प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
नई दिल्ली:
सरकारी नौकरियों में प्रमोशन के मामले में SC/ST आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को अपना अहम फैसला सुनाया है. सरकारी नौकरियों के लिए प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सरकारी नौकरियों के प्रमोशन में SC/ST को आरक्षण मिलेगा. सरकारी नौकरी में प्रमोशन में SC/ST आरक्षण पर फैसले के लिए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने कहा कि नागराज जजमेंट को सात जजों को रैफर करने की जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लेकिन एक राहत के तौर पर राज्य को वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला मात्रात्मक डेटा एकत्र करना जरूरी नहीं है.
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों की दलील स्वीकारीं और कहा कि अब सरकार सरकारी नौकरी में प्रमोशन में SC/ST आरक्षण दे सकती है. बता दें कि संविधान पीठ को यह तय करना था कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संविधान पीठ के 12 साल पुराने नागराज फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं.
सरकारी नौकरियों में SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों ने अपने फैसले में कहा कि पिछड़ापन मांपने के लिए किसी डेटा की जरूरत नहीं है. पर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक क्षमता मांपने का काम सरकार पर छोड़ा जाना चाहिए. मगर किसी कॉडर में SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए डेटा जरूरी है.
कोर्ट ने कहा कि सरकार को ये दिखाना होगा कि समुदाय को किसी नौकरी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. SC/ST पर भी क्रीमी लेयर का नियम लागू किया जा सकता है ताकि जो लोग इसका लाभ उठाकर पिछडेपन से दूर हो चुके हैं ताकि वो पिछडे़ लोगों के साथ आरक्षण के दायरे से बाहर हो सकें. लेकिन ये संसद का काम है कि वो SC/ST में क्रीमी लेयर को शामिल करे या हटाए. बता दें कि 2006 के नागराज फैसले पर पुनर्विचार के लिए सात जजों के पीठ को भेजने की जरूरत नहीं है.
30 अगस्त को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट की सविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ के समक्ष इस तरह के कोटे के खिलाफ 2006 के नागराज फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी हो गई थी.
'आरक्षण का कानून बिना बहस के ही दोनों सदनों में पारित करना खतरनाक'
केंद्र और राज्य सरकारों ने जहां सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण की वकालत की है तो वहीं याचिकाकर्ताओं ने इसका विरोध किया है. केंद्र ने कहा है कि संविधान में SC/ST को पिछड़ा ही माना गया है. इसलिए वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की जरूरत नहीं है.
SC में केन्द्र सरकार ने कहा, क्रीमी लेयर को प्रमोशन के आरक्षण के लाभ से नहीं किया जा सकता वंचित
गौरतलब है कि अक्टूबर 2006 में नागराज बनाम भारत संघ के मामले में पांच जजों की संविधान बेंच ने इस मुद्दे पर निष्कर्ष निकाला कि राज्य नौकरी में पदोन्नति के मामले में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण करने के लिए बाध्य नहीं है. हालांकि अगर वे अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करना चाहते हैं और इस तरह का प्रावधान करना चाहते हैं तो राज्य को वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला मात्रात्मक डेटा एकत्र करना होगा.
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सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था कि क्या SC/ST में क्रीमी लेयर के नियम लागू होते है .केंद्र सरकार ने कहा कि SC/ST में क्रीमी लेयर को लेकर कोई फैसला नहीं है
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों की दलील स्वीकारीं और कहा कि अब सरकार सरकारी नौकरी में प्रमोशन में SC/ST आरक्षण दे सकती है. बता दें कि संविधान पीठ को यह तय करना था कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संविधान पीठ के 12 साल पुराने नागराज फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं.
सरकारी नौकरियों में SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों ने अपने फैसले में कहा कि पिछड़ापन मांपने के लिए किसी डेटा की जरूरत नहीं है. पर्याप्त प्रतिनिधित्व और प्रशासनिक क्षमता मांपने का काम सरकार पर छोड़ा जाना चाहिए. मगर किसी कॉडर में SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए डेटा जरूरी है.
कोर्ट ने कहा कि सरकार को ये दिखाना होगा कि समुदाय को किसी नौकरी में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. SC/ST पर भी क्रीमी लेयर का नियम लागू किया जा सकता है ताकि जो लोग इसका लाभ उठाकर पिछडेपन से दूर हो चुके हैं ताकि वो पिछडे़ लोगों के साथ आरक्षण के दायरे से बाहर हो सकें. लेकिन ये संसद का काम है कि वो SC/ST में क्रीमी लेयर को शामिल करे या हटाए. बता दें कि 2006 के नागराज फैसले पर पुनर्विचार के लिए सात जजों के पीठ को भेजने की जरूरत नहीं है.
30 अगस्त को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट की सविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ के समक्ष इस तरह के कोटे के खिलाफ 2006 के नागराज फैसले पर पुनर्विचार की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी हो गई थी.
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केंद्र और राज्य सरकारों ने जहां सरकारी नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण की वकालत की है तो वहीं याचिकाकर्ताओं ने इसका विरोध किया है. केंद्र ने कहा है कि संविधान में SC/ST को पिछड़ा ही माना गया है. इसलिए वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला मात्रात्मक डेटा एकत्र करने की जरूरत नहीं है.
SC में केन्द्र सरकार ने कहा, क्रीमी लेयर को प्रमोशन के आरक्षण के लाभ से नहीं किया जा सकता वंचित
गौरतलब है कि अक्टूबर 2006 में नागराज बनाम भारत संघ के मामले में पांच जजों की संविधान बेंच ने इस मुद्दे पर निष्कर्ष निकाला कि राज्य नौकरी में पदोन्नति के मामले में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण करने के लिए बाध्य नहीं है. हालांकि अगर वे अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करना चाहते हैं और इस तरह का प्रावधान करना चाहते हैं तो राज्य को वर्ग के पिछड़ेपन और सार्वजनिक रोजगार में उस वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता दिखाने वाला मात्रात्मक डेटा एकत्र करना होगा.
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सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था कि क्या SC/ST में क्रीमी लेयर के नियम लागू होते है .केंद्र सरकार ने कहा कि SC/ST में क्रीमी लेयर को लेकर कोई फैसला नहीं है
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