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This Article is From Sep 28, 2018

पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज

कोर्ट तय करेगा कि कवि वरवर राव, वरनन गोन्जाल्विस, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को जमानत दी जाए या नहीं

पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज
सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली: भीमा- कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में नक्सल से जुड़े होने के आरोप में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अपना फैसला सुनाएगा.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच तय करेगी कि हैदराबाद में वामपंथी कार्यकर्ता और कवि वरवर राव, मुंबई में कार्यकर्ता वरनन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा, छत्तीसगढ़ में ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और दिल्ली में रहने वाले गौतम नवलखा को जमानत दी जाए या नहीं और मामले की SIT से जांच कराई जाए या नहीं. गत 29 अगस्त को इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए उन्हें उनके घरों में ही हाउस अरेस्ट रखने के आदेश जारी किए थे. तभी से वे अपने घरों में नजरबंद हैं.

याचिका रोमिला थापर, देवकी जैन, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे और माया दारूवाला की ओर से दाखिल की गई है. इसमें सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में SIT जांच और पांचों को जमानत की मांग की गई है. 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था और महाराष्ट्र पुलिस की केस डायरी भी ले ली थी.

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी, आनंद ग्रोवर और वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट से दखल देने और SIT जांच कराने का आग्रह किया तो महाराष्ट्र सरकार की ओर से ASG तुषार मेहता और शिकायतकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने इसका विरोध किया. ASG तुषार मेहता ने बरामद चिट्ठियां व दस्तावेज दिखाते हुए कहा कि इनसे साफ है कि वे एक साजिश का हिस्सा हैं. वहीं हरीश साल्वे ने कहा कि इस मामले में SIT जांच की जरूरत नहीं है. ऐसा आदेश 2G जैसे मामलों में दिया जाता है.

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एक तरफ जहां सिंघवी ने टीवी चैनलों का जिक्र किया कि कैसे चैनलों को यह चिट्ठियां पहले मिलीं और ये झूठी हैं. सुधा भारद्वाज हिंदीभाषी हैं लेकिन उनकी कथित चिट्ठी में मराठी शब्दों का इस्तेमाल हुआ. जस्टिस चंद्रचूड़ ने भी सहमति जताई कि कुछ शब्द खास हैं जो मराठी में ही इस्तेमाल होते हैं. हालांकि साल्वे ने कहा कि ये गंभीर मसला है कि चैनल के पास ये चिट्ठी कैसे पहुंची. लेकिन पीठ ने कहा कि मूल मुद्दे पर बहस होनी चाहिए.

राज्य सरकार की ओर से पेश ASG तुषार मेहता ने जब पुलिस की केस डायरी सीलबंद कवर में दी और कहा कि ये खुद व्याख्यात्मक है तो चीफ जस्टिस ने कहा कि अपना सर्वश्रेष्ठ दस्तावेज दिखाएं. तुषार मेहता ने कहा कि पांचों आरोपियों को पुख्ता सबूतों के आधार पर गिरफ्तार किया गया. 6 महीने की जांच के बाद ये कदम उठाया गया. फोन और लेपटॉप जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स सबूत जब्त किए गए जिन्हें फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है. सब कुछ केस डायरी में दर्ज है और संबंधित कोर्ट को हर कदम की जानकारी दी गई. ये कैसे कहा जा सकता है कि हम उन्हें फंसा रहे हैं.

इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि कोर्ट को सब बाज़ जैसी नजर से देखना है. याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, ये मुद्दा नहीं उठाया जाना चाहिए. हम चाहते हैं कि कोर्ट के कंधे मजबूत हों और कोई प्रतिबंध न हो. सिर्फ अनुमान के आधार पर किसी की स्वतंत्रता का बलिदान नहीं दिया जा सकता. उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था बिगाड़ने व सरकार को उखाड़ फेंकने और असहमति में अंतर होता है.

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वहीं पुलिस के सामने शिकायत करने वाले की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि आपराधिक कृत्य और असहमति के बीच अंतर होता है. पुलिस जांच आगे बढ़ने की इजाजत दी जानी चाहिए. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि आरोपियों के नाम दोनों FIR में नहीं हैं. न ही वे यलगार परिषद की बैठक में मौजूद थे. उसमें सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जज शामिल थे.

सिंघवी ने कहा कि वरवर पर 25 मामले दर्ज हुए जिसमें सभी में वे बरी हो गए. गोंजाल्विस पर 18 मामले हुए जिनमें 17 में वे बरी हो गए. एक मामले में सजा हुई जिसमें अपील लंबित है. इसलिए इसकी जांच SIT से होनी चाहिए. पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने भी इसके पक्ष में दलीलें दीं और कहा कि मामले की निष्पक्ष जांच जरूरी है. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से आनंद ग्रोवर, राजीव धवन और प्रशांत भूषण ने भी दलीलें पेश कीं.

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दरअसल 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि वो पुणे पुलिस के दस्तावेज देखकर तय करेगा कि इस मामले की जांच SIT के आदेश दिए जाएं या नहीं. हाई वोल्टेज सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश ASG मनिंदर सिंह ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दखल का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि नक्सलवाद गंभीर समस्या है और ये देशभर में फैला है. निचली अदालत को ही ऐसे मामलों को सुनना चाहिए. तीसरे पक्ष द्वारा दाखिल याचिका पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गलत उदाहरण पेश करेगी.

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