक शोम्बी शार्प भी मंच पर उपस्थित थे. शार्प ने अपने संबोधन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस का संदेश पढ़ा.

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि धनखड़ ने कहा, ‘‘यह एक संयोग है, यह (मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की 75वीं वर्षगांठ) हमारे ‘अमृत काल' के बाद आई है और हमारा ‘अमृत काल' मुख्यत: मानवाधिकारों और मूल्यों के फलने-फूलने के कारण हमारा ‘गौरव काल' बन गया है.''

धनखड़ ने कहा, ‘‘हमें (संयुक्त राष्ट्र) महासचिव से एक संदेश प्राप्त करने का अवसर मिला। दुनिया के जिस हिस्से में कुल आबादी का छठा हिस्सा रहता है, उस भारत में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए हो रहे व्यापक, क्रांतिकारी, सकारात्मक बदलावों पर ध्यान देना उचित और सार्थक है.''

उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और मानवाधिकार, दोनों साथ-साथ नहीं रह सकते.

उन्होंने कहा कि दुनिया का कोई भी हिस्सा मानवाधिकारों के लिहाज से भारत जितना समृद्ध नहीं है. उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘और ऐसा क्यों न हो? हमारा सभ्यतागत लोकाचार, संवैधानिक रूपरेखा मानवाधिकारों के सम्मान, सुरक्षा और पोषण के प्रति हमारी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है. यह हमारे डीएनए में है.''

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मानवाधिकार तब मजबूत होते हैं जब ‘‘राजकोषीय संरक्षण के तीव्र विरोधाभास में मानव सशक्तीकरण होता है.''

धनखड़ ने कहा, ‘‘वित्तीय अनुदान से लोगों को सशक्त कर केवल निर्भरता बढ़ती है. तथाकथित मुफ्त चीजों की राजनीति, जिसके लिए हम एक अंधी दौड़ देखते हैं, वह व्यय प्राथमिकताओं को विकृत कर देती है. आर्थिक मामलों के जानकारों के अनुसार, मुफ्त चीजें व्यापक आर्थिक स्थिरता के बुनियादी ढांचे को कमजोर करती हैं.''

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस बात पर ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर बहस'' करने की जरूरत है कि यह राजकोषीय संरक्षण अर्थव्यवस्था, जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक सामंजस्य के लिए दीर्घकाल में कितना महंगा है.

धनखड़ ने कहा, ‘‘कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है. चाहे आप कितने भी ऊंचे क्यों न हों, कानून हमेशा आपसे ऊपर होता है, यह देश में नया मानदंड है.''

उपराष्ट्रपति ने कहा कि पारदर्शिता और जवाबदेह शासन एक नया मानदंड है और यह मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए अहम है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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