नई दिल्ली:
पवित्र अमरनाथ गुफा 13 हजार फुट की ऊंचाई और दिल्ली से 950 किमी की दूरी पर है. हमने पवित्र अमरनाथ के दर्शन की योजना बनाई. इस योजना में कई अड़चनें मौजूद थीं. सबसे बड़ी अड़चन बार-बार बदलता खराब मौसम था. भारी बारिश के चलते हजारों यात्रियों को जगह जगह रोका गया. लगातार हो रहे भूस्खलन और ग्लेशियर के टूटने से रास्ता बंद होने की बाधा थी और दूसरी चुनौती आतंकी खतरों के बीच हमारी सुरक्षा थी. आमतौर पर दिल्ली से पवित्र अमरनाथ गुफा तक की यात्रा पांच दिन की मानी जाती है. हमने भी पवित्र अमरनाथ गुफा तक की यात्रा हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर, जीप, खच्चर और पैदल पूरी की. आखिर तमाम जोखिमों के बावजूद कैसे एनडीटीवी इंडिया पवित्र अमरनाथ गुफा तक पहुंचा ये जानने के लिए आपको ये कहानी पूरी पढ़नी होगी.
दिल्ली से श्रीनगर वाया जम्मू की फ्लाइट 8 बजकर 45 मिनट पर है. पहले जम्मू, फिर हम करीब 11 बजे श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरे. लेकिन खराब मौसम ने हमारा आगे का रास्ता रोक लिया. श्रीनगर में हो रही लगातार बारिश के चलते झेलम नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही थी. नदी का पानी सड़कों पर भर गया जिसके चलते हमें श्रीनगर के ITBP कैंप में वापस लौटना पड़ा.
श्रीनगर से पवित्र अमरनाथ यात्रा के दो रास्ते हैं, पहला श्रीनगर से सोनमर्ग, बालताल, बरारी होते हुए पवित्र अमरनाथ गुफा तक करीब 106 किमी तक का सफर. दूसरा जम्मू से पहलगाम होते हुए, चंदनवाड़ी, पिस्सू टॉप, शेषनाग, पंचतरिणी होते हुए अमरनाथ गुफा तक करीब 325 किमी का सफर. भारी बारिश की वजह से सड़क का रास्ता खराब हो गया था जिससे हजारों यात्री जगह-जगह फंस गए. तब हमने श्रीनगर से सोनमर्ग और फिर सोनमर्ग से पंचतरिणी होते हुए अमरनाथ गुफा तक जाना तय किया.
श्रीनगर में चार घंटे रुकने के बाद हम गाड़ी से सोनमर्ग के लिए रवाना हुए. 2014 में श्रीनगर में आई बाढ़ के चलते हजारों गाड़ियों में पानी भर गया था इसी के चलते बारिश से पहले ही सड़क पर लोगों ने गाड़ियां खड़ी कर दीं. श्रीनगर से सोनमर्ग करीब 80 किमी दूर है. लेकिन खराब मौसम के चलते हम देर रात को सोनमर्ग पहुंचे. रातभर बारिश के बाद सुबह सोनमर्ग का मौसम साफ हुआ तो हमने फिर अपनी यात्रा शुरू की. हमारे साथ IPS अधिकारी राजाबाबू सिंह, दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर संजीव मंडल, SS Techno कंपनी के अशोक कसाना और अजय उपाध्याय भी थे. सबने कहा कि हम पहले नीलग्रांट जाएंगे. फिर वहां से हेलीकॉप्टर के जरिए पंचतरिणी जाएंगे, फिर वहां से पैदल या खच्चर के जरिए अमरनाथ यात्रा करेंगे.
लेकिन कहते हैं कि पहाड़ के मौसम को समझना बहुत मुश्किल है. सोनमर्ग से नीलग्रांट हेलीपैड पर पहुंचते-पहुंचते फिर बारिश शुरू हो गई और हेलीकॉप्टर सेवा बाधित हो गई. सड़क के सभी रास्ते बंद होने के चलते नीलग्रांट हेलीपैड से हेलीकॉप्टर के सहारे पंचतरिणी जाने वाले हजारों तीर्थयात्रियों को यहां भी कई दिन इंतजार करना पड़ा. लेकिन कुछ ही घंटों बाद मौसम साफ होने लगा और हमारी पंचतरिणी पहुंचने की उम्मीद बढ़ने लगी.
अब मौसम धीरे-धीरे साफ होने लगा. बरसात के बादल धीरे-धीरे छंटने लगे. हमारा हेलीकॉप्टर उड़ान के लिए तैयार होने लगा. हम हेलीकॉप्टर में सवार हो गए. उड़ान के दौरान पंचतरिणी नदी के ऊपर करीब सात मिनट की उड़ान के बाद हम पंचतरिणी घाटी पहुंच गए. यहां पांच नदियां मिलती हैं इसी के चलते इस नदी को पंचतरिणी नदी कहा जाता है.
यहां हजारों तंबू इस लगे हैं. दोपहर बाद यहां पहुंचने वाले यात्रियों को ऊपर अमरनाथ नहीं जाने दिया जाता है. हम दोपहर करीब 12.30 बजे पंचतरिणी पहुंच गए. यहां लगातार हो रही बारिश के चलते रास्ता खराब हो चुका था. हमें पांच बजे तक हर हाल में पंचतरिणी के इस हेलीपैड पर वापस आना था. शाम को फिर से मौसम खराब होने का अनुमान था.
पंचतरिणी से पवित्र अमरनाथ गुफा तक जाने के तीन तरीके हैं. या तो आप यहां पैदल चढ़ाई चढ़ते हैं या फिर पालकी और खच्चर से भी आप पवित्र अमरनाथ गुफा तक जा सकते हैं. दो किमी तक पैदल चलने के बाद हमें किचड़ से भरा इतना खराब रास्ता मिला कि पैदल चलना लगभग नामुमकिन सा हो गया था.
बारिश के कारण रास्ता बहुत फिसलन भरा हो गया था. एक बार तो मैं भी खच्चर से खाई में गिरते गिरते बचा. खच्चर के साथ चल रहे शब्बीर ने किसी तरह संभाला. शब्बीर जैसे हजारों स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना बाबा अमरनाथ की यात्रा पूरी नहीं हो सकती है. पंचतरिणी से अमरनाथ घाटी तक पहुंचने के बीच की एक जगह है जो संगम कहलाती है. एक छोटा सा पगडंडीनुमा रास्ता पहलगाम से आकर यहां मिलता है. इस जगह से पवित्र अमरनाथ गुफा की दूरी तीन किमी है. बम बम भोले बोलते हुए हम यात्रा के खतरनाक रास्तों से आगे बढ़ रहे हैं. अब हम अमरनाथ घाटी पहुंच चुके हैं. ये घाटी कभी बर्फ से ढकी रहती थी. लेकिन इस साल ग्लेशियर बहुत कम है. जो ग्लेशियर है वो भी लगातार पिघलकर गिर रहे हैं जिससे जान का खतरा बराबर बना रहता है.
अमरनाथ घाटी से पवित्र गुफा की झलक हमें मिलने लगी, इसी के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु तमाम खतरे मोल लेते हैं. लेकिन इस कठिन यात्रा पर मौसम की मार के साथ आतंकी खतरे का साया भी है, लिहाजा 40 हजार सुरक्षाकर्मी चप्पे चप्पे पर तैनात हैं. सुरक्षा कर्मियों की चिंता आतंकी हमले के साथ खराब मौसम में बीमार होने वाले यात्री भी हैं.
अमरनाथ गुफा के पास की पहाड़ी शेषनाग पहाड़ी दिखती है जो बर्फ से ढकी है. बाबा अमरनाथ की गुफा करीब बीस मीटर लंबी और 16 मीटर चौड़ी है. इसी के अंदर हमें पवित्र अमरनाथ के इस तरह दर्शन मिले. बाबा अमरनाथ की कथा भी कम चिलचस्प नहीं है.
दिल्ली से श्रीनगर वाया जम्मू की फ्लाइट 8 बजकर 45 मिनट पर है. पहले जम्मू, फिर हम करीब 11 बजे श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरे. लेकिन खराब मौसम ने हमारा आगे का रास्ता रोक लिया. श्रीनगर में हो रही लगातार बारिश के चलते झेलम नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही थी. नदी का पानी सड़कों पर भर गया जिसके चलते हमें श्रीनगर के ITBP कैंप में वापस लौटना पड़ा.
श्रीनगर से पवित्र अमरनाथ यात्रा के दो रास्ते हैं, पहला श्रीनगर से सोनमर्ग, बालताल, बरारी होते हुए पवित्र अमरनाथ गुफा तक करीब 106 किमी तक का सफर. दूसरा जम्मू से पहलगाम होते हुए, चंदनवाड़ी, पिस्सू टॉप, शेषनाग, पंचतरिणी होते हुए अमरनाथ गुफा तक करीब 325 किमी का सफर. भारी बारिश की वजह से सड़क का रास्ता खराब हो गया था जिससे हजारों यात्री जगह-जगह फंस गए. तब हमने श्रीनगर से सोनमर्ग और फिर सोनमर्ग से पंचतरिणी होते हुए अमरनाथ गुफा तक जाना तय किया.
श्रीनगर में चार घंटे रुकने के बाद हम गाड़ी से सोनमर्ग के लिए रवाना हुए. 2014 में श्रीनगर में आई बाढ़ के चलते हजारों गाड़ियों में पानी भर गया था इसी के चलते बारिश से पहले ही सड़क पर लोगों ने गाड़ियां खड़ी कर दीं. श्रीनगर से सोनमर्ग करीब 80 किमी दूर है. लेकिन खराब मौसम के चलते हम देर रात को सोनमर्ग पहुंचे. रातभर बारिश के बाद सुबह सोनमर्ग का मौसम साफ हुआ तो हमने फिर अपनी यात्रा शुरू की. हमारे साथ IPS अधिकारी राजाबाबू सिंह, दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर संजीव मंडल, SS Techno कंपनी के अशोक कसाना और अजय उपाध्याय भी थे. सबने कहा कि हम पहले नीलग्रांट जाएंगे. फिर वहां से हेलीकॉप्टर के जरिए पंचतरिणी जाएंगे, फिर वहां से पैदल या खच्चर के जरिए अमरनाथ यात्रा करेंगे.
लेकिन कहते हैं कि पहाड़ के मौसम को समझना बहुत मुश्किल है. सोनमर्ग से नीलग्रांट हेलीपैड पर पहुंचते-पहुंचते फिर बारिश शुरू हो गई और हेलीकॉप्टर सेवा बाधित हो गई. सड़क के सभी रास्ते बंद होने के चलते नीलग्रांट हेलीपैड से हेलीकॉप्टर के सहारे पंचतरिणी जाने वाले हजारों तीर्थयात्रियों को यहां भी कई दिन इंतजार करना पड़ा. लेकिन कुछ ही घंटों बाद मौसम साफ होने लगा और हमारी पंचतरिणी पहुंचने की उम्मीद बढ़ने लगी.
अब मौसम धीरे-धीरे साफ होने लगा. बरसात के बादल धीरे-धीरे छंटने लगे. हमारा हेलीकॉप्टर उड़ान के लिए तैयार होने लगा. हम हेलीकॉप्टर में सवार हो गए. उड़ान के दौरान पंचतरिणी नदी के ऊपर करीब सात मिनट की उड़ान के बाद हम पंचतरिणी घाटी पहुंच गए. यहां पांच नदियां मिलती हैं इसी के चलते इस नदी को पंचतरिणी नदी कहा जाता है.
यहां हजारों तंबू इस लगे हैं. दोपहर बाद यहां पहुंचने वाले यात्रियों को ऊपर अमरनाथ नहीं जाने दिया जाता है. हम दोपहर करीब 12.30 बजे पंचतरिणी पहुंच गए. यहां लगातार हो रही बारिश के चलते रास्ता खराब हो चुका था. हमें पांच बजे तक हर हाल में पंचतरिणी के इस हेलीपैड पर वापस आना था. शाम को फिर से मौसम खराब होने का अनुमान था.
पंचतरिणी से पवित्र अमरनाथ गुफा तक जाने के तीन तरीके हैं. या तो आप यहां पैदल चढ़ाई चढ़ते हैं या फिर पालकी और खच्चर से भी आप पवित्र अमरनाथ गुफा तक जा सकते हैं. दो किमी तक पैदल चलने के बाद हमें किचड़ से भरा इतना खराब रास्ता मिला कि पैदल चलना लगभग नामुमकिन सा हो गया था.
बारिश के कारण रास्ता बहुत फिसलन भरा हो गया था. एक बार तो मैं भी खच्चर से खाई में गिरते गिरते बचा. खच्चर के साथ चल रहे शब्बीर ने किसी तरह संभाला. शब्बीर जैसे हजारों स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना बाबा अमरनाथ की यात्रा पूरी नहीं हो सकती है. पंचतरिणी से अमरनाथ घाटी तक पहुंचने के बीच की एक जगह है जो संगम कहलाती है. एक छोटा सा पगडंडीनुमा रास्ता पहलगाम से आकर यहां मिलता है. इस जगह से पवित्र अमरनाथ गुफा की दूरी तीन किमी है. बम बम भोले बोलते हुए हम यात्रा के खतरनाक रास्तों से आगे बढ़ रहे हैं. अब हम अमरनाथ घाटी पहुंच चुके हैं. ये घाटी कभी बर्फ से ढकी रहती थी. लेकिन इस साल ग्लेशियर बहुत कम है. जो ग्लेशियर है वो भी लगातार पिघलकर गिर रहे हैं जिससे जान का खतरा बराबर बना रहता है.
अमरनाथ घाटी से पवित्र गुफा की झलक हमें मिलने लगी, इसी के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु तमाम खतरे मोल लेते हैं. लेकिन इस कठिन यात्रा पर मौसम की मार के साथ आतंकी खतरे का साया भी है, लिहाजा 40 हजार सुरक्षाकर्मी चप्पे चप्पे पर तैनात हैं. सुरक्षा कर्मियों की चिंता आतंकी हमले के साथ खराब मौसम में बीमार होने वाले यात्री भी हैं.
अमरनाथ गुफा के पास की पहाड़ी शेषनाग पहाड़ी दिखती है जो बर्फ से ढकी है. बाबा अमरनाथ की गुफा करीब बीस मीटर लंबी और 16 मीटर चौड़ी है. इसी के अंदर हमें पवित्र अमरनाथ के इस तरह दर्शन मिले. बाबा अमरनाथ की कथा भी कम चिलचस्प नहीं है.
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