बीजेपी सांसद वरुण गांधी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मुंबई में 1993 में हुए बम विस्फोटों के दोषी याकूब मेमन को मौत की सजा दिए जाने को लेकर उठी बहस के बीच बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने फांसी की सजा को समाप्त करने की वकालत की है। उन्होंने कहा है कि जिन दोषियों को मौत की सजा सुनाई जाती है, उनमें से 94 फीसदी दलित या अल्पसंख्यक समुदायों के हैं।
आउटलुक पत्रिका में लिखे अपने लेख में वरुण ने कहा है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए मौत की सजा एक खराब चलन है और इसमें सुधार की जरूरत है।
इससे पहले बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने याकूब के पक्ष में एक याचिका पर दस्तखत किए थे, जिस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इससे पार्टी को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है और यह अत्यंत दुखद है।
इससे पहले कांग्रेस सांसद शशि थरूर के इस बयान पर भी बीजेपी ने नाराजगी जताई थी कि वह इस खबर से दुखी हैं कि 'सरकार ने एक इंसान को फांसी दे दी'।
वरुण ने लिखा कि भारत उन 58 देशों में है, जहां मौत की सजा अब भी कानून में है। उन्होंने कहा कि देश को बदलते वैश्विक परिदृश्य को समझने की जरूरत है। उन्होंने लिखा कि फांसी की सजा के सामाजिक-आर्थिक पूर्वाग्रह भी हो सकते हैं। भारत में मौत के सजायाफ्ता 75 प्रतिशत दोषी सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबकों से होते हैं।
उन्होंने कहा, ‘इनमें से 94 प्रतिशत दलित या अल्पसंख्यक होते हैं। वरुण ने लिखा, मौत की सजा खराब कानूनी प्रतिनिधित्व और संस्थागत पक्षपात का नतीजा रहा है। उन्होंने कहा कि मौत की सजा अपराधों को रोकने में नाकाम रही है। शोधों में मौत की सजा और रोकथाम के बीच कोई सीधा संबंध नहीं मिला है।
आउटलुक पत्रिका में लिखे अपने लेख में वरुण ने कहा है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए मौत की सजा एक खराब चलन है और इसमें सुधार की जरूरत है।
इससे पहले बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने याकूब के पक्ष में एक याचिका पर दस्तखत किए थे, जिस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इससे पार्टी को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है और यह अत्यंत दुखद है।
इससे पहले कांग्रेस सांसद शशि थरूर के इस बयान पर भी बीजेपी ने नाराजगी जताई थी कि वह इस खबर से दुखी हैं कि 'सरकार ने एक इंसान को फांसी दे दी'।
वरुण ने लिखा कि भारत उन 58 देशों में है, जहां मौत की सजा अब भी कानून में है। उन्होंने कहा कि देश को बदलते वैश्विक परिदृश्य को समझने की जरूरत है। उन्होंने लिखा कि फांसी की सजा के सामाजिक-आर्थिक पूर्वाग्रह भी हो सकते हैं। भारत में मौत के सजायाफ्ता 75 प्रतिशत दोषी सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबकों से होते हैं।
उन्होंने कहा, ‘इनमें से 94 प्रतिशत दलित या अल्पसंख्यक होते हैं। वरुण ने लिखा, मौत की सजा खराब कानूनी प्रतिनिधित्व और संस्थागत पक्षपात का नतीजा रहा है। उन्होंने कहा कि मौत की सजा अपराधों को रोकने में नाकाम रही है। शोधों में मौत की सजा और रोकथाम के बीच कोई सीधा संबंध नहीं मिला है।
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