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This Article is From Jan 02, 2024

सिंथेटिक ड्रग्स, डरावना जाल! पारंपरिक ड्रग्स को छोड़ा पीछे, खौफनाक है ड्रग्स का ये बदलता ट्रेंड

ड्रग्स की समस्या अब एक राज्य-प्रांत तक सीमित नहीं रही. इसकी जड़ें देश में फैल चुकी हैं. देश में ड्रग्स के खिलाफ एनडीपीएस जैसा कड़ा कानून भी है और कार्रवाई भी हो रही है, लेकिन एक बड़ी चुनौती ड्रग्स के खिलाफ जनजागृति और नशा मुक्ति की है.

मुंबई: देश के युवा तेजी से ड्रग्स के मकड़जाल में फंसते जा रहे हैं. नशा करने से पहले शख्स खुद बर्बाद होता है, फिर परिवार , समाज और अंत में देश. यही वजह है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे देश की बड़ी समस्या बता चुके हैं और गृहमंत्री अमित शाह ने तो नशा मुक्त समाज के लिए सभी राज्यों को ड्रग्स के खिलाफ मुहिम चलाने का आदेश दिया है. बड़े पैमाने पर कार्रवाई और धरपकड़ भी शुरू हुई है, लेकिन इसके बावजूद ना तो ड्रग्स की डिमांड कम हो रही है और ना ही सप्लाई. ड्रग्स का बदलता ट्रेंड तो और भी खतरनाक है, जो अमीर-गरीब, छोटे-बड़े सभी को अपने आगोश में ले रहा है.

नए साल के ठीक एक दिन पहले 30 दिसंबर की रात ठाणे क्राइम ब्रांच ने कासरवडवली के मैंग्रोव की झाड़ियों में रेव पार्टी पर छापा मारा, तो वहां 90 युवक और 5 युवतियां नशे में डूबे मिले. पुलिस को मौके से चरस, एलएसडी, एस्कटसी पिल्स और गांजा जैसे ड्रग्स भी मिले. युवकों में ज्यादातर कॉलेज छात्र और कॉरपोरेट में काम करने वाले युवा थे.

मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस द्वारा साल 2019 के सर्वे के मुताबिक देश में करीब दस करोड़ लोग नशे के आदी हैं. एक अन्य सर्वे में तो पंजाब का हर सातवां शख़्स नशे में डूबा है, इसलिए नशे का दूसरा नाम ‘उड़ता पंजाब' कहलाया, लेकिन अब जब महाराष्ट्र में ड्रग्स की फ़ैक्ट्रियां पकड़ी जाने लगी हैं तो सबसे अमीर राज्य पर भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या महाराष्ट्र भी ड्रग्स का हब बन चुका है?

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि ड्रग्स की समस्या मूल रूप से पूरे देश में है और ये धीरे-धीरे बढ़ रही है. इसके मद्देनजर देश के गृहमंत्री अमित शाह ने सभी राज्यों के गृह मंत्रियों की और DG 's की एक कांफ्रेंस ली थी और उस कांफ्रेंस में तय हुआ कि हम लोग जीरो टॉलरेंस पॉलिसी से ड्रग्स के ऊपर क्रैक डाउन करेंगे और उसके चलते महाराष्ट्र में हमने बहुत जोरों से कार्रवाई शुरू की है.

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महाराष्ट्र में 53 हजार करोड़ की ड्रग्स की गई जब्त
देवेंद्र फडणवीस के मुताबिक मुंबई में विशेष रूप से स्कूल और कॉलेज के आसपास दो हजार ऐसे पान टपरियां या छोटे दुकान जहां ये संदेह था कि वहां से ड्रग्स की सप्लाई होती है, लोग वहां से ड्रग्स खरीदते हैं उसे तोड़ दिया गया है. इतना ही नहीं पिछले 6 से 8 महीने में करीब 23 हजार केस किए गए और 13000 हजार लोगों को पकड़ा भी गया है. साथ ही 53 हजार करोड़ की ड्रग्स जब्त कर नष्ट की गई है.

इसमें कोई शक नहीं कि हाल फिलहाल में महाराष्ट्र और मुंबई में ड्रग्स के खिलाफ बड़ी कार्रवाई हुई है और ड्रग्स बनाने वाली कई फैक्ट्रियां पकड़ी गई हैं. मुंबई पुलिस की साकीनाका पुलिस ने तो नासिक में जाकर नशा बनाने वाली फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया, जहां 300 करोड़ का ड्रग्स ज़ब्त किया गया.

मुंबई पुलिस के संयुक्त पुलिस आयुक्त (कानून व्यवस्था) सत्यनारायण चौधरी के मुताबिक साकीनाका केस की शुरुआत तो दस ग्राम की एमडी ड्रग्स की बरामदगी से शुरू हुई थी. उस केस में अब तक 20 आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं. उसका एक मुख्य आरोपी दूसरे एक केस में पुणे की कस्टडी से भागा था, उसे भी साकीनाका पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

ऐसी ही एक बड़ी कार्रवाई मुंबई की नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने पुणे के जंगल में की, जिसमें दो ऐसी ही फ़ैक्ट्रियों से 50 करोड़ का ड्रग्स बरामद किया गया. एनसीबी मुंबई के जोनल डायरेक्टर के अमित घावटे के मुताबिक एक फैक्ट्री पुणे के अम्बे गांव तहसील में थी और दूसरी शिरूर तहसील में जहां पर लोकली अल्प्राजोलम बनाया जा रहा था और महाराष्ट्र आंध्र में बेचा जा रहा था. दोनों ही सेल्फ सफिसिएंट थी, मतलब उनमें बिजली के लिए जेनसेट लगे थे और एमडी बनाते समय जो दुर्गंध आती है, उसके लिए सोकपिट बनाए गए थे. फैक्ट्री पोल्ट्री के बगल में थी, इसलिए भी आसपास के लोगों को उसकी दुर्गंध का पता नहीं चल रहा था.

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ऐसी ही एक ड्रग्स बनाने की फैक्ट्री सोलापुर में भी मुंबई क्राइम ब्रांच के हाथ लगी, जहां से 100 करोड़ का ड्रग्स ज़ब्त किया गया. डीआरआई ने संभाजी नगर में एक फैक्ट्री रेड कर 250 करोड़ का नशीला पदार्थ पकड़ा है, तो मीरा-भयंदर, वसई, विरार पुलिस ने पालघर के एक फार्म हाउस में छापेमारी कर 38 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा.

खास बात ये है कि ड्रग्स के खिलाफ इन सभी बड़ी कार्रवाईयों में सिंथेटिक ड्रग्स ही बड़ी मात्रा पकड़ी गई हैं, जो नशे की काली दुनिया के तेजी से बदलते ट्रेंड को दर्शाती है, जबकि इसके पहले पारंपरिक ड्रग्स का ही ज्यादा चलन था. जिसमें गांजा, कोकिन, अफीम और हेरोइन शामिल हैं. लेकिन ड्रग्स के बदलते पैटर्न को समझने के लिए पहले ड्रग्स तस्करी के रूट को को समझना होगा.

ड्रग्स तस्करी के रूट :-
भारत में विदेशों से ड्रग्स तस्करी के दो रूट हैं. एक गोल्डन ट्रैंगल- जिसमें म्यांमार, लाओस और थाईलैंड से अफीम भारत आती है. दूसरा गोल्डन क्रिसेंट- जिसमें ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से हेरोइन भारत लायी जाती हैं. जबकि कोकिन साउथ अमेरिका से आती है. 

एनसीबी के जोनल डायरेक्टर अमित घावटे के मुताबिक इंडिया के लेफ्ट और राइट में डेथ क्रिसेंट और डेथ ट्रैंगल हैं और भारत इन दो रीजन के बीच सैंडविच बना हुआ है. ये हमारे डिस्टर्ब पड़ोसी, जिनका पॉलिटिकल सिस्टम बहुत ही कमजोर है, उसका मेजर सोर्स ऑफ इनकम ज्यादा ड्रग्स से है, ज्यादातर हेरोइन और मेथाफेटामाइन से. इन दोनों के बीच में इंडिया है तो इंडिया का हमेशा ही इस्तेमाल ड्रग्स की तस्करी के लिए किया गया है. पहले वहां से ड्रग्स आता था, इंडिया में स्टोर होती थी और अलग देशों में वितरित होती थी, लेकिन अभी भारत में इसका इस्तेमाल भी बढ़ने लगा है.

जानकारों के मुताबिक करीब 70 फीसदी ड्रग्स की तस्करी समुद्र के रास्ते होती है, क्योंकि समुद्र देश का बड़ा ट्रेड रूट है. समुद्री ट्रांसपोर्ट बहुत बड़े पैमाने पर होते हैं. बड़े-बड़े पोर्ट्स हैं, जहां कंटेनर्स कार्गो आते हैं. तस्कर उसमें ड्रग्स छिपाकर लाते हैं. ऐसे काफी केस हो चुके हैं.

इसी तरह ऐसा कोई देश नहीं होगा, जो हवाई मार्ग से मुंबई, दिल्ली या फिर बैंगलुरु और कोलकाता जैसे बड़े शहर कनेक्टेड नही हैं, तो इसका दुरुपयोग भी ह्यूमन कैरियर और लगेज कैरियर में होता है. कोका वनस्पति से बनने वाली कोकीन साउथ अमेरिका से आता है, तो इसी तरह हेरोइन अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आती है.

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विदेश से ही नहीं देश में भी बड़े पैमाने पर ड्रग्स की तस्करी होती है. मुंबई एंटी नारकोटिक्स सेल के डीसीपी प्रकाश जाधव के मुताबिक गांजा जो मुंबई में आता है, वो उड़ीसा, विशाखापत्नम और आंध्र प्रदेश से आता है. वहां गांजे की अवैध खेती की जाती है. चरस में मनाली चरस है. नेपाल और जम्मू कश्मीर से भी आती है. हाल ही में पुलिस ने 15 किलो कश्मीरी चरस मुंबई में पकड़ा है.

ड्रग्स का बदलता ट्रेंड :-
जानकार बताते हैं कि हिंदुस्तान पहले ड्रग्स तस्करी का सिर्फ एक ट्रांजिट प्वाइंट था. लेकिन अब यहां सेवन बहुत बढ़ गया है, तो खपत भी होने लगी है. लेकिन हाल फिलहाल की बड़ी कार्रवाईयों से साफ है कि ड्रग्स का भी ट्रेंड बदला है. पारंपरिक ड्रग्स की जगह अब सिंथेटिक ड्रग्स का चलन बढ़ रहा है, जिसे डिजाइनर ड्रग्स भी कहा जाता है. सिंथेटिक ड्रग्स में मेफेड्रिन, एमडीएमए, अल्प्राजोलम, इफेड्रिन, कोडिन केटामाइन और LSD स्ट्रिप्स मुख्य हैं.

मुंबई एनसीबी के जोनल डॉयरेक्टर अमित घावटे बताते हैं कि सिंथेटिक ड्रग्स की तरफ ये एक मेजर शिफ्ट है और इसमें एक दूसरा पहलू भी है कि लोकली उत्पादन का प्रमाण बहुत बढ़ रहा है. महाराष्ट्र में अब तक इतनी फैक्ट्रियां एक साथ पकड़ी नहीं गई थीं. इसका निष्कर्ष यही निकलता है कि इसकी डिमांड महाराष्ट्र में है, इसलिए इतना उत्पादन हो रहा है और महाराष्ट्र एक मैन्युफैक्चरिंग बेस्ड इंडस्ट्रियल पॉजिटिव सेंस में पहले से ही है, लेकिन उसका दुरुपयोग ड्रग्स के लिए बढ़ रहा है.

मुंबई पुलिस के संयुक्त पुलिस आयुक्त (कानून व्यवस्था) सत्यनारायण चौधरी का कहना है कि इसकी दो तीन बड़ी वजह है एमडी बनाने के लिए एक तो आसानी से उन्हे रॉ मटेरियल मिल जाता है. दूसरे इसके बनाने की प्रोसेस लोग आसानी से अपना लेते हैं, वहीं इसमें प्रॉफिट एंगल भी है. यही कारण है कि उत्पादन तेजी से बढ़ा है और खपत भी. सत्यनारायण चौधरी के मुताबिक इसलिए मुंबई पुलिस की ज्यादातर कार्रवाई एमडी के खिलाफ हो रही है. हाल ही में जो सबसे बड़ी 300 करोड़ की ड्रग्स पकड़ी गई वो भी एमडी ही थी.

करोड़ों-करोड़ के ड्रग्स की बरामदगी बताती है कि लाखों-लाख जिंदगियों की बर्बादी की कहानियां कैसे लिखी जा रही हैं. मुंबई में मानखुर्द के 14 साल के एक बच्चे ने बताया कि उसने बीड़ी और सिगरेट से नशा शुरू किया, लेकिन दोस्तों ने उसे ड्रग्स मिलाकर दे दिया. वो घंटों एक टेंपो में बेहोश पड़ा रहा. उसके पिता ने पहले तो बड़ी मुश्किल से उसे खोजा, फिर जब उन्हें पता लगा कि उसने ड्रग्स लिया था, तो उसे ये कहकर घर से निकाल दिया कि वो उनके लिए मर गए हैं.

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कुर्ला में रहने वाले एक युवक की जिंदगी तो ड्रग्स से इस कदर बर्बाद हुई कि उसकी बीबी और बच्चे दोनों उसे छोड़कर चले गए. युवक के मुताबिक वो पहले एक कंपनी में अफसर था, जहां से उसे 40 हजार वेतन मिलता था, लेकिन नशे की लत की वजह से नौकरी तो गई, अब उसके पास रहने के लिए घर भी नहीं है. भला हो नशा बंदी मंडल का जिसने उसकी नशे की लत छुड़ाई और अब वो नशाबंदी दफ्तर में ही चौकीदार की तरह रहता है.

धारावी के एक शख्स ने बताया कि नशा करते थे तो मारपीट अपने आप हो जाती थी. पुलिस केस में जेल गया तो वहां और लोग मिल गए, जहां नींद नहीं आने पर चरस गांजा पीने लगा. मतलब जो आदमी ड्रग्स के दलदल से निकल सकता था, जेल के भीतर ड्रग्स के दलदल में और ज्यादा फंस गया. अलग-अलग उम्र की ये तीन कहानियां ड्रग्स से बर्बाद हुई, सिर्फ तीन जिंदगियों की नहीं, बल्कि हजारों लाखों की है.

महाराष्ट्र में नशाबंदी मंडल की स्थापना 1958 में संत तुकड़ो जी महाराज ने की थी. तब से मंडल सालाना 800 के करीब लोगों को नशा से मुक्ति दिलाता है, उनमें से 60 के करीब ड्रग्स लेने वाले होते हैं. नशा बंदी मंडल की महासचिव वर्षा विद्या विलास के मुताबिक हाल ही में केंद्र के सोशल जस्टिस डिपार्टमेंट ने एक हॉस्पिटल से सर्वे करवाया और उस सर्वे में महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है. इसमें जो आंकड़े आए हैं 10 साल से लेकर 17 साल की कम उम्र के बच्चे ड्रग्स के आदी हो रहे हैं और उनकी संख्या पूरे भारत में करोड़ों में है.

यही वजह है कि ड्रग्स के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकार दोनों सख्त हुए हैं. इस पर राष्ट्रीय चिंता कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नशे के उड़ते कारोबार को लेकर चिंता व्यक्त की. प्रधानमंत्री ने ड्रग्स को देश की बड़ी समस्या बताते हुए कहा है कि इस समस्या से हमें भारत की युवा शक्ति को बचाना है. इसके लिए सरकारों के साथ-साथ परिवार और समाज की शक्ति को भी अपनी भूमिका का विस्तार करना होगा.

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ड्रग्स और अंडरवर्ल्ड :-
ड्रग्स की बात आते ही अंडरवर्ल्ड और बॉलीवुड की तस्वीर आंखों के सामने घूमने लगती है. फिल्मी सितारों की पार्टियों पर नशे को लेकर उठते सवाल इसकी तरफ इशारा करते हैं और इसमें नीचे से काम करता है अंडरवर्ल्ड. ये गठजोड़ इसलिए काम करता है कि इसमें नशे का सुरूर भी है और काली कमाई का मौका भी. 

ड्रग्स तस्करी में कभी इकबाल मिर्ची एक बड़ा नाम हुआ करता था. उसके बाद पाकिस्तान में बैठे जावेद चिकना का नाम है, लेकिन भारत में ड्रग्स तस्करी वर्तमान में कैलाश राजपूत का नाम सबसे बड़ा बताया जा रहा है. हालांकि जांच एजेंसियों का दावा है कि वर्तमान में नशे के धंधे में अलग - अलग कई ऑर्गनाइज्ड क्राइम सिंडीकेट काम कर रहे हैं, जो बंद बड़ी फार्मास्यूटिकल यूनिट को किराए पर लेकर एमडी के प्रोडक्शन से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक नेटवर्क रखते हैं.

ड्रग्स नेटवर्क की सबसे निचली कड़ी को बेचन कहते हैं, उसके ऊपर ड्रग पैडलर और फिर स्मगलर होते हैं. एनसीबी के मुताबिक ड्रग्स तस्करी एक ऐसा अपराध है जिसे बॉर्डर लेस क्राइम कहते हैं, मतलब देशों की कोई बॉर्डर इस ड्रग ट्रैफिकिंग में देखी नहीं जाती है. इसलिए ऑर्गनाइज क्राइम सिंडीकेट इजी मनी के लिए पाया गया है. एनसीबी ने भी काफी केस किए हैं जिसमें ऑर्गनाइज क्राइम सिंडिकेट का रोल साफ दिख रहा है. क्योंकि इसमें सिर्फ ड्रग ट्रैफिकिंग ना देखकर अगर बड़े लेवल पर देखेंगे तो इसमें मनी लांड्रिंग के सवाल आते हैं. ड्रग्स के धंधे से अलग-अलग प्रॉपर्टी खरीदना, अलग-अलग देशों में पार्क करना ये देखा गया है. 

मुंबई पुलिस एंटी नारकोटिक्स सेल के डीसीपी प्रकाश जाधव ने अब तक  25 सिंडिकेट पकड़ने का दावा किया है, जिनमें कुछ नाईजीरियन भी हैं, कुछ तंजानियन हैं. उनके पास से इस साल हमने 7 करोड़ के करीब ड्रग्स जब्त किया है. इसके अलावा एक नया ट्रेंड ये भी देखा गया है कि जो बॉडी ओफेंडर्स हैं, आईपीसी के अलग-अलग धारा में बॉडी के ऑफेंस करते हैं, वो लोग भी आजकल ड्रग्स में इजी मनी के कारण स्मगलिंग में देखे जा रहे हैं.

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बदलते जमाने के साथ ड्रग्स का ट्रेंड बदला है तो बेचने और वितरण का तरीका भी. संपर्क के लिए सोशल मीडिया और डार्कनेट तो वितरण के लिए ह्यूमन कैरियर की जगह अब कूरियर सर्विस का इस्तेमाल बढ़ गया है. हाल ही में एनसीबी ने ऐसे कुछ कूरियर सर्विस वालों पर कार्रवाई भी की है.

देश में ड्रग्स के खिलाफ एनडीपीएस जैसा कड़ा कानून भी है और कार्रवाई भी हो रही है, लेकिन एक बड़ी चुनौती ड्रग्स के खिलाफ जनजागृति और नशा मुक्ति की है. महाराष्ट्र नशा बंदी मंडल के सचिव अमोल मदामे के मुताबिक मंडल इसके लिए लगातार काम कर रहा है, लेकिन ये भी सच है कि मंडल को मिलने वाली अनुदान राशि आज भी वही है जो 60 साल पहले थी. ऐसे में सवाल है कि नशे के दलदल में धंसे लोगों को मुक्ति मिलेगी कैसे.  हालांकि ये नशाबंदी मंडल का ही कमाल है कि कभी नशे के लत में अपना जीवन बर्बाद कर चुके शख्स आज नशा के खिलाफ जनजागृति अभियान का प्रमुख चेहरा हैं.

लेकिन ड्रग्स की समस्या एक राज्य-प्रांत तक सीमित नहीं रही. इसकी जड़ें देश में फैल चुकी हैं. हमारा भविष्य, नौजवान जाने-अनजाने में अपना जीवन तबाह कर रहा है. नशे की लत से अजब-ग़ज़ब अपराध भी जन्म ले रहे हैं. सप्लायर्स पर नकेल पुलिस-एजेंसियों का काम है, लेकिन शुरुआत घर से करनी होगी, क्योंकि जब तक ‘डिमांड' क़ायम है, सप्लाई का तरीक़ा अपराधी निकाल ही लेते हैं. जरूरत है इसी मकड़जाल को खत्म करने की है.

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