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अंडरवर्ल्ड डॉन की अनसुनी कहानी, मुंबई के नक्शे पर कैसे उभरा नाईक गैंग? एक इंजीनियर की डिग्री वाला कैसे बना डॉन?

Inter State Don Story: लंदन से मुंबई लौटा लड़का जब डॉन बन गया और नाईक ब्रदर्स का नाम पूरे शहर में दहशत का पर्याय बन गया. अमर टू अश्विन नाईक की कहानी कुछ ऐसी ही है.

अंडरवर्ल्ड डॉन की अनसुनी कहानी, मुंबई के नक्शे पर कैसे उभरा नाईक गैंग? एक इंजीनियर की डिग्री वाला कैसे बना डॉन?
Ashwin Naik History: मुंबई के बड़े गैंगस्टर अश्विन नाईक की कहानी

Underworld Don Story: मुंबई को मायानगरी कहा जाता है. इसका जर्रा-जर्रा अडंरवर्ल्ड की गुमनाम कहानियों का गवाह है. समंदर की ये लहरें जब भी मुंबई से टकराती है, तो अंडरवर्ल्ड की क्रूर कथा जरूर महसूस कराती हैं. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जो शख्स आज व्हील चेयर पर जिंदगी गुजारने का मोहताज है, जिसे कमर से नीचे लकवा मार गया है, वो किसी समय में इसी मायानगरी में अंडरवर्ड का सबसे पावरफुल सिकंदर, या यूं कहें की डॉन था. इसके क्रूर साम्राजय के चर्चे मुंबई से लेकर दिल्ली तक होते थे.

पहले जानें क्या थी 90 के दशक की कहानी

कभी न रूकने और कभी ना थकने वाली मायानगरी 90 के दशक में दोहरी चुनौतियों से लड़ रही थी. कपड़े के कारखाने बंद हो रहे थे और छोटे शहरों से आए मेनहतकश नौजवानों के ख्वाब सपनों के सुर्खाब शहर में खामोशी से दम तोड़ रहे थे. मुंबई की फिजाओं में अजीब सी बैचेनी थी. ये वो दौर था, जब मुंबई शहर में अंडरवर्ल्ड की तूती बोलती थी. गैंगस्टर के बीच आपसी गैंग वार तो होता ही था, वे वसूली के लिए भी लोगों को अपना निशाना बनाते थे. बिल्डरों, बार मालिकों, मिल मालिकों और फिल्मकारों को वसूली के लिए धमकी भरे फोन आते थे. पैसा देने से इनकार करने वालों को गैंगस्टर की गोलियां मुर्दों में बदल देती थी.

दाऊद की बोलती थी तूती

इस समय में सबसे बड़ा गिरोह दाऊद इब्राहिम का था. 1986 में भारत से भागने बाद दाऊद दुबई से अपना गैंग ऑपरेट कर रहा था. तभी एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट आया... 1994 में दाउद का खासमखास निकले उर्फ छोटा राजन अलग होकर अपना गैंग चलाने लगा. तीसरा गिरोह था अरुण गवली उर्फ डैडी का, जिसे वो सेंट्रल मुंबई के दगड़ी से ऑपरेट कर रहा था. मुंबई के नक्शे पर चौथा गैंग था अमर नाईक का, जो अश्विन का बड़ा भाई था.

अमर नाईके गैंग में शामिल हुए थे ये लोग

अमर नाईक के गिरोह का दामन ज्यादातर उन्हीं लड़कों ने थामा था, जो कपड़ा मिलें ठप होने बाद भुखमरी से जंग लड़ रहे थे. वक्त के साथ रावण की सल्तनत में उनका इस्तकबाल बुलंद होने लगा. अमर नाईक इतना क्रूर था कि अंडरवर्ल्ड में लोग उसको रावण कहा करते थे. एक सब्जी विक्रेता से अंडरवर्ल्ड डॉन बने नाइक ने मुंबई की कई नामचीन हस्तियों की हत्या की थी, जिनमें खटाव मिल के मालिक सुनीत खटाव का भी नाम शामिल था. 

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अमर नायक भी उसी सेंट्रल मुंबई के इलाके से ऑपरेट करता था, जहां से अरुण गवली अपना गिरोह चलाता था. इसलिए दोनों के बीच दुश्मनी पैदा हो गई. जिस तरह एक म्यान में दो तलवारे नहीं रह सकती, उसी तरह से एक इलाके में दो अंडरवर्ल्ड डॉन भी नहीं रह सकते थे. गवली और नाईक के बीच भयंकर गैंगवार छिड़ गया था जिसमें दोनों ने एक दूसरे के कई लोगों की हत्याएं की.

एनकाउंटर की तैयारी में थी मुंबई पुलिस

अंडरवर्ल्ड के 'रावण' की चुनौतियां बड़ी थी. एक तरफ वो गवली गैंग के रडार पर था, जो उसके खून की प्यासी थी. दूसरी तरफ, मुंबई पुलिस उसके एनकाउंटर की तैयारी कर रही थी. ये वो दौर था, जब मायानगरी में चुन-चुनकर गैंगस्टर्स को पुलिस की बंदूके गोलियों से भून रहीं थी. लेकिन छल में माहिर अमर नाईक पुलिस की नाकों चने चबवा रहा था. चाहकर भी पुलिस के हाथ उसके गिरेबां तक नहीं पहुंच पा रहे थे.

ऐसे बना अश्विन गैंगस्टर

जब पुलिस का सिरदर्द बढ़ा, तो रातों-रात एक प्लान बनाया गया. अमर के परिवार को टारगेट पर लिया गया. ये वो समय था, जब अमर का भाई अश्विन लंदन से इंजीनियर की डिग्री लेकर मुंबई लौटा था. अश्विन के जहन में हजारों ख्वाहिशें थी. वो इंजीनियरिंग में अपना करियर तलाश रहा था. अचानक सब कुछ बदल गया. अश्विन को पुलिस ने टॉर्चर करना शुरू किया. आधी रात उसे पुलिस घर से उठा ले जाती, थाने में घंटों बिठाती, मारपीट करती, ये सब इसलिए ताकि अमर के ठिकाने का पता मिल सके.

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इस बीच अश्विन को सोफिया कॉलेज में पढ़ने वाली गुजराती लड़की नीति से प्यार हो गया. अश्विन नीति से शादी करना चाहता था. लेकिन, अश्विन के भाई की आपराधिक छवि के मध्य नजर नीति के परिवार वाले अश्विन से उसकी शादी के खिलाफ थे. नीता की सलाह पर अश्विन ने फैसला किया कि वो मुंबई छोड़कर मद्रास में रहेगा. दोनों एक बार जब मद्रास में घर देखकर वापस मुंबई लौटे, तो हवाई अड्डे के पास अरुण गवली के गिरोह ने अश्विन नायक की कार पर हमला कर दिया. उसे हमले में अश्विन तो बाल बाल बच गया, लेकिन उसके दो दोस्त मारे गए.

इस हमले से बहुत कुछ बदल गया. अश्विन की जिंदगी भी और राहें भी... उसे एक तरफ भाई के दुश्मनों से खतरा था, तो दूसरी तरफ पुलिस की प्रताड़ना थी. बेगुनाह होने पर भी अश्विन को दोहरी सजा मिल रही थी. इस भंवर से निकलने का एक ही रास्ता उसे दिख रहा था. अश्विन ने अंडरवर्ल्ड से जुड़ने का फैसला किया. फैसले का नीता ने समर्थन दिया और चंद रोज बाद ही दोनों दोस्त से हमसफर बन गए.

नामचीन हिस्ट्रीशीटर बन गया अश्विन

अश्विन अंडरवर्ल्ड का दामन थाम चुका था. हत्या जैसे बड़े अपराध भी उसे मामूली लगने लगे थे. 1993 आते आते सब कुछ बदल गया. अश्विन नामचीन हिस्ट्रीशीटर बन चुका था. इसी साल टाडा कानून के तहत उसे अरेस्ट किया गया. इधर, अश्विन जेल गया और उधर नीता नाईक राजनीति की पिच पर उतरी.

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पत्नी बन गई थी पार्षद

शिवसेना के टिकट पर नीता पार्षद बनी. पत्नी का राजनीतिक रसूख देख अश्विन ने भी सियासत में हाथ अजामने का मन बनाया. 1990 में विधानसभा चुनाव हुए. टाडा के आरोपियों हितेंद्र और पप्पू कलानी को कांग्रेस ने टिकट दिया. दोनों विधायक चुने गए. अश्विन को लगा कि जब इतनी बड़ी आपराधिक छवि वाले लोग MLA बन सकते हैं तो वो क्यों नहीं. अश्विन अपनी पत्नी की ही तरह शिवसेना से जुड़ना चाहता था, क्योंकि वह शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित था. उसने ठाकरे से मुलाकात भी की.

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अश्विन राजनीति में तो जाना चाहता था, लेकिन उसका राजनेता बनने का सपना कभी पूरा नहीं हो सका. 18 अप्रैल 1994 को मुंबई के सेशन कोर्ट में एक ऐसी घटना घटी जिसने उसकी जिंदगी को तहस-नहस कर दिया. पुलिस अश्विन को पेशी के लिए कोर्ट लाई थी. सेशन कोर्ट में तगड़ी सिक्योरिटी थी. पुलिस के घेरे में अश्विन कोर्टरूम की तरफ बढ़ रहा था. तभी वकील के भेष में आए गवली गैंग के शूटर ने गोलियां चला दीं. एक गोली अश्विन की खोपड़ी को चीरकर निकल गई.

मारा गया 'रावण'

व्हील चेयर के मोहताज हुए अश्विन नाईक को दो साल गुजर चुके थे. तभी 10 जुलाई 1996 को मुंबई के एग्रीपाड़ा में एक एनकाउंटर हुआ. मुंबई पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्ट इंस्पेक्टर विजय सालसकर ने अश्विन के बड़े भाई अमर नाईक ऊर्फ रावण को ढेर कर दिया. अमर के अंत के बाद गैंग की कमान पूरी तरह से अश्विन के हाथ में आ गई. सिविल इंजीनियर अश्विन नाईक मुंबई अंडरवर्ल्ड का सबसे पढ़ा लिखा डॉन बन गया.

भारत बांग्लादेश बॉर्डर पर गिरफ्तार हुआ अश्विन

एक अगस्त 1999 को खबर आई कि अश्विन को पश्चिम बंगाल पुलिस ने भारत बांग्लादेश बॉर्डर के पास गिरफ्तार कर लिया है. गिरफ्तारी के बाद उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखा गया. लेकिन, जेल की सलाखें अश्विन के लिए अपने गिरोह को चलाने में कोई रुकावट न थीं. जेल से भी गिरोह चलाने के तरीके उसने खोज लिए थे.

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जेल से गैंग ऑपरेट करता था अश्विन

सलाखें के पीछे से अश्विन गैंग को ऑपरेट करने लगा. उसके गुर्गे उसके टच में रहते थे. किसे धमकाना है, किससे वसूली करनी है, किसको खत्म करना है... ये सब वो जेल में बैठकर तय करता था. इस दौरान दिल्ली पुलिस ने अश्विन पर नार्कोटिक्स की धाराओं में केस दर्ज किया. इसी बीच अश्विन को उसके सबसे भरोसमंग गुर्गे ने ऐसी खबर दी, जिससे वो पूरी तरह टूट गया. उसे खबर मिली कि नीता के लक्ष्मण जीमन नाम के शख्स के साथ अनैतिक रिश्ते स्थापित हो गए हैं. वो उसके साथ घूमती फिरती है, वक्त बिताती है.

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कानूनी लड़ाई में अश्विन का पलड़ा रहा भारी

मुंबई पुलिस के साथ जंग में भले ही अश्विन नाईक को शिकस्त मिली हो, लेकिन कानूनी लड़ाई में उसका पलड़ा भारी रहा. एक एक कर सबूतों और गवाहों के अभाव में वो सभी मामलों में बरी हो गया. अपनी पत्नी नीता के मामले में भी अदालत ने उसे रिहा कर दिया, क्योंकि पुलिस नीता के आशिक लक्ष्मण की खोजकर उसकी गवाही नहीं दिला पाई और न ही ये साबित कर पाई कि जेल की चारदीवारी में कैद रहकर कैसे अश्विन ने अपनी पत्नी की मरवा दिया.

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