मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने ‘‘बेहिसाब'' चंदे की जांच के लिए एक तंत्र बनाये जाने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि चंदा देने वालों की गोपनीयता को संरक्षण मिले और उन्हें परेशान न किया जाए.
लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा करने के लिए आयोजित संवाददाता सम्मेलन के दौरान चुनावी बॉण्ड पर एक सवाल का जवाब देते हुए कुमार ने कहा, ‘‘जहां तक चुनावी बॉण्ड का सवाल है, आयोग हमेशा पारदर्शिता के पक्ष में रहा है.''
उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र में चीजों को छुपाने की कोई गुंजाइश नहीं है, इनकी जानकारी होनी चाहिए, हम सब पारदर्शिता के पक्षधर हैं. यह कवायद का पहला भाग है..., देश को अब एक संस्थागत प्रणाली के माध्यम से समाधान ढूंढना होगा जहां चंदा देने वालों की गोपनीयता पर भी विचार किया जाए.''
उच्चतम न्यायालय ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले में राजनीति के वित्तपोषण के लिए लाई गई चुनावी बॉण्ड योजना को ‘असंवैधानिक' करार देते हुए निरस्त कर दिया था तथा चंदा देने वालों, बॉण्ड के मूल्यों और उनके प्राप्तकर्ताओं की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था.
राजीव कुमार ने कहा, ‘‘चुनावों में जिस बिना हिसाब वाले धन इस्तेमाल किया जाता है...चुनावों के दौरान हम इस पर काबू पाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन हम बेहिसाबी चंदे को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं, इस पर पूरे देश को मिलकर काम करने की जरूरत है.''
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि एक ‘‘बेहतर'' प्रणाली विकसित होगी. उन्होंने कहा, ‘‘डिजिटल युग में... यह बहुत कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था होनी चाहिए... इसलिए किसी को इसके बारे में सोचना होगा और मुझे यकीन है कि एक बेहतर प्रणाली विकसित होगी.''
उन्होंने कहा, ‘‘इसके अलावा हर चुनाव के बाद उन्हें हमें यह हिसाब देना होता है कि उन्होंने विशेष कार्यवाही के दौरान क्या खर्च किया है...हम इसे आयोग की वेबसाइट पर भी प्रकाशित करते हैं ताकि सभी को पता चल सके कि क्या हो रहा है.''
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में 12 मार्च को निर्वाचन आयोग को उन संगठनों का विवरण सौंपा, था जिन्होंने अब समाप्त हो चुके चुनावी बॉण्ड खरीदे थे और राजनीतिक दलों ने उन्हें प्राप्त किया था.
आदेश के मुताबिक, निर्वाचन आयोग को 15 मार्च शाम पांच बजे तक बैंक द्वारा साझा की गई जानकारी अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने के लिए कहा गया था.
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