सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के डीजी (जेल) को नोटिस जारी किया है. इस नोटिस में अदालत के आदेश के बावजूद करीब दो दशक से जेल में बंद दो कैदियों को समय पूर्व रिहाई पर विचार नहीं करने की बात कही गई है. इस मामले की सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मोहम्मद नुरुला और आलोक मिश्रा द्वारा दायर अवमानना याचिका पर महानिदेशक(जेल) को अपना पक्ष रखने के लिए कहा है.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ऋषि मल्होत्रा ने पीठ से कहा कि गत वर्ष 14 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अथॉरिटी को तीन महीने के भीतर दोनों याचिकाकर्ताओं की समय पूर्व रिहाई पर एक अगस्त 2018 की नीति के तहत विचार करने का आदेश दिया था. मल्होत्रा ने कहा कि इतने दिनों के बाद भी उनकी समय पूर्व रिहाई के आवेदनों पर विचार नहीं किया गया है. बता दें कि मोहम्मद नुरुला करीब 21 वर्षों से वाराणसी जेल में जबकि आलोक मिश्रा करीब 22 वर्षों से फतेहगढ़ की जेल में बंद है.
पिछले साल 14 मार्च इस अदालत ने प्रतिवादी, यूपी राज्य को तीन महीने की अवधि के भीतर समय से पहले रिहाई के लिए याचिकाकर्ताओं के मामले पर विचार करने का निर्देश दिया था.हालांकि, 48 याचिकाकर्ताओं में से अधिकांश को रिहाई की अनुमति दी गई है, बचे मामलों में विचार नहीं किया गया. इसके बाद, एक अवमानना याचिका में अदालत ने 21 अक्टूबर 2022 को 6 सप्ताह में मामलों पर विचार करने के लिए एक आदेश पारित किया था. जिसके बावजूद भी दिए गए आदेश का पालन नहीं किया जा सका.
बता दें कि इससे पहले, अदालत ने उत्तर प्रदेश के महानिदेशक जेल को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने के सख्त निर्देश जारी किए थे. अदालत ने कहा था कि किसी अन्य मामले में समय से पहले रिहाई या छूट के आवेदनों पर विधिवत विचार किया जाए. इसने डीजी जेल से एक हलफनामा भी मांगा था. जिसमे पूछा गया था कि क्या राज्य ने 2022 के उस फैसले का अनुपालन किया है, जिसमें 2018 की नीति के अनुरूप कुछ कैदियों की समय से पहले रिहाई पर विचार करने का निर्देश दिया गया था.
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