इस साल मुंबई (Mumbai) शहर में 1 जून तक 80% लोग कोरोनावायरस (Coronavirus) से संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं. ऐसे में मंबुई में कोरोनावायरस की संभावित तीसरी लहर के चरम पर पहुंचने की संभावना कम ही है. मूलभूत रिसर्च करने वाले देश के नामी गिरामी रिसर्च इस्टीट्यूट टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में ये संभावना जताई है.
संक्रमण के आँकड़ों और अब तक हुए सीरो सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर TIFR की इस एनालिसिस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल 1 जून तक मुंबई में अब तक 80% लोग कोरोना की चपेट में आ कर ठीक हो चुके हैं. इनमें से 90% स्लम और 70% इमारतों से संबंध रखते हैं.
TIFR की स्टडी रिपोर्ट कहती है कि ये लोग हर्ड इम्युनिटी के दायरे में हैं. अगर तीसरी लहर आई तो ये दूसरी लहर से ज्यादा खतरनाक नहीं होगी. रिपोर्ट के मुताबिक, जो लोग पहली वेब में संक्रमित हुए, वे ऐंटिबॉडी के घटते स्तर के कारण फिर से संक्रमित हो सकते हैं, पर ये, वैरिएंट की बदली चाल और वैक्सीन की स्पीड के साथ इसकी एफ़िशिएंसी या प्रभावकारी होने के पैमाने पर निर्भर करता है.
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दूसरी लहर के दौरान मुंबई में एक दिन में सर्वाधिक संक्रमण के मामले 4 अप्रैल को 11,163 तक पहुँचे थे जबकि दिल्ली और बेंगलुरू में ये 28000 और 25000 के आंकड़े से अधिक था. दिल्ली और बेंगलुरु की तुलना में कोरोना की दूसरी लहर का असर मुंबई पर कम देखने को मिला है.
1 करोड़ 30 लाख के क़रीब जनसंख्या वाली मुंबई में 1 फ़रवरी तक 65% लोग वायरस की चपेट में आ चुके थे लेकिन मुंबई जितनी जनसंख्या वाले बंगलुरु में क़रीब 45% तो क़रीब दो करोड़ की जनसंख्या वाली दिल्ली में 55% लोगों को 1 फ़रवरी तक वायरस अपनी चपेट में ले चुका था.
हालाँकि महाराष्ट्र सरकार द्वारा बनायी गयी कोविड टास्क फ़ोर्स इस विश्लेषण से कुछ ख़ास इत्तेफ़ाक़ नहीं रखती. सरकारी कोविड टास्क फ़ोर्स के सदस्य डॉ राहुल पंडित नेकहा, "आज भी मुंबई में 600-700 मामले रिपोर्ट हो रहे हैं, अगर हमारी आबादी में वाक़ई 80% लोगों में एंटीबॉडी मौजूद होती तो इतने मामले नहीं दिखने चाहिए थे. इसका दो निष्कर्ष निकाल सकते हैं, क्या जो ये ऐंटीबॉडी मेज़र की गयी वो neutralizing antibody मेज़र की गयी या टोटल एंटीबॉडी? क्यूँकि ज़्यादा महत्व neutralizing antibody का होता है टोटल का नहीं."
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उन्होंने कहा, "दूसरा निष्कर्ष ये हो सकता है कि शायद जो पॉप्युलेशन स्टडी किया गया हो उसमें ऐंटीबॉडी पायी गयी हो, पर सामान्य वर्ग में शायद इतनी एंटीबॉडी ना हो." बीएमसी के कई कोविड केयर सेंटर में मरीज़ों का इलाज कर रहे डॉ वाघमारे बताते हैं कि Tata Institute of Fundamental Research की सर्वे रिपोर्ट काफ़ी सकारात्मक है और सम्भावित तीसरी लहर कमज़ोर वर्ग को छूएगी, पर शायद असर दूसरी लहर जितना गम्भीर ना हो.
डॉ द्यानेश्वर वाघमारे ने कहा, "टाटा की रिपोर्ट से मैं सहमत हूँ, पहली वेब में मुंबई सबसे ज़्यादा प्रभावित हुई थी दूसरे शहरों की तुलना में. पहली वेव में 40+, 50+ कोमॉर्बड वाले मरीज़ दिखे थे लेकिन दूसरी लहर में 30, 40 की उम्र वाले हैं, तो हो सकता है तीसरी लहर में यंग और बच्चों का इन्वॉल्व्मेंट ज़्यादा हो, पर वो भी मुझे लगता है सिवीयर लेवल का ना हो…"
कुल मिलाकर रिपोर्ट ये कहती है कि यदि दोबारा संक्रमित होने के मामले यानी रिइन्फ़ेक्शन कम हों, कोई नया खतरनाक वैरिएंट न आए और वैक्सीनेशन जुलाई और अगस्त में तेजी से हो, तो शायद सितम्बर तक भी तीसरी लहर ना दिख पाए. पर ये भी सोचना अहम है कि 28,000 मामलों का डेली पीक देख चुकी दिल्ली फ़िलहाल 100 के नीचे मामले देख रही है पर मुंबई अब भी 500-700 मामले रोज़ाना रिपोर्ट कर रही है.
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