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क्या भारत के लिए जरूरी हैं 3 बच्चे? भागवत की चेतावनी पर क्या कहती है एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट, जानिए

टीएफआर या कुल प्रजनन दर को जनसांख्यिकीय सूचक (Demographic Indicators) का माना जाता है. इसमें होने वाले परिवर्तन का जनसंख्या पर सीधा असर होता है.

क्या भारत के लिए जरूरी हैं 3 बच्चे? भागवत की चेतावनी पर क्या कहती है एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट, जानिए
नई दिल्ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने रविवार को भारत की कुल प्रजनन दर यानी टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) पर बड़ी बात कही. उन्होंने भारतीयों से तीन बच्चे पैदा करने की अपील करते हुए कहा है कि देश के फर्टिलिटी रेट को 2.1 के बजाए कम से कम 3 होना चाहिए. संघ प्रमुख ने कहा कि जनसंख्या नीति में भी कहा गया है कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं जानी चाहिए. समाज की कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो यह विलुप्त होने के कगार पर पहुंच सकता है. प्रजनन दर को लेकर मोहन भागवत के बयान के बाद एक नई बहस शुरू हो गई है. सियासी बयानबाजी भी खूब हो रही है. क्या वाकई भारत का 'भविष्य' खतरे में है? साल के शुरुआत में इसको लेकर मशहूर मेडिकल जर्नल लैंसेट की रिपोर्ट भी आ चुकी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी आदर्श प्रजनन दर 2.1 का मानक तय कर चुका है. आखिर क्या है इन रिपोर्ट्स में आइए डीटेल से जानते हैं.. 

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टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) क्या होता है

  • टीएफआर या कुल प्रजनन दर एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय सूचक (Demographic Indicators) है जो किसी देश या क्षेत्र की महिलाओं द्वारा औसतन पैदा किए जाने वाले बच्चों की संख्या को दर्शाता है.  इसे सरल शब्दों में समझें तो, यह बताता है कि एक महिला अपने पूरे प्रजनन काल (आमतौर पर 15 से 49 साल की उम्र) में औसतन कितने बच्चों को जन्म देती है. 

  • उच्च टीएफआर का मतलब है तेजी से बढ़ती जनसंख्या.
  • कम टीएफआर का मतलब है धीमी या स्थिर जनसंख्या वृद्धि.
  • टीएफआर का सीधा संबंध सामाजिक-आर्थिक विकास से होता है.
  • सरकारें टीएफआर को ध्यान में रखकर जनसंख्या नियोजन और विकास संबंधी नीतियां बनाती हैं.
  • अधिक शिक्षित और आर्थिक रूप से सशक्त महिलाओं में आमतौर पर कम टीएफआर होता है.
  • शहरी क्षेत्रों में टीएफआर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कम है

भारत में टीएफआर को लेकर क्या है रिपोर्ट?  

भारत में टीएफआर (कुल प्रजनन दर) को लेकर हाल के वर्षों में कई महत्वपूर्ण रिपोर्ट सामने आई हैं. इन रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत की कुल प्रजनन दर लगातार कम हो रही है.भारत में टीएफआर 1950 के दशक में 6 से अधिक थी, जो अब 2 के आसपास आ गई है. यह एक बड़ी कमी है और यह दर्शाता है कि भारतीय महिलाएं अब औसतन कम बच्चे पैदा कर रही हैं. सरकार की तरफ से 2.1 को प्रतिस्थापन स्तर माना जाता है, जिसका मतलब है कि एक पीढ़ी खुद को प्रतिस्थापित करने के लिए औसतन 2.1 बच्चे पैदा करती है. भारत का टीएफआर अब इस स्तर से काफी नीचे है, जिसका अर्थ है कि भारत की जनसंख्या वृद्धि धीमी हो रही है. 

मोहन भागवत ने क्या कहा? 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या वृद्धि में गिरावट पर चिंता जताते हुए रविवार को कहा कि भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) मौजूदा 2.1 के बजाए कम से कम तीन होनी चाहिए. नागपुर में ‘कठाले कुलसम्मेलन' में उन्होंने परिवारों की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला और आगाह किया कि जनसंख्या विज्ञान के अनुसार, यदि किसी समाज की कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे जाती है, तो यह विलुप्त होने के कगार पर पहुंच सकता है. 

भागवत ने कहा कि इस मुद्दे के कारण कई भाषाएं और संस्कृतियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं. इसलिए, प्रजनन दर को 2.1 से ऊपर बनाए रखना आवश्यक है.

 मोहन भागवत ने कहा कि  कुटुंब (परिवार) समाज का अभिन्न अंग है और हर परिवार की समाज के गठन में अहमियत है. उन्होंने कहा कहा, ‘‘हमारे देश की जनसंख्या नीति, जो 1998 या 2002 के आसपास तैयार की गई थी, कहती है कि जनसंख्या वृद्धि दर 2.1 से नीचे नहीं होनी चाहिए. यह कम से कम तीन होनी चाहिए. (जनसंख्या) विज्ञान ऐसा कहता है.''

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प्रजनन दर (TFR) में गिरावट का क्या हो सकता है असर? 
प्रजनन दर में लगातार हो रही गिरावट का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव हो सकते हैं. कम जनसंख्या वृद्धि से प्रति व्यक्ति आय बढ़ सकती है, क्योंकि सीमित संसाधनों को कम लोगों में बांटना होगा. कम बच्चों के होने से परिवार शिक्षा और स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं. मानव विकास सूचकांक में बढ़ोतरी संभव है.  कम जनसंख्या का मतलब कम संसाधनों का उपयोग होगा, जिससे पर्यावरण पर दबाव कम होगा. 

हालांकि इसके कई नकारात्मक प्रभाव भी हैं जिसकी तरफ मोहन भागवत ने इशारा किया है. कम जन्म दर के कारण बुजुर्गों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे सामाजिक सुरक्षा प्रणाली पर दबाव बढ़ सकता है. कम जन्म दर के कारण भविष्य में कार्यबल में कमी आ सकती है, जिससे उत्पादकता कम हो सकती है. लंबे समय में कार्यबल में कमी आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती है. पारंपरिक परिवार संरचना में बदलाव और सामाजिक मूल्यों में बदलाव हो सकते हैं. किसी विशेष समुदाय के सामने विलुप्त होने का खतरा भी आ सकता है. 

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दुनिया के कई देशों में कम हो रहा है प्रजनन दर? 
ईरान, यूनाइटेड किंगडम, चीन जैसे देशों में भी प्रजनन दर में तेज गिरावट हुई. जापान में सबसे कम प्रजनन दर देखने को मिल रहा है. ताइवान,इटली,स्पेन,सिंगापुर में भी भारी गिरावट हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से भी इसे बढ़ावा दिया गया था. ईरान में प्रजनन दर प्रति महिला 6 से अधिक बच्चों से घटकर प्रति महिला 3 से कम बच्चों तक पहुंचने में केवल 10 साल लगाया. चीन में यह बदलाव 11 साल में आए. भारत में भी साल 2000 के बाद जन्म दर में भारी गिरावट देखने को मिली. अगर इन देशों के आर्थिक विकास को देखेंगे तो जनसंख्या दर में गिरावट के साथ ही भारत और चीन जैसे देश ने तीव्र आर्थिक विकास किया. हालांकि जानकारों का हमेशा से मानना रहा है कि तीव्र गिरावट का असर 2-3 दशक के बाद उत्पादकता पर देखने को मिल सकती है.

टीएफआर को लेकर the lancet की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले सात दशकों में प्रजनन दर घटकर आधी रह गई है. गौरतलब है कि 1950 में वैश्विक स्तर पर कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 4.8 से अधिक थी. वहीं 2021 में यह आंकड़ा घटकर औसतन 2.2 तक पहुंच गया. एक्सपर्ट्स का यह भी अनुमान है कि 2050 तक यह आंकड़ा 1.8 तक पहुंच जाएगा जबकि साल 2100 तक यह आंकड़ा 1.6 तक पहुंच जाएगा.

भारत के पड़ोसी देशों का क्या है हाल? 
पाकिस्तान में प्रजनन दर भारत की तुलना में थोड़ी अधिक है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में यह भी कम हुई है. बांग्लादेश में परिवार नियोजन कार्यक्रमों की सफलता के कारण प्रजनन दर में काफी कमी आई है. चीन में एक बच्चे की नीति के कारण प्रजनन दर काफी कम हो गई थी, लेकिन अब इसे बदलकर दो बच्चों की नीति कर दिया गया है. नेपाल में भी प्रजनन दर में कमी आई है, लेकिन यह अभी भी भारत की तुलना में थोड़ी अधिक है.

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