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उत्तराखंड : टिहरी जिले के कई गांव पुल की आस में, JCB से नदी पार करने को मजबूर

नदी उफान पर है और लोगों को नदी पार करवाने के लिए JCB मशीन की मदद ली जा रही, ये तस्वीरें देहरादून से 30 किलोमीटर दूर टिहरी जिले की धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र के चिफलटी गांव की हैं.

उत्तराखंड : टिहरी जिले के कई गांव पुल की आस में, JCB से नदी पार करने को मजबूर
नई दिल्ली:

उत्तराखंड में मानसून में  हुई बारिश की वजह कई गांवों का संपर्क टुटा हुआ है. यही नहीं भारी बारिश के चलते मलबे और भूस्खलन से सड़कें तो बंद हैं हीं. दर्जनों पुलों के बहने से  गांव वाले जान जोखिम में डाल कर नदियां पार करना पड़ती हैं. ऐसे ही गांव का हाल NDTV की टीम ने जाना.

नदी उफान पर है और लोगों को नदी पार करवाने के लिए JCB मशीन की मदद ली जा रही, ये तस्वीरें देहरादून से 30 किलोमीटर दूर टिहरी जिले की धनोल्टी विधानसभा क्षेत्र के चिफलटी गांव की हैं.

दरअसल नदी पार करने के लिए गांववालों के पास पिछले 2 सालों से न पुल है और न ही ट्रॉली पुल, दुबारा पुल बनाने के लिए टेंडर पास हुआ लेकिन दो साल हो चुके हैं पर पुल का अता-पता नहीं है.

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जनता को हो रही परेशानी

सालों से इस बात का लोग इंतजार कर रहे हैं गांव जाने के लिए नदी पर पुल बने और वह इस रास्ते को बिना किसी खतरे और जान जोखिम में डालकर इसको पर करें. यह चिफलटी और रंगड़ गांव को जाने वाला पुल है जो धनौल्टी विधानसभा में आता है अभी फिर पुल के नाम से सिर्फ जमीन पर सरिया लगाए गए हैं लगभग 7 ग्राम सभाएं यानी साढ़े1 हजार लोग इस पल की वजह से आने-जाने में उनको दिक्कत हो रही है.

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कब तक बनेगा पुल?

जुलाई 2022 में यह पुल बनकर तैयार हो जाना चाहिए था लेकिन अभी तक 10% इसमें काम नहीं हुआ है संबंधित विभाग को पत्र लिखें लेकिन कुछ भी नहीं हो पाया और अब ठेकेदार ने भी आपदा मद में यह पल छोड़ दिया है.

कृष्णा देवी बताती है कि वो इलाज के लिए रायपुर गयी थीं लेकिन 14 दिन बाद ही गांव लौट सकी  क्योंकि नदी में पानी ज्यादा था.

 कुछ नहीं है हम परेशान हैं पिछले तीन-चार सालों से पुल का काम अभी तक शुरू भी नहीं हुआ है मैं भी बीमार हुई थी और नदी से मशीन के द्वारा पर करवाया था और 14 दिन बाद गांव आई क्योंकि नदी में पानी ज्यादा था इसलिए नदी को पार करके नहीं आ पाई। बच्चे भी नहीं जा पाते हैं दवाई या फिर अन्य चीज यही पर उनको लाई जाती है.

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ये चिफलटी नदी है और इसी तरह से यहां के ग्रामीण इसको हर दिन नदी के बीचो-बीच इस पार करते हैं चाहे वह महिलाएं हो बच्चे हो बुजुर्ग हो उनको नदी इसी तरह से पार करनी होती है और हुमन चैन बनाकर लोगों को इसी तरीके से नदी पर करवाते हैं.

नदी में पानी जब ज्यादा आ जाता है तो लोगों को हफ्ते-हफ़्ते  तक पानी कम होने का इंतजार करना होता है.

ग्रामीण परेशान हैं

यहां रह रहे ग्रामीण सुरेंद्र सिंह ने एनडीटीवी को बताया कि 2 साल से यहां पर पुल नहीं बना है एक ट्राली पुल था नदी पार करने को वह भी इस बार बह गई. 2 साल से ऐसा ही पड़ा हुआ है कोई पूछने वाला नहीं है, कभी-कभी कम खा कर ही सोना पड़ता है क्योंकि नदी में पानी ज्यादा होता है और घर में आटा चावल कम होता है हफ्ते भर तक पानी नदी में काम नहीं होता है 10-10 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है.

ग्रामीण मंगल ने बताया कि परेशानी हो रही है. नदी आर पार करने में कई दिक्कतें होती हैं. हमारी सारी सब्जियां यहीं पर सब जाती है क्योंकि पार करने के लिए ना तो पुल है और ना कोई और साधन. थोड़ी बहुत सब्जियां नदी पार कर ले जाते हैं जब नदी का पानी कम होता है लेकिन बहुत मजबूरियां है कुछ नहीं कर सकते.

बहरहाल यहां के ग्रामीणों ने अपनी किस्मत को भगवान के भरोसे छोड़ दिया है क्योंकि उनको लगता है कि सिस्टम जल्द इस जगह पर पुल नहीं बनाएगा और उनको अपनी इसी तरीके से जान जोखिम में डालकर नदी पार करनी होगी लेकिन इन ग्रामीणों को इस बात की उम्मीद भी है विधायकों की सैलरी और अन्य भत्ते बढ़ाने के लिए तेजी से एक दिन में ही निर्णय लिया जा सकता है और उसी तरीके से इस जगह पर पुल बनाने का निर्णय ले लिया जाएगा तो शायद उनके लिए बड़ी समस्या का समाधान हो पाएगा.

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