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"अफरातफरी मच जाएगी...", चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति रोकने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

अदालत ने यह भी कहा कि नवनियुक्त चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू के खिलाफ कोई आरोप नहीं हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया और चुनाव आयुक्तों की प्रक्रिया में अंतर है.

चुनाव से कुछ हफ़्ते पहले एक महत्वपूर्ण आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के कानून पर रोक लगाने का आदेश देने से इनकार कर दिया है. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि इस स्तर पर ऐसा करना "अराजकता पैदा करना" होगा. टिप्पणी करते समय, अदालत ने यह भी कहा कि नव नियुक्त चुनाव आयुक्तों, ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू के खिलाफ कोई आरोप नहीं हैं, जिन्हें नए कानून के तहत चयन पैनल में बदलाव के बाद चुना गया था.

जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा, ''आप यह नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग कार्यपालिका के अधीन है.'' याचिकाकर्ताओं की ओर इशारा करते हुए कि यह नहीं माना जा सकता कि केंद्र द्वारा बनाया गया कानून गलत है, पीठ ने कहा, "जिन लोगों को नियुक्त किया गया है उनके ख़िलाफ़ कोई आरोप नहीं हैं... चुनाव नजदीक हैं, सुविधा का संतुलन बहुत महत्वपूर्ण है."

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023, पिछले साल संसद द्वारा पारित किया गया था और बाद में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी. नए कानून में चुनाव आयुक्तों को चुनने के लिए एक समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया. समिति में अब प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता हैं. 

याचिका कर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने नियुक्ति प्रक्रिया में खामियओं ओर संकेत करते हुए कहा कि 14 फरवरी की रिटायर हुए एक निर्वाचन आयुक्त की रिक्ति नौ मार्च को दिखाई, उसी दिन दूसरी रिक्ति भी दिखाई. प्रशांत भूषण ने कहा कि अगले दिन अदालत द्वारा पारित किसी भी आदेश को रद्द करने के लिए 14 मार्च को दो चुनाव आयुक्तों को जल्दबाजी में नियुक्त किया गया, जब मामलों को अंतरिम राहत पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था. चयन समिति ने शुरू में 200 से अधिक नाम दिए और फिर उसी दिन शॉर्टलिस्ट कर लिया। मालूम था कोर्ट 15  तारीख को सुनवाई करने वाला है.

इस मामले की सुनवाई में जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि ये अदालत ये नहीं कह सकती कि किस तरह का कानून पास किया जाए.  ऐसा नहीं है कि इससे पहले चुनाव नहीं हुए, इन फैक्ट अच्छे चुनाव हुए हैं. चुनाव आयोग पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह एक प्रक्रियात्मक प्रक्रिया प्रतीत होती है. जस्टिस खन्ना ने कहा कि आप देख रहे हैं कि हमने पहले निषेधाज्ञा क्यों नहीं दी? इस अदालत की शुरुआत से लेकर फैसले तक, राष्ट्रपति नियुक्तियां कर रहे थे... प्रक्रिया काम कर रही थी. आपकी बात में प्वाईंट है,  जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया और चुनाव आयुक्तों की प्रक्रिया में अंतर है.

जस्टिस खन्ना ने साथ ही कहा कि  अब उनकी नियुक्ति हो चुकी है और चुनाव नजदीक हैं. यह सुविधा के संतुलन का सवाल है. नियुक्त किये गये व्यक्तियों के विरूद्ध कोई आरोप नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में ये नहीं कहा गया था कि समिति में न्यायिक सदस्य होगा. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि आप ये नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग कार्यपालिका के कब्जे में है. इस चरण में हम कानून पर रोक नहीं लगा सकते, हम कानून की वैधानिकता का परीक्षण तो करेंगे. अगर अभी दखल देंगे तो ये कियोस करेगा.

कोर्ट ने पूछा कि आयुक्त को नियुक्ति करने वाली मौजूदा समिति(पीएम, कैबिनेट मंत्री और नेता विपक्ष) से क्या समस्या है..अगर सुप्रीम कोर्ट के पुराने आदेश को इससे ना जोड़ा जाए. प्रशांत भूषण ने कहा कि समस्या यही कि नियुक्ति निष्पक्ष तरीके से नहीं हो सकती है. कोर्ट ने कहा कि अब उनकी नियुक्ति हो चुकी है, चुनाव नजदीक हैं...यहां सवाल संतुलन का है.. नियुक्त किये गये चुनाव आयुक्त के विरूद्ध कोई आरोप नहीं है. इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि सवाल प्रक्रिया पर है.

प्रशांत भूषण ने कहा कि हम ये नहीं मांग कर रहे कि चुनाव टाल दिए जाएं..बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक नई नियुक्ति होने तक उन्हें काम करने दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप ये नहीं कह सकते है कि चुनाव आयोग सरकार के प्रभाव या नियंत्रण में है. ये नहीं कह सकते कि सब नियुक्तियां गलत हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा जिन चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की गई है, अब उनका काम है चुनाव पारदर्शी तरीके से हो. केंद्र की ओर से SG तुषार मेहता ने कहा कि संविधान पीठ का फैसला कहता है कि जब तक संसद कानून नहीं बनाती तब तक उसके निर्देश लागू होंगे.

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