असम (Assam) में चाय बागान के मालिकों को यह तय करने की स्वतंत्रता होगी कि क्या वे श्रमिकों के लिए मजदूरी बढ़ाने पर राज्य सरकार के आदेश का पालन करना चाहते हैं. गुवाहाटी हाईकोर्ट (Gauhati High Court) ने मंगलवार को एक अंतरिम आदेश में यह बात कही. अगर वे राज्य सरकार के आदेशों का पालन नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई नहीं हो सकती. इस महीने के अंत में शुरू होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी दल BJP और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस (Congress), दोनों के लिए यह मुद्दा महत्वपूर्ण बन गया है.
भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा किए गए वादों के बाद, 23 फरवरी को श्रम कल्याण विभाग ने कहा था कि चाय बागान के श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन 167 रुपये प्रतिदिन से बढ़ाकर 217 रुपये प्रतिदिन किया जाना चाहिए. हाईकोर्ट के जस्टिस माइकल जोथनखुमा ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि अंतरिम आदेश 8 मार्च को पास किया गया और यह अगले आदेश तक जारी रहेगा.
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अदालत के आदेश में कहा गया, 'सभी पक्षों को सुनने के बाद यह न्यायालय का विचार है कि याचिकाकर्ताओं को काम करने वालों को उनके वेतन की किसी भी अंतरिम वृद्धि का भुगतान करने के लिए स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, जिसे वे उचित मानते हैं. यह तब तक किया जाए, जब तक अदालत इस मामले में कोई फैसला नहीं सुनाती है.'
अदालत ने 8 मार्च को भारतीय चाय संघ द्वारा 17 अन्य चाय कंपनियों के साथ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए असम सरकार की एक अधिसूचना पर रोक लगा दी थी.
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बताते चलें कि भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों की नजर चाय बागानों के श्रमिकों के वोटों पर है. राज्य की जनसंख्या के हिसाब से इनकी संख्या करीब 18 फीसदी है. यह 126 विधानसभा सीटों में से करीब 40 सीटों पर फैसले का रुख तय करते हैं.
पहले श्रमिकों को 137 रुपये प्रतिदिन मेहनताना दिया जाता था. साल 2017 में राज्य सरकार ने एडवाइजरी कमेटी की सिफारिश के बाद इसे बढ़ाते हुए 167 रुपये किया था, हालांकि कमेटी ने सलाह दी थी कि मजदूरी को 351 रुपये प्रतिदिन किया जाना चाहिए.
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