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थलपति विजय ने कर दी बड़ी गलती या इसी से बदलेगी तमिलनाडु की किस्मत, समझिए

विजय ईसाई समुदाय से हैं. हालांकि उनकी अपील जाति और धर्म के दायरे से परे है, उनके पास अल्पसंख्यक, दलित और युवा प्रशंसकों की एक बड़ी संख्या है.

थलपति विजय ने कर दी बड़ी गलती या इसी से बदलेगी तमिलनाडु की किस्मत, समझिए
  • थलपति विजय तमिलनाडु में एमजीआर की तरह राजनीति में बड़ा मुकाम हासिल करना चाहते हैं.
  • डीएमके और एआईएडीएमके तमिलनाडु में लंबे समय से गठबंधन के माध्यम से चुनावी सफलता प्राप्त करते रहे हैं.
  • विजय की जनता में व्यापक अपील है, खासकर अल्पसंख्यक और युवा वर्ग में, जिससे डीएमके को संभावित नुकसान हो सकता है.
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थलपति विजय तमिल के साथ-साथ हिंदी भाषियों के भी सुपरस्टार हैं. उनकी फिल्मों को सभी पसंद करते हैं. मगर अब वो नया मुकाम पाना चाहते हैं. एमजीआर की तरह तमिल राजनीति पर छा जाना चाहते हैं. मदुरै में कल (बृहस्पतिवार) बड़ी रैली कर उन्होंने ये ऐलान भी कर दिया कि वो न तो सत्ताधारी डीएमके से गठबंधन करेंगे और न ही बीजेपी से. साफ है कि एआईडीएमके को वो गिनती में भी नहीं ले रहे. मगर क्या सच में ऐसा है? क्या बगैर किसी दल से गठबंधन किए विजय तमिलनाडु में सत्ता में आ पाएंगे?  

तमिलनाडु में गठबंधन हावी

इसका जवाब जानने से पहले ये जान लीजिए कि सत्ताधारी डीएमके पहले से ही डीएमडीके (देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कड़गम) जैसी पार्टियों को अपने 10 से ज़्यादा चुनावी दलों के पहले से ही भरे-पूरे और परखे हुए गठबंधन में शामिल करने की कोशिश कर रही है. एआईएडीएमके-बीजेपी गठबंधन भी अपना दायरा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. 1996 के अपने सबसे बुरे चुनाव में भी, एआईएडीएमके को लगभग 27 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन उसे केवल 4 सीटें मिलीं. 2011 के अपने सबसे बुरे विधानसभा चुनाव में, डीएमके गठबंधन ने लगभग 39 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया, लेकिन 234 सीटों में से केवल 31 सीटें ही हासिल कर पाया. उस चुनाव के बाद डीएमके ने विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी खो दिया था.

वोट शेयर जीत की गारंटी नहीं

इसका मतलब है कि तमिलनाडु में 30 प्रतिशत वोट शेयर के साथ भी, सीटें जीतना कोई गारंटी नहीं है. यही कारण है कि DMK और AIADMK - यहां तक कि MGR, करुणानिधि और जयललिता के शासनकाल में भी - हमेशा अलग-अलग क्षेत्रों में गणित बिठाने और सीटें जीतने के लिए गठबंधन बनाते रहे. अपने सबसे बुरे दौर में भी, AIADMK और DMK ने कई दशकों तक अपने मूल और समर्पित पार्टी वोटों को अपने साथ बनाए रखा है. उनके चुनाव चिन्ह घर-घर तक आसानी से पहचान लिए जाते हैं.

थलपति विजय की मुश्किलें

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  1. ऐसे में विजय अकेले कैसे राज्य में सत्ता परिवर्तन की सोच रहे हैं. वह खेल बदल सकते हैं, लेकिन तभी जब वह अपनी स्टार पावर को वोटों में बदल सकें. उनके फ़िल्मी डायलॉग, जैसे "मैं सभी 234 सीटों पर उम्मीदवार हूं," उनके विशाल प्रशंसक वर्ग को जगा सकते हैं, लेकिन प्रशंसकों को वोटों में बदलने और ज़मीनी स्तर पर चुनावी प्रबंधन करने के लिए उन्हें सभी 234 सीटों पर मज़बूत उम्मीदवारों की ज़रूरत है.
  2. दरअसल, तमिलनाडु जैसे चतुर राज्य में, एमजीआर या जयललिता ने भी खुद को हर जगह उम्मीदवार घोषित नहीं किया. हालांकि तब वो भी बहुत लोकप्रिय हुआ करते थे और उनका चेहरा ही उनकी पार्टी में सबसे ज़्यादा मायने रखता था. ठीक वैसे ही जैसे आज प्रधानमंत्री मोदी का बीजेपी के लिए या एक जमाने में इंदिरा गांधी का कांग्रेस के लिए. फिर भी उम्मीदवार और पार्टी का संगठन चुनाव में निर्णायक कारक होते हैं.
  3. हालांकि, विजय के बार-बार एमजीआर का ज़िक्र करने और इसे टीवीके बनाम डीएमके का मुक़ाबला बताना AIADMK के लिए चिंता का विषय होना चाहिए. जे जयललिता के निधन के बाद से पार्टी ने कोई चुनाव नहीं जीता है. वह 2019, 2021 और 2024 में हारी है. एडप्पादी पलानीस्वामी में निश्चित रूप से जयललिता या एमजीआर जैसा करिश्मा नहीं है. हालांकि, ईपीएस का एक जातीय आधार और एक पार्टी संरचना ज़रूर है. सबसे महत्वपूर्ण है एमजीआर का दो पत्ती वाला चुनाव चिन्ह. विजय AIADMK को नुकसान पहुंचाएंगे, लेकिन कितना, यही ईपीएस का भविष्य तय करेगा.
  4. विजय ईसाई समुदाय से हैं. हालांकि उनकी अपील जाति और धर्म के दायरे से परे है, उनके पास अल्पसंख्यक, दलित और युवा प्रशंसकों की एक बड़ी संख्या है. अगर यह वोटों में तब्दील होता है, तो इससे डीएमके को गहरा नुकसान हो सकता है. आखिरकार, शेर विजय ने दहाड़ दी है, और यह ज़ोरदार और शक्तिशाली दहाड़ है. उनके राजनीतिक विरोधी सतर्क हैं, लेकिन द्रविड़ राजनीतिक वास्तविकताओं को झकझोरने से पहले उन्हें अभी भी लंबा सफर तय करना है, उम्मीदवार खड़े करने हैं और एक पार्टी बनानी है.

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