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टाटा ट्रस्ट में वर्चस्व की लड़ाई, मेहली मिस्त्री को बोर्ड से हटाने पर घमासान

केंद्र सरकार के चिंता जाहिर करने के बाद भी टाटा ट्रस्ट में वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. इसके कुछ सदस्यों ने बोर्ड में मेहली मिस्त्री को दोबारा कार्यकाल दिए जाने के खिलाफ मतदान किया गया. केंद्र सरकार ने अंदरूनी संघर्ष को अंदरखाने सुलझाने की सलाह दी थी.

टाटा ट्रस्ट में वर्चस्व की लड़ाई, मेहली मिस्त्री को बोर्ड से हटाने पर घमासान
  • नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने टाटा ट्रस्ट बोर्ड में मेहली मिस्त्री के कार्यकाल बढ़ाने के खिलाफ मतदान किया.
  • NDTV Profit सूत्रों के अनुसार हटाए जाने की संभावना देखते हुए मिस्त्री कानूनी विकल्पों पर विचार कर सकते हैं.
  • मिस्त्री पिछले हफ्ते टाटा ट्रस्ट के उस बोर्ड में शामिल थे जिसने श्रीनिवासन की आजीवन ट्रस्टीशिप को मंजूरी दी.
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टाटा सन्स की 66 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले टाटा ट्रस्ट में सत्ता को लेकर संघर्ष चल रहा है. सूत्रों के मुताबिक, नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह ने मेहली मिस्त्री की ट्रस्टीशिप बढ़ाने के खिलाफ मतदान किया है. मिस्त्री पिछले हफ्ते ही टाटा ट्रस्ट के बोर्ड की उस बोर्ड में शामिल थे जिसने श्रीनिवासन की आजीवन ट्रस्टीशिप को मंजूरी दी थी. NDTV Profit के सूत्रों के मुताबिक बोर्ड से हटाए जाने की संभावना को देखते हुए मिस्त्री कानूनी विकल्पों पर विचार कर सकते हैं. पिछले साल मौजूदा ट्रस्टियों को आजीवन सदस्यता देने का प्रस्ताव पारित हुआ था. एनडीटीवी के पास मौजूद उस प्रस्ताव की कॉपी के मुताबिक, "किसी भी ट्रस्टी का कार्यकाल खत्म होने पर उन्हें फिर से नियुक्त किया जाएगा. प्रस्ताव के नियमों के अनुसार नए कार्यकाल की अवधि की कोई सीमा नहीं रहेगी."

हालांकि, न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक ट्रस्टीशिप फिर से देने के लिए "सर्वसम्मति का होना जरूरी है, लेकिन आजीवन ट्रस्टीशिप के लिए सभी सदस्यों का सहमत होना अनिवार्य है."

लिहाजा, मिस्त्री को आजीवन ट्रस्टीशिप पाने के लिए बोर्ड के वर्तमान सदस्यों इसके लिए सहमति देना आवश्यक है.

कंपनी में बीते दो महीने से चल रही ये दरार

ताजा हालात के अनुसार अगर मिस्त्री को हटाने के लिए मतदान हुआ तो उन्हें बाहर कर दिया जाएगा. जानकारों के मुताबिक ऐसी स्थिति में टाटा समूह की स्थिरता को ठेस लग सकती है, जो कि एक बड़ी कॉरपोरेट संस्थान है. इस समूह की शेयर बाजार में लिस्ट कंपनियों के शेयरों की कुल अनुमानित कीमत 25 लाख करोड़ है.

बोर्ड के सदस्यों के बीच इस मतभेद से टाटा सन्स की रणनीतिक फैसलों पर असर पड़ सकता है, जो टाटा समूह की एक प्रमुख होल्डिंग कंपनी है. यह मतभेद 11 सितंबर को तब सामने आया, जब पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को नामित निदेशक के तौर पर फिर नियुक्त किए जाने पर विचार किया गया.

ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा और ट्रस्टी श्रीनिवासन ( टीवीएस समूह के मानद अध्यक्ष) ने उनके कार्यकाल के विस्तार का प्रस्ताव रखा. पर चार अन्य सदस्यों- मिस्त्री, प्रतिम झावेरी, एचसी जहांगीर और डारियस खंबाटा ने उसका विरोध किया, लिहाजा प्रस्ताव खारिज कर दिया गया.  

ये सब तब हुआ जब ऐसी अफवाहें चल रही हैं कि मिस्त्री (और उनका खेमा) रतन टाटा के निधन के बाद पिछले साल अक्टूबर में समूह के चेयरमैन बनाए गए नोएल टाटा को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं.

सरकार ने भी जताई थी चिंता

सूत्रों के अनुसार, मिस्त्री खेमे का दावा है कि उन्हें अहम फैसले लेने से भी अलग कर दिया गया है, उन्होंने कॉर्पोरेट गवर्नेंश में और अधिक पारदर्शिता और सुधार करने की सिफारिश की है.

मिस्त्री के पांच साल का कार्यकाल मंगलवार को खत्म हो रहा है.

श्रीनिवासन को दोबारा ट्रस्टीशिप दिए जाने से पहले बोर्ड ने एन चंद्रशेखरन को फिर टाटा सन्स का चेयरमैन नियुक्त किया. एनडीटीवी प्रॉफिट को मिली जानकारी के मुताबिक वो अब इस पद पर 2032 तक बने रहेंगे.

टाटा समूह में चल रहे सत्ता के संघर्ष और इससे पड़ने वाले असर को लेकर केंद्र सरकार के शीर्ष स्तर पर भी चिंताएं जताई गई हैं. नोएल टाटा और चंद्रशेखरन समेत टाटा समूह के शीर्ष अधिकारियों ने इसी महीने की शुरुआत में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्माला सीतारमण से मुलाकात की थी.

सरकार किसी भी कीमत पर इस बड़े कॉरपोरेट हाउस में विवाद को बढ़ने नहीं देना चाहती, लिहाजा उसने कंपनी के इन उच्च अधिकारियों को इस मतभेद को अंदरखाने निपटाने की सलाह दी.

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