शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने हाल ही में 'सामना' को दिए इंटरव्यू के दूसरे भाग में कहा कि जिन्हें मैंने अपना माना वो लोग ही छोड़कर चले गए, मतलब वे लोग कभी हमारे थे ही नहीं. उन्हें लेकर बुरा लगने की कोई वजह नहीं है. उद्धव ठाकरे ने एक और सच्चाई बताई, ‘भाजपा में आज बाहर से आए लोगों को ही सब कुछ दिया जाता है. मुख्यमंत्री पद से विरोधीपक्ष के नेता पद तक.' उद्धव ठाकरे ने स्पष्टता से कहा, ‘महाविकास आघाड़ी का प्रयोग गलत नहीं था. लोगों ने स्वागत ही किया था. ‘वर्षा' छोड़कर जाते समय महाराष्ट्र में अनेकों के आंसू बहे. किस मुख्यमंत्री को ऐसा प्यार मिला है? उन आंसुओं का मोल मैं व्यर्थ नहीं जाने दूंगा.'
उद्धव ठाकरे ने देश में लोकतंत्र के भविष्य, विपक्षियों को खत्म करने के लिए जारी ‘ईडी', ‘सीबीआई' के दुरुपयोग आदि पर भी निशाना साधा और बेहद ज्वलंत शब्दों में ऐलान किया, ‘दिल्लीवालों को शिवसेना बनाम शिवसेना का झगड़ा लगाकर महाराष्ट्र में मराठी माणुस के हाथ से ही मराठी माणुस का सिर फुड़वाना है!' शिवसेनापक्षप्रमुख के साक्षात्कार से महाराष्ट्र की राजनीति पर गहराए संभ्रम के बादल दूर हो गए हैं, ऐसा ही कहना होगा.
उद्धव जी, एक ही प्रश्न फिलहाल देश में उत्सुकता से पूछा जा रहा है. केजरीवाल से ममता तक सभी का वही सवाल है, देश में विपक्षी पार्टियों, क्षेत्रीय दलों को खत्म करने की साजिश जोर-शोर से जारी है?उनका कहना ठीक है क्या. इस देश में लोकतंत्र बचेगा कि नहीं, ऐसा सवाल आपके मन में भी उठता है क्या?
देश के वर्तमान हालात ठीक ऐसे ही हैं परंतु सत्ताधारियों को विपक्षी दलों से डर लगने लगा हो तो इसे उनकी दुर्बलता कहेंगे. लोकतंत्र का अर्थ यह नहीं है कि हर बार जीत ही मिले. शिवसेना, कांग्रेस, भाजपा कोई भी पार्टी हो, उन्हें लगातार जीत हासिल नहीं होती. हार-जीत सभी की होती है. नए दलों का उदय होता रहता है. वे भी कुछ समय के लिए चमकते हैं, यही तो लोकतंत्र का असल अनुभव है.
पहला इंटरव्यू पढ़ें- "बीमार था... आप पर भरोसा किया था..." : एकनाथ शिंदे पर जमकर बरसे उद्धव ठाकरे
फिर इसमें डर कैसा?
सब कुछ अपनी एड़ी के नीचे रखने की ये जो राक्षसी महत्वाकांक्षा पनपती है तब उन्हें विपक्ष का डर सताने लगता है. मैं भी मुख्यमंत्री था. आज नहीं हूं, पर आपके सामने पहले की तरह ही बैठा हूं. क्या... फर्क पड़ा क्या? सत्ता आती है और जाती है. फिर वापस आती है. मेरे लिए कहें तो सत्ता हो या न हो, कोई फर्क नहीं पड़ता. अटल बिहारी वाजपेयी जी ने एक बार कहा था, ‘सत्ता आती है, जाती है. लेकिन देश रहना चाहिए.' देश रहने के लिए सभी पार्टियों ने मिलकर काम नहीं किया तो हम ही अपने देश के शत्रु कहलाएंगे, क्योंकि देश में आज भी कई समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं. रुपया निम्नांक तो महंगाई उच्चांक पर पहुंच गई है. बेरोजगारी है. ऐसे तमाम मुद्दों पर किसी का ध्यान नहीं है. सतही तौर पर लीपापोती की जा रही है.
‘अग्निवीर' लाए न...?
हां, पर उसमें से भी वीर बाहर निकल गए न! उनके दिमाग में ‘अग्नि' है. इसलिए वे ‘वीर' बाहर निकल गए. सड़कों पर उतरे. उनका कहना है, हमें आप टेंपररी बेसिस पर रख रहे हैं. हमारे युवा सड़क पर उतर आए हैं. जीवन, संसार यह स्थायी होता है. टेंपररी बेस पर हमें रोजगार दे रहे हो तो आगे क्या होगा, ऐसा उनका सवाल है.
ठेके पर सैनिक, यह कल्पना आपको कैसी लगती है?
आपको ठेका पद्धति चाहिए न, करना ही है तो सभी जगह ठेका पद्धति करो. शासनकर्ता भी ठेके पर लाओ. सभी के लिए फिर हम एक एजेंसी नियुक्त करेंगे और काम पर रखेंगे. इस देश के समक्ष ऐसी कौन-सी समस्या है, जो आपको सबसे ज्यादा सताती है? लोकतंत्र खतरे में है, न्यायालय पर दबाव है, केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है. केंद्रीय जांच एजेंसियों को लेकर कई बार न्यायालय ने भी अपने विचार व्यक्त किए हैं. हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके एक प्रमुख नेता के...मनीष सिसोदिया...हां. मनीष सिसोदिया के गिरफ्तार होने की आशंका है. वो भी झूठे आरोपों के तहत. पहले गिरफ्तारी, फिर आरोप तय होते हैं और कालांतर में वे उससे रिहा होते हैं. तब तक आप उनका जीवन बर्बाद कर चुके होते हैं. अलबत्ता, किसी का जीवन बर्बाद करके किसी को सुख मिलता होगा, ऐसा मुझे नहीं लगता. ऐसे लोग कभी भी न सुखी रहते हैं, न रह सकते हैं. इस पर मुझे विश्वास नहीं है. इसलिए ठीक है... लोकतंत्र है. आप जो कहते थे वो भी ठीक है परंतु अब जो कुछ बदनामीकरण चल रहा है. वो गंदे, आपत्तिजनक और विकृत तरीके से चल रहा है, ये किसी को ‘फलित' नहीं होगा. ऐसा नजर आता है कि विपक्ष में जो हैं, उन पर पहले आरोप लगाओ...और फिर कुंभ मेले में ले जाओ. उनकी मानहानि करना, गिरफ्तारी का डर दिखाना, रोज उन पर हमले करना... और यही बदनाम लोग उनकी पार्टी में जाते हैं, तब उनके मुंह पर पट्टी बंध जाती है, ऐसा क्यों होता है? कारण आपको याद ही होगा, नितिन गडकरी बोले ही थे कि हमारे पास ‘वॉशिंग मशीन' है. लोगों को लेकर हम पुण्यवान बनाते हैं, उनके पास जो लोग, किन्हीं आरोपों की वजह से गए, उनका आगे क्या हुआ, यह भी देखना चाहिए. फिलहाल, नित नए लोगों को परेशान किया जा रहा है. यह सशक्त राजकर्ताओं के लक्षण नहीं हैं... यह खौफ है. शिवसेना के जिन लोगों ऐसे अरोप थे, वही लोग उनके पास गए हैं. हैं न. अब वे पवित्र हो गए होंगे. आप पर भी ऐसे आरोप लग रहे हैं. आपको भी वे गिरफ्तार करेंगे, ऐसा माहौल बनाया जा रहा है. सिर्फ एजेंसियों का दुरुपयोग. दूसरा क्या? निश्चित ही...
इसे क्या कहें? पर आप डटे हुए हैं. आप वहां गए तो आप भी पुण्यवान हो जाओगे?
हां, मुझे ऐसा कहा ही गया था, परंतु इस तरह से मुझे पुण्यवान नहीं बनना है. सभी पुण्यात्माएं वहीं जाएंगी. हम धर्मात्मा हैं. इसलिए बालासाहेब कहते थे, कर्म से मरनेवाले को धर्म से मत मारो. आखिर सभी के पाप का घड़ा भरता ही है.
इस दमनशाही के विरोध में साथ आने के लिए विरोधी दलों को क्या करना चाहिए?
पहले तो सभी में इच्छा होनी चाहिए. आपातकाल के दौरान लोगों ने वह अनुभव किया है. जनता पार्टी की स्थापना हुई थी. आप कहते हैं न, जनता क्या करती है? तो उस समय हम छोटे थे. ७५-७७ के दौर की बात है. जनता पार्टी के पास प्रत्येक मतदान केंद्र पर पोलिंग एजेंट तक नहीं थे, फिर भी लोगों ने भर-भराकर वोट दिए. सभी वर्गों के लोग, फिर साहित्यकार हों, विचारक हों, उन्होंने बाहर निकलकर आवाज उठाई थी. जनता पार्टी सत्ता में आई. लेकिन बाद में आपस में ही लड़-भिड़कर अपनी सरकार खुद ही गिरा दी. इसलिए एक इच्छाशक्ति होनी चाहिए. मानो, यदि साथ आना हो तो कोई भी पदों के लिए लड़ेगा नहीं. हमारे देश में इस वक्त लोकतंत्र को खत्म कर तानाशाही ही आ गई है, ऐसा मैं नहीं कहूंगा परंतु जिस दिशा में कदम बढ़ रहे हैं उसे देखते हुए कई लोगों का मानना है कि ये कदम, ये लक्षण कुछ ठीक नहीं हैं. ये गलत दिशा में जा रहे हैं. ऐसा ही अनेकों का मत है.
आप जो इच्छाशक्ति की बात कर रहे हैं तो उद्धव ठाकरे शिवसेनापक्षप्रमुख के नाते, प्रमुख विपक्षी पार्टी के नेता के तौर पर यह इच्छाशक्ति आज आप में है क्या?
हां, निश्चित ही है. परंतु सवाल अकेले का नहीं है. इसके लिए देश के सभी राज्यों को एक साथ आना होगा. एक बार संषर्घ शुरू हुआ तो देश जाग ही जाएगा. मेरा तो कहना यह है कि भारतीय जनता पार्टी को भी अधिक शत्रु न बढ़ाते हुए, जिसे हम स्वस्थ राजनीति कहते हैं...
...हेल्दी?
हां, ‘हेल्दी पॉलिटिक्स' करें, हम तो मित्र ही थे. २५-३० वर्षों तक हम उनके साथ ही थे. फिर भी उन्होंने 2014 में युति तोड़ दी. वजह कुछ भी नहीं थी. तब भी हमने हिंदुत्व नहीं छोड़ा था और आज भी नहीं छोड़ा है. उस समय भी भाजपा ने शिवसेना के साथ युति आखिरी क्षणों में तोड़ी थी. उस समय भी हम उनके मित्र ही थे. क्या मांग रहे थे तब? मैं ढाई वर्ष के लिए शिवसेना के लिए मुख्यमंत्री पद क्यों मांग रहा था? वो मुख्यमंत्री पद मेरे लिए नहीं था. तो उस वक्त दिया नहीं. इस बार भी ढाई वर्ष मुख्यमंत्री पद क्यों मांगा था, क्योंकि मैंने उस दौरान माननीय शिवसेनाप्रमुख को वचन दिया था कि शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाकर दिखाऊंगा. वैसे देखें तो मेरा वो वचन आज भी अधूरा ही कहा जाएगा. क्योंकि मैं मुख्यमंत्री बनूंगा, ऐसा नहीं कहा था. मुख्यमंत्री का पद मुझे एक चुनौती के तौर पर स्वीकारना पड़ा, क्योंकि सभी बातें तय होने के बाद भाजपा की ओर से उन्हें नकार दिया गया. इसलिए मुझे वह करना पड़ा.
हां, लेकिन बागियों की भी यही आपत्ति है! बागियों का आक्षेप है कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने...
ठीक है! बना मुख्यमंत्री. मैं अब हो चुका हूं. क्या... प्रॉब्लम क्या है आपकी? इसीलिए क्या तुमने जिन बालासाहेब की तस्वीर लगाई, उन बालासाहेब के पुत्र को गद्दी से उतार दिया? क्यों, तो कहते हैं हिंदुत्व वगैरह..., कांग्रेस-राष्ट्रवादी नहीं चाहिए. ठीक है, पर आज के मुख्यमंत्री की भरी सभा की भी नौटंकी देखो. भाजपा बहुत घातक है इसलिए भरी सभा में मंत्रीपद से इस्तीफा दे दिया था. वो क्लिप वायरल हो रही है. भाजपा कैसे शिवसैनिकों पर अन्याय-अत्याचार कर रही है उसकी क्लिप है वो. मेरे ही सामने उन्होंने इस्तीफा दिया था.
बागियों का एक ऐसा भी आरोप है कि शरद पवार ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाकर शिवसेना को खत्म कर दिया...?
अच्छा, पहले जब हम भाजपा के साथ सत्ता में थे तो ये लोग कहते थे कि भाजपा तकलीफ दे रही है. भाजपा नहीं चाहिए, कहनेवाले ये वही लोग हैं. गांव-गांव में भाजपा शिवसेना को काम करने नहीं देती है. ऐसा यही लोग कहते थे. वर्ष २०१९ में भाजपा का झूठ चरम पर पहुंच गया. तय की गई बातें नकारी गईं, इसलिए हमने महाविकास आघाड़ी को जन्म दिया. तो अब कहते हैं कांग्रेस-राष्ट्रवादी वाले तकलीफ दे रहे हैं. आखिर निश्चित आपको चाहिए तो क्या?
मेरा भी यही सवाल है, उन्हें निश्चित चाहिए क्या?
उनकी लालसा! खुद के लिए मुख्यमंत्री पद उन्होंने बेहद गलत तरीके से हासिल किया. अब तो वे शिवसेनाप्रमुख से तुलना करने लगे हैं कि ‘यह हमारी शिवसेना है'. बेहद घृणित और घिनौना तरीका है!
शिवसेना प्रमुख से तुलना आपने भी कभी नहीं की...
हां, न... और यह देखने के बाद मुझे नहीं लगता कि भाजपा उन्हें कभी आगे बढ़ाएगी. नहीं तो बाद में वे अपनी तुलना नरेंद्र भाई से करेंगे और प्रधानमंत्री पद की मांग करेंगे. आखिर लालसा, ऐसी घृणित होती ही है न! यह लत है. मुझे एक बात की संतुष्टि है. मैं भी ढाई साल तक मुख्यमंत्री था, लेकिन मुझे सत्ता की लत नहीं लगी. वह सत्तालोलुपता रक्त में घुल जाए तो आप किसी के नहीं होते और कोई आपका नहीं होता. उनका आज वही हुआ है.
उद्धवजी, विधायक गए, अब कुछ सांसद चले गए...
ये पिछले चुनाव में पराजित हो जाते तो क्या हो गया होता? वे पिछला चुनाव हारे होते, अब ढाई साल बाद वे पराजित हुए हैं, ऐसा मैं समझता हूं.
इतने ज्यादा विधायक हमसे अलग हो रहे हैं या हमें छोड़कर जा रहे हैं, यह तस्वीर जब साफ हुई तो आपके मन में क्या भावना थी?
मेरे मन में यही आया कि ये सभी... इनमें से कई लोग... वे चाहे कुछ भी कहें. मेरे परिवार के ही सदस्य थे, मैं मिलता नहीं था! अरे, मेरे ऑपरेशन के समय मैं हिल भी नहीं पा रहा था तो मिल कैसे सकता था. मेरे हाथ-पांव हिल नहीं रहे थे. अन्य समय ये हमारे परिवार का ही हिस्सा थे. निधि इत्यादि नहीं दी गई कहते हो, तो उस दिन अजीत पवार ने कहा ही कि उनके एक विभाग को १२ हजार करोड़ रुपए दिए गए. कुछ मामलों में आखिर के समय में असमानता मुझे नजर आई तो कुछ निधि आवंटन को मैंने स्थगित कर दिया. इस बारे में राष्ट्रवादी के अध्यक्ष शरद पवार, अजीत दादा, जयंत पाटील, बालासाहेब थोरात इनसे चर्चा शुरू थी कि निधि आवंटन में ऐसी असमानता हो तो यह प्रश्न हमें हल करना होगा... और अधिवेशन काल में अशोकराव चव्हाण के साथ बैठकर हमने उनके विभाग के प्रश्न हल किए थे.
आपका संपर्क नहीं था, ऐसा वे कहते हैं...
अच्छा, अब तो इन सभी विधायकों के साथ मीटिंग शुरू हो चुकी थीं. एक ओर मेरे विधायक तो दूसरी ओर प्रशासन को बैठाकर चर्चाएं जारी थीं. काम कहां रुका है ये मैं खुद देखता था. समस्याएं पूछता था. मुख्यमंत्री के तौर पर मौके पर ही उन्हें हल करने के निर्देश देता था. और सभी विधायकों को पूछता था कि अब कोई समस्या है क्या? तब कहा जाता था कि साहेब, कुछ नहीं. आप आज जैसे मिले हो, उसी तरह हमसे मिलते रहो. हमें दूसरा कुछ नहीं चाहिए... खैर, मेरा यही कहना है कि आपको यह करना ही था तो आप सामने आकर क्यों नहीं बोले? आंखों में आंखें डालकर बोलने की हिम्मत आपने क्यों नहीं दिखाई? मतलब आपके मन में पाप था.
बागी विधायक पहले सूरत गए, फिर गुवाहाटी, फिर वे गोवा आए. इस तरह उन्होंने ‘पर्यटन' किया. शुरुआत में ये सभी विधायक पहली बार बेहद सुनियोजित तरीके से सूरत गए. यानी ये विधायक बेहद सुरक्षित स्थान पर सूरत गए? गुवाहाटी जाने के लिए भी सूरत के ही रास्ते से जा रहे थे? क्यों?
हां! वही मेरा सवाल है.
फिर कर्नाटक क्यों नहीं गए? मध्य प्रदेश क्यों नहीं गए? पहले गोवा क्यों नहीं गए? राजस्थान में क्यों नहीं गए? पहले गुजरात में ही क्यों गए? हैदराबाद भी नहीं गए?
हां, सही है. हां... और गुवाहाटी जाते समय भी वाया सूरत होकर जा रहे थे. यह रहस्य मुझे समझ में नहीं आया?
रहस्य में ही उत्तर है न!
लोगों के मन में एक सवाल है कि खुद उद्धव ठाकरे सूरत गए होते तो...
किसलिए?
तो तस्वीर बदल गई होती?
वही मैं पूछ रहा हूं, किसलिए? मेरे मन में पाप नहीं था. मैं आपको बुला रहा था. मेरे सामने आकर बैठो, बोलो. चलो मान भी लो, राष्ट्रवादी आपको तकलीफ दे रही थी. तो मैंने उन्हें कुछ इस तरह कहा कि जिन विधायकों को साल 2014 में भाजपा ने दगा दिया, फिर भी भाजपा के साथ ही जाएंगे? पर गए हम भाजपा के साथ. वर्ष 2019 में भी हमें दिए गए शब्दों का पालन नहीं हुआ. शिवसेना के उम्मीदवारों को हराने के लिए, इन्हीं विधायकों के विरुद्ध भाजपा ने अपने बागियों को खड़ा किया था. इन्हीं विधायकों का कहना है. उन्हीं का अनुभव है. मतलब भाजपा को तब भी और आज भी शिवसेना को खत्म करना है. उन्हीं के साथ ये गए हैं.
इतनी भाजपा भक्ति का क्या राज हो सकता है?
मुझे यह बताया गया कि कुछ विधायकों का दबाव है कि हमें भाजपा के साथ जाना चाहिए. मैंने कहा कि ऐसे सभी विधायकों को लाओ मेरे पास. दो-तीन प्रश्न मेरे मन में हैं. एक तो बिना वजह के शिवसैनिकों के पीछे ईडी-पीडी लगा रखी है. उनका उत्पीड़न शुरू है, जो हिंदुत्व के लिए उस समय दंगों में लड़े थे वे शिवसैनिक, जिनमें अनिल परब हों या हिंदुत्व के पक्ष को मजबूती से रखनेवाले आप हो. उन्हें आप एकदम से प्रताड़ित करने लगे हैं. यह उत्पीड़न कहां तक जाएगा. बेवजह! ऐसा उनका कौन-सा बड़ा अपराध है? दूसरी बात, उस समय जो तय था उसे नकारा गया, उन मुद्दों का इस बार भारतीय जनता पार्टी अब क्या करेगी? शिवसेना के साथ सम्मानित व्यवहार कैसे करेगी? तीसरी बात मुझे विधायकों से पूछनी ही है, सांसदों से मैंने उस दिन पूछा ही था कि गत ढाई वर्ष किसी ने हिम्मत नहीं की, जब बालासाहेब के परिवार पर ‘मातोश्री' पर आपत्तिजनक भाषा में बोला गया, इस बारे में आप क्या कहेंगे? उस दौरान आप क्यों नहीं बोले कि हमें यह स्वीकार नहीं. इतना सब आपके नेताओं के परिजनों पर, घरों पर, नेताओं को लेकर, ‘मातोश्री' के संदर्भ में बोलने के बाद भी आप दुम दबाए रहेंगे? जैसे भुजबल के बारे में कहा जाता है. भुजबल ने गिरफ्तारी का प्रयत्न किया. हालांकि भुजबल ने विस्तृत स्पष्टीकरण दिया है. खुद भुजबल और शिवसेनाप्रमुख की भेंट ‘मातोश्री' में हुई थी. उस समय जो कुछ संवाद हुआ था उसका मैं भी गवाह हूं. मुझे लगता है आप भी थे!
हां मैं था...और बालासाहेब ने उन्हें माफ किया. बालासाहेब ने कहा था कि आगे से हमारा बैर खत्म हो गया!
बालासाहेब सरल स्वभाव के थे. उन्होंने अनेकों बार शत्रुओं को भी माफ किया?
ठीक है. वैसे ये जो कुछ भी इन लोगों ने किया है उसका आगे क्या होना है... कि यह सारी बदनामी सहन करके केवल आपके आग्रह पर मैं शिवसेना उनकी झोली में डालूं या उनके दरवाजे पर बांधूं? आपको जाना है तो आप जा सकते हैं, पर शिवसेना को सम्मानपूर्वक आदि जो कुछ कह रहे हैं, वह उन्होंने पहले क्यों नहीं किया? यदि यह तय अनुसार हुआ होता, तो अब ढाई साल हो गया होता. या तो उनका मुख्यमंत्री हुआ होता या शिवसेना का. खैर, मैंने यह भी कहा था कि शिवसेना को मुख्यमंत्री पद पहले ढाई साल दिए होते तो मैं ढाई साल बाद जिस दिन इस्तीफा देना है, उस तारीख को दिनांक-वार डालकर, उस पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर और नीचे तारीख लिखकर पक्षप्रमुख के तौर पर मेरे हस्ताक्षर करके, कि अमुक एक दिन, इस तारीख को इस दिन शिवसेना का मुख्यमंत्री हट जाएगा और इस पत्र का होर्डिंग बनाकर उसे मंत्रालय के दरवाजे पर लगाया होता.
आज आपको ऐसा नहीं लग रहा है कि महाराष्ट्र में मजाक चल रहा है, ‘हास्य मेले' के सीजन की तरह? जिन्हें मुख्यमंत्री होना चाहिए था, वे उपमुख्यमंत्री बने दिखाई दे रहे हैं...यह ऊपरवाले की मेहरबानी!
यह कौन-सा ऊपरवाला? उनका उन्हें पता.
देवेंद्र फडणवीस यहां भाजपा में सबसे बड़े नेता हैं. वे पांच वर्ष मुख्यमंत्री थे...
देवेंद्र फडणवीस के साथ भाजपा ने ऐसा बर्ताव क्यों किया, यह मेरी भी समझ से परे है, पर ठीक है. वह उनकी पार्टी का अंदरूनी मामला है. उनकी पार्टी के पुराने परिचित निष्ठावान, उस वक्त हमारे साथ युति में शामिल अनेक नेता आज भी मेरे संपर्क में हैं. पर वे निष्ठापूर्वक भाजपा के साथ हैं. उन्हें लेकर मुझे ऐसी गलतफहमी पैदा नहीं करनी है कि उन्हें शिवसेना के साथ आना है. मैं बेवजह ऐसा खोखला दावा करूंगा भी नहीं. लेकिन उन्हें मौजूदा हालात पच नहीं रहे हैं. फिर भी वे निष्ठा से भाजपा के काम कर रहे हैं. यहां बाहरी लोगों को सब कुछ दिया गया. उनके सिर पर बाहर के लोगों को बिठाया गया. उस समय ऊपरी सदन में विरोधी पक्ष नेता के तौर पर बाहर का व्यक्ति. अब मुख्यमंत्री पद पर... अन्य पदों पर भी बाहर के ही, फिर भी वे निष्ठापूर्वक काम कर रहे हैं.
महाराष्ट्र में उन्हें ‘शिवसेना विरुद्ध शिवसेना' की लड़ाई करानी है?
शिवसैनिकों के जरिए शिवसेना खत्म करनी है, लेकिन जो गए वे शिवसैनिक नहीं हैं, यह ध्यान रहे!
आपने अचानक ‘वर्षा' छोड़ा, बिना सोचे-विचारे...
तो क्या?
यह शॉक ही था...
जिस प्रकार बिना सोचे-विचारे वहां गया, उसी प्रकार बिना सोचे-विचारे निकल भी आया. एक बात ध्यान रहे, जो चीजें हमारी नहीं हैं उसे पाने में कोई खुशी नहीं होनी चाहिए और जो चीजें आपकी नहीं ही थी उसे छोड़ने में बुरा महसूस करने का कोई कारण नहीं होना चाहिए. जो लोग हमारे नहीं थे, वे छोड़कर चले गए. उनके लिए बुरा महसूस करने का कोई कारण नहीं है, ऐसा मैं कहूंगा. हम उन्हें अपना मानते थे. यहीं गलती हुई!
आप जब मुख्यमंत्री पद से हट गए, तब दूरदर्शन पर लाइव आकर आपने कहा कि, ‘वर्षा' को छोड़ रहा हूं. मुख्यमंत्री पद भी छोड़ रहा हूं. आप जब निकले तब महाराष्ट्र की आंखों में अश्रु थे... और ‘वर्षा' से ‘मातोश्री' के बीच रास्ते भर महिलाएं, युवा, बुजुर्ग सड़कों के दोनों किनारों पर खड़े होकर आपका अभिवादन कर रहे थे. यह दृश्य देखकर आपको कैसा लगा? क्योंकि राजनीति में ऐसा होता नहीं है...
मैं ऐसा मानता हूं कि उस घटनाक्रम ने एक अलग ही तरीके से मेरे जीवन को सार्थक बना दिया. आज तक कई मुख्यमंत्री आए और गए. मैं भी था और अब मैं भी चला गया. आज वो हैं. कभी उन्हें भी तो जाना ही पड़ेगा. अच्छा हुआ, जो गया... आमतौर पर ऐसा कहा जाता है कि गए तो गए. दूसरे आएंगे, ऐसा भी कहा जाता है, पर कोई मुख्यमंत्री पदच्युत होता है और लोग भावुक... मुझे लगता है कि यह आशीर्वाद और यह कमाई मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है. क्योंकि लोगों को मैं अपना लगा, अपना लगता हूं. इसके अलावा जीवन में क्या चाहिए! प्रेम पैसों के मोल नहीं खरीदा जा सकता. पैसों से लिया नहीं जा सकता. अनेकों ने मुझे कहा कि आप जब बोलते हैं तब ऐसा लगता है कि कोई हमारा परिजन ही बोल रहा है. ऐसा सौभाग्य बहुत ही कम लोगों को नसीब होता है.
आपने फ्लोर टेस्ट का सामना किया होता तो?
तो क्या हुआ होता?
तो बागी गुट बेनकाब हो गया होता...
हां, हुआ है न. वैसे भी वो बेनकाब हो चुके हैं. विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव में बागी गुट बेनकाब हुआ ही न! उसके पहले ही बेनकाब हो गया. अब तो हर दिन बेनकाब हो रहा है. चुनाव आयोग को जो पत्र दिया है उसमें भी अनुशासनाहीनता की कार्यवाही समाविष्ट है. मैंने पहले ही कहा था कि फिलहाल लोकतंत्र में सिर इस्तेमाल करने की बजाय, गिनने में ज्यादा इस्तेमाल होता है.
फिर वास्तव में क्या हुआ?
मुझे लगातार यह महसूस कराया जाता था कि कांग्रेस दगा देगी और पवार साहेब पर तो बिल्कुल भी विश्वास नहीं किया जा सकता है. वे ही आपको गिराएंगे, ऐसा ही सब कहते थे. अजीत पवार के बारे में भी मेरे पास आकर बोलते थे. हालांकि मुझे मेरे ही लोगों ने दगा दिया. फिर सदन में एक व्यक्ति ने भी मेरे विरुद्ध वोट दिया होता तो वह मेरे लिए लज्जास्पद होता. अगर उन्होंने आखिरी वक्त में भी ठीक से कहा होता, तो भी सब कुछ सम्मानजनक ढंग से हो गया होता. एकदम आखिरी क्षण में भी मैंने इन विश्वासघातियों से यह पूछा भी था कि आपको मुख्यमंत्री बनना है क्या? ठीक है न, हम बात करते हैं. हम कांग्रेस-राष्ट्रवादी से बात करेंगे. भाजपा के साथ जाना है क्या, तो भाजपा से इन दो-तीन प्रश्नों का उत्तर मिलने दो. ठीक है, कांग्रेस राष्ट्रवादी को जाकर बताऊं कि मेरे लोग तुम्हारे साथ खुशी से रहने को कोई तैयार नहीं, पर उनमें उतनी हिम्मत नहीं थी. कारण ही नहीं था न कोई. रोज नए कारण सामने आ रहे हैं.
मतलब आप मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार थे?
मुख्यमंत्री पद स्वीकार करने की मेरी इच्छा ही नहीं थी. लेकिन उस समय एक जिद के नाते वो किया, मैं स्वेच्छा से मुख्यमंत्री नहीं बना, बल्कि एक जिद के चलते मुख्यमंत्री बना. उसी जिद के सहारे ढाई वर्षों तक काम-काज को मैंने मेरे तरीके से किया.
आपने ढाई वर्ष तक सरकार चलाई, राज्य का काम-काज किया. आज की नई सरकार की ओर आप कैसे देखते हैं?
सरकार स्थापित होने पर उस पर ‘बोलने' का अर्थ है. अब तक सरकार स्थापित नहीं हुई?
बिल्कुल नहीं! क्योंकि वर्तमान में ‘हम दो एक कमरे में बंद हों... और चाबी खो जाए' ऐसा ही चल रहा है. ‘ऊपर' की चाबी से जब ये खुलेगा तब मंत्रिमंडल का विस्तार होगा.
16 विधायकों पर अपात्रता की तलवार है...
हां, है ही, उस विषय पर मैं अभी कुछ नहीं बोलूंगा, क्योंकि वह प्रकरण अभी कोर्ट में है. लेकिन कई कानून विशेषज्ञों के मतानुसार कानूनी रूप से क्या होगा, यह लोगों को अब समझ में आ गया है. क्योंकि जो कानून है उसमें सब कुछ साफ और स्पष्ट है. और मुझे नहीं लगता है कि अपने देश में संविधान विरुद्ध कृत्य करने की हिम्मत किसी में होगी. न्यायालय में जो कुछ होना है, वो होगा. लेकिन उस वजह से अभी मुझे ज्यादा बोलना नहीं है. सिर्फ एक ही बात बोलूंगा कि पहले देव आनंद की एक फिल्म आई थी ‘हम दोनों'! दोनों पर बहुत कुछ है.
हां, एक दूजे के लिए भी है ही.
हां, बहुत कुछ है, पर उन्होंने जो निर्णयों को स्थगिति देने की जल्दबाजी की है उसमें आरे कारशेड का निर्णय है, यहां मुझे एक ही बात कहनी है. मुझ पर जो गुस्सा है उसे मुंबईकरों पर न निकालें, मुंबई के पर्यावरण से घात होगा. ऐसा कुछ मत करो, क्योंकि वहां पेड़ों का कत्ल करने पर तेंदुए और अन्य प्राणियों की जान पर बन आएगी, वहां पर वन्य जीव होने की रिपोर्ट भी है. उसकी बजाय कांजुर में उजाड़ जगह है. यही कारशेड वहां बनाया जाता है तो यही मेट्रो हम अधिक लोकसंख्या के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे. आज नहीं तो कल, कांजुर को हाथ लगाना ही पड़ेगा. अब भी फिर एक बार कहता हूं कि आरे में कारशेड बनाने के लिए इन्होंने कोर्ट में प्रतिज्ञापत्र दिया है कि इतनी सारी जगह हम इस्तेमाल नहीं करेंगे, परंतु उतनी जगह उन्हें इस्तेमाल करनी ही पड़ेगी. वहां वृक्ष हैं. तो कृपा करके केवल अपनी जिद की खातिर मुंबई से घात न करें. फिर यही कहना पड़ेगा कि ये मुंबई से बाहर के होने के नाते इन्हें मुंबई से प्रेम नहीं है क्या? मुख्यमंत्री महाराष्ट्र का होता है, वो केवल मुंबई, ठाणे या नागपुर का नहीं होता, मैंने मुख्यमंत्री रहते हुए जहां-जहां संभव था, वहां-वहां वन क्षेत्र बढ़ाया है. इसका मुझे समाधान है. मुंबई में भी मैंने ८०० एकड़ जंगल घोषित किए, अनेक रिजर्व फॉरेस्ट मैंने घोषित किए, आनेवाले समय में और कई काम होनेवाले थे. क्योंकि अंतत: पर्यावरण महत्वपूर्ण है. पर्यावरण खत्म हुआ तो ऑक्सीजन कहां से लाओगे?
आपने महत्वपूर्ण मुद्दा उपस्थित किया, मुंबई से घात न करें. पिछले एक महीने की राजनीति में मुंबई के साथ घात करने की योजना लगती है क्या? शिवसेना की जो पकड़ मुंबई पर है...उन्हें, वहीं पकड़ मिटानी है?
जरूर, यह उनका पुराना सपना है... और मैं पहले ही बोल चुका हूं कि रावण की जान जैसे नाभि में थी, वैसे ही इन राजनेताओं की जान मुंबई में है. ऐसा यह विचित्र प्रकार है. दिल्ली मिली है तब भी उन्हें मुंबई चाहिए, सच कहें तो... जिस वक्त से युति हुई तब से शिवसेनाप्रमुख का एक वाक्य है कि ‘आप देश संभालो मैं महाराष्ट्र संभालूंगा'. हालांकि आप हमें देश में पसरने नहीं दे रहे हैं. वैसे भी लाल किले पर भाषण देने की हमारी इच्छा नहीं है. पर कम-से-कम महाराष्ट्र और मुंबई में आप हमें जगह नहीं दे रहे हो तो युति का अर्थ क्या? यही उस वक्त बालासाहेब का और आज हमारा सवाल है.
मुंबई का भविष्य क्या? इस वातावरण में मराठी माणुस, शिवसेना, मुंबई का भविष्य क्या? क्योंकि मुंबई महानगरपालिका का चुनाव किसी भी वक्त घोषित हो सकता है...?
तो होना ही चाहिए.
और जो मुंबई पर भगवा लहरा रहा है...वो फिर लहराएगा? इसे लेकर शंका पैदा की जा रही है और शिवसेना को पराजित करेंगे?
अरे छोड़ो, इससे पहले कइयों ने कहा है कि ‘शिवसेना' इस चुनाव के बाद नहीं रहेगी वगैरह! मुंबई में अब मुंबईकर के नाते सभी एक साथ हैं. उस समय उन्होंने हिंदुओं में फूट डालने का प्रयत्न किया कि यह मराठी और वह गैर मराठी वगैरह, लेकिन अब ये सब लोग मुझे आकर मिल रहे हैं. मराठी और गैर मराठी के बीच फूट डालने का प्रयत्न आज भी शुरू है. पर अब कोई इसका शिकार नहीं होगा. मराठी माणुस एकजुट हुआ है, तमाम मुंबईकर आज चुनाव की प्रतीक्षा कर रहे हैं. और मेरा मानना ऐसा है कि मुंबई ही नहीं, बल्कि राज्य विधानसभा के चुनाव भी होने ही चाहिए.
शिवसेना का मुख्यमंत्री फिर होगा?
क्यों नहीं होगा? और यदि वो करना न हो तो मेरी लड़ाई का क्या अर्थ है. मैंने जो शिवसेनाप्रमुख को वचन दिया है वह आज भी कायम है. मैं भी शिवसेना का ही हूं. मैं पक्षप्रमुख हूं. लेकिन मेरा वह उद्देश्य नहीं था. मैं मुख्यमंत्री बनूंगा ऐसा मैंने बोला नहीं था और वचन पूर्ति के बाद भी मैं क्या दुकान बंद करके बैठूंगा? शिवसेना मुझे बढ़ानी है और उसे यदि मैं बढ़ाने का प्रयत्न छोड़ता हूं तो मैं कैसा पक्षप्रमुख?
आज राज्य का माहौल क्या कह रहा है? राज्य में माहौल गरमा रहा है. आज आदित्य के दौरे हम देख ही रहे हैं?
हां! आदित्य ठाकरे के दौरों को प्रचंड प्रतिसाद मिल रहा है...भारी भीड़ उमड़ रही है. सभी ओर यही चर्चा है कि विश्वासघातियों को सबक सिखाया जाए.
आप कब बाहर निकलेंगे? राज्य का दौरा कब करेंगे?
मैं साधारणत: अगस्त में बाहर निकलूंगा. इसका कारण यह है कि पिछले ही सप्ताह मैंने जिलाप्रमुखों को कुछ निर्देश दिए हैं, ज्यादा-से-ज्यादा सदस्यों का पंजीकरण, उसके बाद सक्रिय कार्यकर्ताओं का पंजीकरण, यह बड़े पैमाने पर शुरू है. अब आदित्य घूम रहा है. एक-एक चरण में जा रहा है. ठीक है. उसके बाद मैं राज्य में घूमने लगा तो उसमें इन लोगों को शामिल होने के लिए भी काम छोड़ने पड़ेंगे, इसी कारण से ही मैं रुका हुआ हूं. एक बार पंजीकरण का काम हो जाने दो, फिर मैं भी बाहर निकलूंगा. सभी नेता मेरे साथ घूमेंगे. संपूर्ण राज्य का दौरा होगा. राज्य भर में झंझावात निर्माण करेंगे.
शिवसेना का तूफान इस महाराष्ट्र में फिर आएगा?
करना ही पड़ेगा. शिवसेना का तूफान है ही. लोगों के मनों में, दिलों में आज भी तूफान है. महाराष्ट्र में शिवसेना का तूफान फिर आएगा.
अंत में जाते-जाते एक प्रश्न और पूछता हूं, ये जो बागी लोग हैं उन्होंने आपसे विनती की है कि उन्हें गद्दार न कहें...
विश्वासघाती बोला है न उन्हें. गद्दार कहां बोला? इसलिए आज विश्वासघाती शब्द का उपयोग किया. उनका भी मान मैंने रखा है. इसलिए उन्हें विश्वासघाती बोला, गद्दार नहीं बोला.
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