मुफ्त चुनावी सौगातों को लेकर देश में जारी बहस के बीच चुनाव आयोग ने कहा है कि चुनावी वादे करने वाले राजनीतिक दलों को इस बात का ब्योरा देना चाहिए कि वे इन वादों के लिए पैसा कैसे जुटाने की योजना बना रहे हैं. चुनाव आयोग द्वारा सुझाए गए नए नियम पार्टियों को वोटर्स के प्रति अधिक जवाबदेह बनाएंगे. चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को खत लिखा है और पूछा है कि उनके घोषणापत्र में किए गए वादों के लिए पैसा जुटाने के लिए तरीकों और साधनों का विवरण मांगा है. पार्टियों को प्रस्तावित बदलावों पर 19 अक्टूबर तक जवाब देना है. चुनाव आयोग ने अपने पत्र में कहा है, ''मतदाताओं का भरोसा उन्हीं वादों पर मांगा जाना चाहिए, जिन्हें पूरा किया जाना संभव हो.'' इसमें कहा गया है कि खोखले चुनावी वादों का दूरगामी असर होता है.
पत्र के अनुसार आयोग ने कहा कि चुनावी घोषणा पत्रों में स्पष्ट रूप से यह संकेत मिलना चाहिए कि वादों की पारदर्शिता, समानता और विश्वसनीयता के हित में यह पता लगना चाहिए कि किस तरह और किस माध्यम से वित्तीय आवश्यकता पूरी की जाएगी. आयोग के आदर्श चुनाव संहिता में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार चुनाव घोषणा पत्रों में चुनावी वादों का औचित्य दिखना चाहिए.
निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए आम आदमी पार्टी (आप) ने कहा कि सरकारों को करदाताओं का पैसा नेताओं, उनके परिवार के सदस्यों और मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि जनता को सुविधाएं प्रदान करने के लिए खर्च करना चाहिए. पार्टी ने कहा कि लोगों को बिजली, पानी, स्कूल और अन्य सुविधाएं मुहैया कराना किसी भी सरकार की ‘मुख्य जिम्मेदारी' होती है. आयोग के प्रस्ताव पर पार्टी की राय के बारे में पूछे जाने पर पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता आतिशी ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘आम आदमी पार्टी (निर्वाचन आयोग के समक्ष) अपना विचार रखेगी.'' आयोग ने यह पत्र ऐसे समय में लिखा है, जब कुछ दिन पूर्व ही प्रधानमंत्री ने ‘‘रेवड़ी संस्कृति'' का उल्लेख करते हुए कुछ राजनीतिक दलों पर कटाक्ष किया था। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दलों के बीच इसे लेकर वाद-विवाद आरंभ हो गया था.
राजनीतिक दलों द्वारा किए गए चुनावी वादों की घोषणा संबंधी प्रस्तावित प्रारूप में तथ्यों को तुलना योग्य बनाने वाली जानकारी की प्रकृति में मानकीकरण लाने का प्रयास किया गया है. प्रस्तावित प्रारूप में वादों के वित्तीय निहितार्थ और वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता की घोषणा करना अनिवार्य है. सुधार के प्रस्ताव के जरिये, निर्वाचन आयोग का मकसद मतदाताओं को घोषणापत्र में चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में सूचित करने के साथ ही यह भी अवगत कराना है कि क्या वे राज्य या केंद्र सरकार की वित्तीय क्षमता के भीतर हैं या नहीं।
आयोग ने चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वादों से जुड़ी वित्तीय आवश्यकता का विवरण देने के लिए राजनीतिक दलों के लिए एक प्रारूप भी प्रस्तावित किया है। उसने कहा है कि यदि निर्धारित समयसीमा के भीतर राजनीतिक दलों का जवाब नहीं आता है, तो यह मान लिया जाएगा कि उनके पास इस विषय पर कहने के लिए कुछ विशेष नहीं है. आयोग ने कहा है कि निर्धारित प्रारूप, सूचना की प्रकृति और सूचनाओं की तुलना के लिए मानकीकरण हेतु आवश्यक है.
निर्वाचन आयोग ने यह भी कहा कि किए गए वादों के वित्तीय प्रभाव पर पर्याप्त सूचना मिल जाने से मतदाता विकल्प चुन सकेंगे. आयोग ने यह भी कहा कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता. आयोग ने कहा कि ज्यादातर राजनीतिक दल चुनावी घोषणाओं का ब्योरा समय पर उसे उपलब्ध नहीं कराते.
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं