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Exclusive : 'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा कैसे 3 महीने में हुई तैयार? मूर्तिकार ने बताया, CJI का कितना रोल

'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा के जरिए आम लोगों के बीच ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि कानून अंधा नहीं है. साथ ही तलवार की जगह संविधान रखना ये बताता है कि हर आरोपी के खिलाफ विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी.

Exclusive : 'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा कैसे 3 महीने में हुई तैयार? मूर्तिकार ने बताया, CJI का कितना रोल
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड के आदेश पर अदालतों में दिखने वाली 'न्याय की देवी' की मूर्ति में अहम बदलाव किए गए हैं. मूर्ति की आंखों पर पहले पट्टी बंधी रहती थी, लेकिन अब इसे खोल दिया गया है. नई मूर्ति बनाने वाले शिल्पकार विनोद गोस्वामी ने एनडीटीवी से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि तीन महीने की कड़ी मेहनत के बाद इस प्रतिमा को बनाया गया है.

विनोद गोस्वामी ने कहा कि मैं बहुत खुश हूं कि मुझे इस प्रतिमा को बनाने का अवसर मिला. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के दिशा-निर्देश और मार्गदर्शन में इस काम को पूरा किया गया. ये हमारे देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है.

शिल्पकार ने एनडीटीवी को बताया कि पहले की प्रतिमा में आंखों पर पट्टी बंधी थी, हाथों में तलवार लिए थी और गाउन पहना था. सीजेआई सर ने मुझसे कहा कि नई प्रतिमा कुछ ऐसी हो जो हमारे देश की धरोहर, संविधान और प्रतीक से जुड़ी हो. फिर सबसे पहले हमने एक ड्राइंग बनाई, इसके बाद एक छोटी प्रतिमा बनाई.

उन्होंने बताया कि सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ को मैंने वो प्रतिमा दिखाई तो उन्होंने अप्रूव कर दिया, फिर हमने बड़ी प्रतिमा बनाई. ये प्रतिमा साढ़े छह फीट की है. प्रतिमा का वजन सवा सौ किलो है. गाउन की जगह प्रतिमा को साड़ी का लिबास पहनाया गया है. प्रतिमा का निर्माण फाइबर ग्लास द्वारा किया गया है.

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विनोद गोस्वामी ने कहा कि हमें बताया गया था कि नई प्रतिमा में ना तो पट्टी बंधी होनी चाहिए और ना ही हाथों में तलवार होनी चाहिए. उसी के आधार पर हमने एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में संविधान रखा है. साथ ही गाउन की जगह भारतीय नारी की पहचान लिबास साड़ी रखी है. लगभग 70-75 साल बाद इसे बनाना मेरे लिए सौभाग्य की बात है.

नई प्रतिमा के जरिए संभवत: आम लोगों के बीच ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि कानून अंधा नहीं है. आमतौर पर पहले लोग इसी मूर्ति का हवाला देकर कहा करते थे कि कानून अंधा होता है. हालांकि पहले इस बंधी पट्टी का संदेश ये था कि न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अदालत मुंह देखकर फैसला नहीं सुनाती है, बल्कि हर व्यक्ति के लिए समान न्याय होता है.

साथ ही पहले न्याय की देवी की मूर्ति के बाएं हाथ में तलवार रहा करती थी. अब तलवार की जगह संविधान रखा गया है, जिससे ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि हर आरोपी के खिलाफ विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी. अदालत में लगी न्याय की देवी की मूर्ति ब्रिटिश काल से ही चलन में है, लेकिन अब इसमें बदलाव करके न्यायपालिका की छवि में समय के अनुरूप बदलाव की सराहनीय पहल की गई है.

मुख्य न्यायाधीश न्यायिक प्रक्रिया में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परिपाटी को बदलकर उसमें भारतीयता का रंग घोलने की पहल में जुटे हुए हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए ये कदम उठाया गया है. न्याय की मूर्ति में किए गए इन बदलावों के जरिए वो संविधान में समाहित समानता के अधिकार को जमीनी स्तर पर लागू करना चाहते हैं. इन बदलावों का चौतरफा स्वागत किया जा रहा है.

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