राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में कुछ विद्वानों और लेखकों द्वारा हाल ही में सम्मान लौटाए जाने के चलन को सोमवार को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इस तरह के पुरस्कारों को संजोकर रखा जाना चाहिए तथा सम्मान पाने वालों को उसकी अहमियत बनाए रखनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि तर्कों पर भावनाओं को हावी नहीं होने देना चाहिए।
व्यथित करने वाली घटनाओं पर हो संतुलित अभिव्यक्ति
मुखर्जी ने कहा कि समाज में घटने वाली कुछ घटनाओं से संवेदनशील लोग व्यथित हो जाते हैं, लेकिन इस तरह के घटनाक्रम पर चिंता की संतुलित अभिव्यक्ति होनी चाहिए। राष्ट्रपति ने यहां पत्रकारों और प्रेस फोटोग्राफरों को भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करते हुए कहा, ‘इस तरह के प्रतिष्ठित सम्मान प्रतिभा, योग्यता तथा व्यवसाय में शिष्टजनों और नेताओं के कड़े परिश्रम की सार्वजनिक स्वीकृति होते हैं। ऐसे पुरस्कारों को संजोकर रखना चाहिए और पाने वालों को इन्हें अहमियत देनी चाहिए।’
असहमति पर बहस और विचार हो
जाहिर तौर पर पिछले कुछ दिनों में कुछ लेखकों, इतिहासकारों और अन्य विद्वानों द्वारा देश में बढ़ती असहिष्णुता के नाम पर पुरस्कार लौटाए जाने के मामलों का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘समाज में कुछ घटनाओं से कई बार संवेदनशील लोग व्यथित हो जाते हैं। लेकिन इस प्रकार की घटनाओं पर चिंता का इजहार संतुलित होना चाहिए। तर्कों पर भावनाएं हावी नहीं होनी चाहिए और असहमति की अभिव्यक्ति बहस और विचार विमर्श के जरिए होनी चाहिए।’‘‘विचार की अभिव्यक्ति के माध्यम के तौर पर कार्टून और रेखाचित्र का प्रभाव’’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, ‘गौरवान्वित भारतीय के तौर पर हमें हमारे संविधान में अंकित भारत के विचार और मूल्यों तथा सिद्धांतों में भरोसा होना चाहिए। जब भी ऐसी कोई जरूरत पड़ी है, भारत हमेशा खुद को सही करने में सक्षम रहा है।’
आरके लक्ष्मण और राजेन्द्र पुरी को श्रद्धांजलि
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर पीसीआई द्वारा आयोजित समारोह में राष्ट्रपति ने प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों आरके लक्ष्मण और राजेन्द्र पुरी को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का भी जिक्र किया और कहा कि वह बार-बार कार्टूनिस्ट वी शंकर से उनकी रचनाओं में उन्हें भी बख्शने को नहीं कहते थे। मुखर्जी ने कहा, ‘यह खुली सोच और वास्तविक आलोचना की सराहना हमारे महान राष्ट्र की प्रिय परंपराओं में से एक हैं जिन्हें हमें हर हाल में संरक्षित रखना चाहिए और मजबूत करना चाहिए।’ राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत में प्रेस की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है जिसे संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित किया गया है।
उन्होंने कहा कि एक लोकतंत्र में समय-समय पर विभिन्न चुनौतियां उभरती हैं और उनका समाधान सामूहिक रूप से किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून की मूल भावना एक जीवंत वास्तविकता बनी रहे।’ समारोह को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि देश में समाचार-पत्रों और एजेंसियों के विकास की जड़ें हमारे स्वतंत्रता संग्राम में रही हैं।
समारोह में केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ तथा पीसीआई के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सीके प्रसाद भी मौजूद थे। राठौर ने अपने भाषण में कहा कि कुछ मौकों को छोड़ दें तो भारत में प्रेस स्वतंत्र रहा है। उन्होंने जाहिर तौर पर आपातकाल के समय का परोक्ष जिक्र करते हुए कहा कि उन कुछ मौकों के बारे में आप सभी जानते ही हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग ‘पेड न्यूज’ और ‘शारीरिक नुकसान’ के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जो या तो प्रेस का मुंह बंद करना चाहते हैं या प्रेस को अपना प्रवक्ता बनाना चाहते हैं। राठौर ने सरकार को प्रेस की आजादी का पक्षधर बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भाषण का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था कि मीडिया की वजह से सरकार इस बात का सारतत्व समझ सकती है कि जनता पांच साल के बजाय पांच मिनट में क्या चाहती है।
व्यथित करने वाली घटनाओं पर हो संतुलित अभिव्यक्ति
मुखर्जी ने कहा कि समाज में घटने वाली कुछ घटनाओं से संवेदनशील लोग व्यथित हो जाते हैं, लेकिन इस तरह के घटनाक्रम पर चिंता की संतुलित अभिव्यक्ति होनी चाहिए। राष्ट्रपति ने यहां पत्रकारों और प्रेस फोटोग्राफरों को भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करते हुए कहा, ‘इस तरह के प्रतिष्ठित सम्मान प्रतिभा, योग्यता तथा व्यवसाय में शिष्टजनों और नेताओं के कड़े परिश्रम की सार्वजनिक स्वीकृति होते हैं। ऐसे पुरस्कारों को संजोकर रखना चाहिए और पाने वालों को इन्हें अहमियत देनी चाहिए।’
असहमति पर बहस और विचार हो
जाहिर तौर पर पिछले कुछ दिनों में कुछ लेखकों, इतिहासकारों और अन्य विद्वानों द्वारा देश में बढ़ती असहिष्णुता के नाम पर पुरस्कार लौटाए जाने के मामलों का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘समाज में कुछ घटनाओं से कई बार संवेदनशील लोग व्यथित हो जाते हैं। लेकिन इस प्रकार की घटनाओं पर चिंता का इजहार संतुलित होना चाहिए। तर्कों पर भावनाएं हावी नहीं होनी चाहिए और असहमति की अभिव्यक्ति बहस और विचार विमर्श के जरिए होनी चाहिए।’‘‘विचार की अभिव्यक्ति के माध्यम के तौर पर कार्टून और रेखाचित्र का प्रभाव’’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, ‘गौरवान्वित भारतीय के तौर पर हमें हमारे संविधान में अंकित भारत के विचार और मूल्यों तथा सिद्धांतों में भरोसा होना चाहिए। जब भी ऐसी कोई जरूरत पड़ी है, भारत हमेशा खुद को सही करने में सक्षम रहा है।’
आरके लक्ष्मण और राजेन्द्र पुरी को श्रद्धांजलि
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर पीसीआई द्वारा आयोजित समारोह में राष्ट्रपति ने प्रसिद्ध कार्टूनिस्टों आरके लक्ष्मण और राजेन्द्र पुरी को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का भी जिक्र किया और कहा कि वह बार-बार कार्टूनिस्ट वी शंकर से उनकी रचनाओं में उन्हें भी बख्शने को नहीं कहते थे। मुखर्जी ने कहा, ‘यह खुली सोच और वास्तविक आलोचना की सराहना हमारे महान राष्ट्र की प्रिय परंपराओं में से एक हैं जिन्हें हमें हर हाल में संरक्षित रखना चाहिए और मजबूत करना चाहिए।’ राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत में प्रेस की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी का हिस्सा है जिसे संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित किया गया है।
उन्होंने कहा कि एक लोकतंत्र में समय-समय पर विभिन्न चुनौतियां उभरती हैं और उनका समाधान सामूहिक रूप से किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून की मूल भावना एक जीवंत वास्तविकता बनी रहे।’ समारोह को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा कि देश में समाचार-पत्रों और एजेंसियों के विकास की जड़ें हमारे स्वतंत्रता संग्राम में रही हैं।
समारोह में केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ तथा पीसीआई के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सीके प्रसाद भी मौजूद थे। राठौर ने अपने भाषण में कहा कि कुछ मौकों को छोड़ दें तो भारत में प्रेस स्वतंत्र रहा है। उन्होंने जाहिर तौर पर आपातकाल के समय का परोक्ष जिक्र करते हुए कहा कि उन कुछ मौकों के बारे में आप सभी जानते ही हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग ‘पेड न्यूज’ और ‘शारीरिक नुकसान’ के तरीकों का इस्तेमाल करते हैं जो या तो प्रेस का मुंह बंद करना चाहते हैं या प्रेस को अपना प्रवक्ता बनाना चाहते हैं। राठौर ने सरकार को प्रेस की आजादी का पक्षधर बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भाषण का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था कि मीडिया की वजह से सरकार इस बात का सारतत्व समझ सकती है कि जनता पांच साल के बजाय पांच मिनट में क्या चाहती है।
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