
महाराष्ट्र पुलिस बनाम अर्नब गोस्वामी (Maharashtra Police vs Arnab goswami) मामले में महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra government) की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सोमवार को सुनवाई हुई. महाराष्ट्र सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील शुरू की. सिंघवी ने भारत कार्यक्रम में दिखाई गई चीजों, बोली गई बातों और सवालों की लिखित सामग्री कोर्ट के सामने रखी. कोर्ट के पिछले आदेशों के आधार पर उनकी व्याख्या की. उन्होंने
बताया कि कैसे 'देश पूछता है' के नाम पर लोगों को उकसाया गया कि क्या किसी मौलवी या ईसाई की हत्या पर भी लोग यूं ही खामोश रहेंगे? इन सवालों पर यूट्यूब पर प्रतिक्रिया और लोगों की टिप्पणियों का भी ब्योरा कोर्ट में दिया गया. सिंघवी ने कहा कि हाईकोर्ट पूरी जांच कैसे रोक सकता है? अगर जांच को बहाल किया जाता है तो अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, पूछताछ के लिए पेश होने के लिए 48 घंटे का नोटिस दिया जाएगा. सिंघवी ने जांच के खिलाफ रोक का विरोध करते हुए कहा कि ये संदेश नहीं जाना चाहिए कि कुछ लोग कानून से ऊपर हैं,
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अर्नब की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि जो न्यूज क्लिप दी गई है उसमे कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है. ये नजरिए की बात है, कुछ लोगों को आपत्तिजनक लगता है तो कुछ को नहीं.कोर्ट ने भी इसे आपत्तिजनक नहीं माना. इस पर CJI ने कहा-मिस्टर साल्वे आप मीडिया पर्सन को रिप्रेजेंट कर रहे हैं, लेकिन इसे किनारे कर एक वकील की तरह, अधिकारों और कर्तव्यों के लिहाज से भी बताएं क्या जो आपने किया वो सही था? उन्होंने कहा कि जिस क्लिप की बात हो रही है उसमे कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया गया लेकिन वो राजनीतिक लोगों के प्रति था. हाईकोर्ट ने भी इस पर अपने आदेश में टिप्पणी की है. कोर्ट उसे भी ध्यान में रखे. साल्वे ने कहा, हमें मालूम है कि अपने अधिकारों और दूसरों के अधिकारों के बीच संतुलन कैसे रखा जाता है, लेकिन जो एफआईआर दर्ज की गई वो सही और उचित नहीं थी. उन्होंने कहा कि मुझे दो हफ्ते की मोहलत दें. मैं दो हफ्ते में एक डिटेल हलफनामा दाखिल करूंगा जिसमे मैं सरकार के भेदभाव और अन्य बातों की जानकारी कोर्ट को दूंगा. इस पर सिंघवी ने कहा कि मीडिया के नाम पर मनमाने ढंग से सवाल पूछने के नाम पर लोगों को उकसाने की छूट नहीं दी जा सकती. शीर्ष कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस से अर्नब के खिलाफ दर्ज FIR की सूची तलब की. कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को अर्नब के हलफनामे पर भी जवाब दाखिल करने को कहा है.
दरअसल बॉम्बे हाईकोर्ट ने 30 जून को अंग्रेजी समाचार चैनल ‘रिपब्लिक टीवी' के विवादास्पद एंकर और संस्थापक अर्नब गोस्वामी को राहत देते हुए उनके खिलाफ पालघर लिंचिंग मुद्दे पर कथित सांप्रदायिकता फैलाने के आरोप में और मुंबई के बांद्रा रेलवे में प्रवासी कामगारों के जमा होने को लेकर मुंबई पुलिस (Mumbai Police) द्वारा दर्ज दोनों FIR पर रोक लगा दी थी. जस्टिस उज्जल भुयान और जस्टिस रियाज चागला की खंडपीठ ने कहा कि “अर्नब गोस्वामी के खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मुकदमा नहीं बनता.” पीठ ने आदेश दिया था कि अर्नब के खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. पीठ ने 12 जून को याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रखा था.गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और मिलिंद साठे की ओर से कहा गया कि FIR राजनीति से प्रेरित थी और महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने के परिणाम स्वरूप दर्ज की गई थी.
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गौरतलब है कि, मुंबई पुलिस द्वारा अपने खिलाफ दर्ज की गई नई FIR को रद्द कराने के लिए रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्नब गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था. उन्होंने कोर्ट से अपने परिवार व चैनल के कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करने के साथ पुलिस को कोई नई FIR दर्ज न करने का निर्देश देने का आग्रह किया था.सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई में मामले को ट्रांसफर करते हुए बाकी सारी FIR पर रोक लगा दी थी. अर्नब पर आरोप है कि उन्होंने अपने समाचार चैनल पर दो टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण कथित तौर पर मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए किया था. उन पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया गया था. बता दें कि, रिपब्लिक टीवी के संस्थापक अर्नब अक्सर अपने कार्यक्रमों को लेकर विवादों में रहे हैं.बता दें, पालघर में भीड़ द्वारा साधुओं की पीट-पीटकर हत्या के मामले पर एक समाचार शो में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ कथित अपमानजनक बयान को लेकर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ कई जगहों पर एफआईआर दर्ज कराई गई हैं. अप्रैल 2020 के आखिरी हफ्ते में मुंबई पुलिस, अर्नब से 12 घंटे की पूछताछ भी कर चुकी है.
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