केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हरिद्वार 'धर्म संसद' और दिल्ली में दिए गए नफरती भाषण पर कहा कि, "ऐसे मामलों में कानून को अपना काम करने देना चाहिए. जो कुछ हरिद्वार और दिल्ली में हुआ उसे नकारना चाहिए और उसे कोई महत्व नहीं देना चाहिए. उन्होंने NDTV से खास चर्चा में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कहा कि, "स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में जो भाषण किया था, उसमें उन्होंने कहा था कि हमारा धर्म सहिष्णुता के आधार पर है. सहजता के अधार पर है. सरलता के आधार पर है. सर्व समावेशक है."
उन्होंने कहा कि, "हमने हमारे राजाओं ने कभी किसी के पूजा स्थलों को नहीं तोड़ा. हम विस्तारवादी नहीं हैं. हम यही कहते हैं कि पूरे विश्व का कल्याण हो. जात, धर्म, पंत, भाषा...हम तो ये भी कहते हैं- मात्र विश्व का ही नहीं, प्राणि मात्र का भी कल्याण हो. यही हमारी संस्कृति है. इसलिए यही विचार मुख्य विचार है. ऐसे में कोई अगर इसके विपरीत बातें करता है, तो वो हमारी मुख्य विचारधारा नहीं है. उसको नकारना चाहिए. चाहे वो किसी भी धर्म से हो. उसको महत्व नहीं देना चाहिए."
आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई पर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए गडकरी ने कहा कि, "देखिए कानून अपना काम करेगा. जो जो कानून में अधिकार है, उसके आधार पर अपना काम करेंगे. हम सहिष्णु, सर्व धर्म के प्रति सम्मान रखें और हम लोग निश्चित रूप से किसी की भावना न दुखाएं." वहीं, बुल्ली बाई ऐप मामले में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा, "समाज में छोटे-मोटे लोगों के कुछ गलत करने से उसको पूरे समाज के साथ जोड़ना भी उचित नहीं होता है. जो गलत है वो गलत है, जो सही है वो सही है. कानून अपना काम करेगा. उस पर उचित कार्रवाई की जाएगी.
इसी मामले में जब उनसे पूछा गया कि, क्या ऐसे मामलों में सत्तारूढ़ सरकार द्वारा कार्रवाई की कमी से नफरती माहौल पनप रहा है? इस पर गडकरी ने कहा, "यह 100 प्रतिशत गलत है. हमने कभी भी इस तरह के भेदभाव का समर्थन नहीं किया है. न ही हम इसे पहचानते हैं, न ही हम इसका सम्मान करते हैं."
उल्लेखनीय है कि हरिद्वार में एक धर्म संसद में वक्ताओं के 'कड़वे बोल' को लेकर नाराजगी जाहिर की गई थी. इस धर्म संसद में वक्ताओं ने कथित तौर पर मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा की पैरवी की और 'हिंदू राष्ट्र' के लिए संघर्ष का आह्वान किया. खास बात यह है कि वक्ताओं को ऐसे भाषणों को लेकर पछतावा भी नहीं था. हरिद्वार के कार्यक्रम का आयोजन एक धार्मिक नेता यति नरसिंहानंद ने किया था, जिन पर इससे पहले भी नफरत भरे भाषणों से हिंसा को बढ़ावा देने के आरोप लग चुके हैं. इसके बाद इस मामले को लेकर सशस्त्र बलों के पांच पूर्व प्रमुखों और सौ से अधिक प्रमुख लोगों ने, जिसमें नौकरशाह, गणमान्य नागरिक शामिल हैं, सभी लोगों ने धर्म संसद में नफरत फैलाने वाले भाषणों को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था.
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