तिब्बत में मंगलवार को आए शक्तिशाली भूकंप ने एक झटके में 126 लोगों की जान ले ली. रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 7.1 आंकी गई. बताया जा रहा है कि भूकंप आने के काफी देर बाद भी इसके झटके महसूस किए जाते रहे. तिब्बत क्षेत्र में आया ये कोई इस तरह का पहला भूकंप नहीं था. अगर इस क्षेत्र में 2024 में आए कुल भूकंपों की बात करें तो बीते साल भर में यहां 100 के करीब छोटे-बड़े ऐसे झटके महसूस किए गए हैं. तिब्बत में मंगलवार को आए भूकंप ने ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन के सबसे बड़े बांध को लेकर भी एक तरह से रेड अलर्ट जारी कर दिया है. चीन जिस इलाके में इस बांध को बनाने की तैयारी कर रहा है वो भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील बताया जाता है. हिमालय के इस पहाड़ी क्षेत्र में लगातार भूकंप आते रहे हैं. अब ऐसे में ये एक बड़ा सवाल है कि आखिर तिब्बत के नीचे ऐसा क्या है जिससे यहां इतनी अधिक संख्या में भूकंप आ रहे हैं.
हिमालय के इस रेंज में ही क्यों आते हैं इतने भूकंप
अगर बात हिमालय रेंज की करें तो बीते कुछ वर्षें में यहां आम तौर पर विश्व के दूसरे क्षेत्रों की तुलना में यहां ज्यादा भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं. भूवैज्ञानिक इसके पीछे की वजह प्लेट टेक्टॉनिक मूवमेंट को बताते हैं. उनका कहना है कि हिमालय के ठीक नीचे इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लवे एशियाई प्लेट से टकराते हैं. इस टक्कर के बाद ही हिमालय से लगने वाले तराई और पहाड़ी क्षेत्रों में भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं.भारत समेत नेपाल और तिब्बत जैसे देश इसी एशियाई प्लेट पर बसे हुए हैं. जब कभी भी ये प्लेट्स अंदर आपस में टकराती हैं तो इसके असर से धरती पर भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं. कहा जाता है कि ये प्लेट्स हर साल 4 से 5 मिलीमीट खिसक रही हैं. आपको बता दें कि भूकंप का केंद्र उस जगह से ठीक ऊपर होता है जहां पर दोनों प्लेट्स आपस में टकराई हैं.
चीन की जिद कहीं पड़ ना जाए भारी
चीन जिस इलाके में बांध के निर्माण करना चाहता है वो इलाका धरातल के नीचे बनी टैक्टोनिक प्लेट्स के ठीक ऊपर हैं. ऐसे में यहां पर बांध के निर्माण के दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इस पूरे क्षेत्र को भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील बताया जाता है. तिब्बती पठार के टेक्टोनिक प्लेटों के ऊपर बसे होने की वजह से वहां अक्सर भूकंप आते रहते हैं. ब्रह्मपुत्र नदी पूरे तिब्बती पठार से होकर बहती है. यह भारत में प्रवेश करने से पहले 25 हजार 154 फीट की असाधारण ऊर्ध्वाधर गिरावट के साथ दुनिया की सबसे गहरी घाटी बनाती है. जहां यह बांध बनाया जाना है, वह मेनलैंड चीन के इलाके में हैं, जहां सबसे अधिक बारिश होती है. इससे ब्रह्मपुत्र पानी का पर्याप्त बहाव सुनिश्चित होता है.हालांकि बुधवार को जारी एक आधिकारिक बयान में इस बांध के निर्माण से पैदा होने वाली पर्यावरणीय चिंताओं का समाधान करने की कोशिश की गई थी.बयान के मुताबिक इस परियोजना में सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर ध्यान दिया गया है.
भारत और बांग्लादेश की चिंताएं क्या हैं
चीन ने इस बांध का निर्माण हिमालय के जिस इलाके में करने की घोषणा की है, वहां ब्रह्मपुत्र नदी अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करने से पहले एक तीव्र यू-टर्न लेती है.ऐसे में वहां पानी के प्रवाह को किसी तरह से मोड़ने का परिणाम प्रतिकूल हो सकता है, खासकर ऐसे मौसम में जब बरसात नहीं होती है.वैसे मौसम में भारत और बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र के इलाके में सूखे का सामना करना पड़ सकता है. इस परियोजना की घोषणा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उस समय की थी, जब 2021 में वो तिब्बत स्वायत्तशासी इलाके की यात्रा पर गए थे. यह परियोजना की चीन की 14वीं पंचवर्षीय परियोजना का हिस्सा है.
ब्रह्मपुत्र पर बन रहे बांध का भारत पर कैसा असर?
भारत ने इस बांध के निर्माण पर चिंता जताई है, क्योंकि यह न केवल चीन को ब्रह्मपुत्र नदी में पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने का अधिकार देता है, बल्कि इसके विशाल आकार और पैमाने के कारण इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की भी आशंका है. अगर इस बांध से चीन पानी छोड़ दे तो अरुणाचल प्रदेश का यिंगकियोंग कस्बा पूरी तरह पानी में समा सकता है. यिंगकियोंग अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगोंग अपांग का चुनाव क्षेत्र है. युद्ध जैसे हालात में इस बांध से बड़ी मात्रा में पानी छोड़ कर सीमावर्ती इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा किए जा सकते हैं या पानी को रोक कर सूखा भी पैदा किया जा सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस परियोजना से ब्रह्मपुत्र पर बहुत अधिक प्रवाह नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे उसके पानी के प्रवाह पर असर पड़ सकता है.
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