नई दिल्ली:
लोकसभा में आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पास करवाने से विपक्ष नाखुश है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार ने राज्यसभा को कमज़ोर करने की नीयत से ऐसा किया। अब विपक्ष ने राज्यसभा का सत्र दो दिन बढ़ाने की मांग की है ताकि इस बिल पर बहस हो सके। 16 मार्च को राज्यसभा का पहला चरण समाप्त हो रहा है, ऐसे में इस बिल पर चर्चा के लिए विपक्ष सत्र को बढ़ाने की मांग पर अड़ा है।
समझें क्या है पूरा मामला
दरअसल, अगर कोई विधेयक धनसंबंधी विधेयक के रूप में लोकसभा द्वारा पारित किया जाता है, तो संसद का उच्च सदन अथवा राज्यसभा उस पर केवल चर्चा कर सकती है, उसमें संशोधन नहीं कर सकती। इसके अलावा राज्यसभा को धनसंबंधी बिल पर चर्चा भी तुरंत करनी पड़ती है, क्योंकि यदि राज्यसभा में पेश किए जाने के 14 दिन के भीतर चर्चा नहीं होती है, तो उसे 'पारित मान' लिया जाता है।
विपक्ष का कहना है कि सरकार राज्यसभा को 'अनावश्यक' बनाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि वहां वह अल्पमत में है, और उनके लिए बिलों को पारित कराना कठिन है।
आधार बिल 2016 के अंतर्गत यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर (एकमात्र पहचान क्रमांक) प्रोग्राम अथवा 'आधार' को कानूनी मान्यता दी जाएगी, और फिर सब्सिडी तथा अन्य लाभ सीधे बांटने के लिए उसी का इस्तेमाल किया जाएगा।
क्या है मनी बिल?
कोई बिल मनी बिल या धन विधेयक तब कहा जाता है जब वह संविधान के अनुच्छेद 110(1) में निहित 6 मामलों से जुड़ा हो। ये टैक्स लगाने, हटाने उसे रेगुलेट करने या फिर भारतीय राजकोष से जुड़े होते हैं। कोई बिल मनी बिल है या नहीं इसे लेकर लोकसभा के स्पीकर का फैसला आखिरी होता है। मनी बिल सिर्फ लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है राज्यसभा में नहीं। लोकसभा में पास होने के बाद यह राज्यसभा भेजा जाता है। इसके साथ मनी बिल होने को लेकर स्पीकर का सर्टिफिकेट भी होता है। राज्यसभा इसमें ना तो संशोधन कर सकती है ना ही नामंजूर कर सकती है। राज्यसभा को सिर्फ सुझाव देने का अधिकार होता है और इसे 14 दिनों के भीतर लोकसभा वापस करना होता है। ये लोकसभा पर है कि वह राज्यसभा के सुझाव मानती है या नहीं।
समझें क्या है पूरा मामला
दरअसल, अगर कोई विधेयक धनसंबंधी विधेयक के रूप में लोकसभा द्वारा पारित किया जाता है, तो संसद का उच्च सदन अथवा राज्यसभा उस पर केवल चर्चा कर सकती है, उसमें संशोधन नहीं कर सकती। इसके अलावा राज्यसभा को धनसंबंधी बिल पर चर्चा भी तुरंत करनी पड़ती है, क्योंकि यदि राज्यसभा में पेश किए जाने के 14 दिन के भीतर चर्चा नहीं होती है, तो उसे 'पारित मान' लिया जाता है।
विपक्ष का कहना है कि सरकार राज्यसभा को 'अनावश्यक' बनाने की कोशिश कर रही है, क्योंकि वहां वह अल्पमत में है, और उनके लिए बिलों को पारित कराना कठिन है।
आधार बिल 2016 के अंतर्गत यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर (एकमात्र पहचान क्रमांक) प्रोग्राम अथवा 'आधार' को कानूनी मान्यता दी जाएगी, और फिर सब्सिडी तथा अन्य लाभ सीधे बांटने के लिए उसी का इस्तेमाल किया जाएगा।
क्या है मनी बिल?
कोई बिल मनी बिल या धन विधेयक तब कहा जाता है जब वह संविधान के अनुच्छेद 110(1) में निहित 6 मामलों से जुड़ा हो। ये टैक्स लगाने, हटाने उसे रेगुलेट करने या फिर भारतीय राजकोष से जुड़े होते हैं। कोई बिल मनी बिल है या नहीं इसे लेकर लोकसभा के स्पीकर का फैसला आखिरी होता है। मनी बिल सिर्फ लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है राज्यसभा में नहीं। लोकसभा में पास होने के बाद यह राज्यसभा भेजा जाता है। इसके साथ मनी बिल होने को लेकर स्पीकर का सर्टिफिकेट भी होता है। राज्यसभा इसमें ना तो संशोधन कर सकती है ना ही नामंजूर कर सकती है। राज्यसभा को सिर्फ सुझाव देने का अधिकार होता है और इसे 14 दिनों के भीतर लोकसभा वापस करना होता है। ये लोकसभा पर है कि वह राज्यसभा के सुझाव मानती है या नहीं।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
आधार बिल, मनी बिल, राज्यसभा, लोकसभा, बजट सत्र, Aadhaar Debate, Money Bill, RajyaSabha, LokSabha, Budget Session