SC ने गढ़ी मैरिटल रेप की नई परिभाषा : पति द्वारा जबरन यौन संबंध से गर्भवती महिला भी रेप पीड़िता

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आज अपने फैसले में मैरिटल रेप (marital rape) की नई परिभाषा दी है. कोर्ट ने कहा कि मैरिटल रेप साबित करने के लिए किसी आपराधिक कार्रवाई (criminal action) की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि पति द्वारा जबरन यौन संबंधों से गर्भवती महिला भी रेप पीड़िता की श्रेणी में आएगी.

SC ने गढ़ी मैरिटल रेप की नई परिभाषा : पति द्वारा जबरन यौन संबंध से गर्भवती महिला भी रेप पीड़िता

सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप को किया परिभाषित.

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)  ने आज अपने ऐतिहासिक फैसले में मैरिटल रेप को नये सिरे से परिभाषित किया है. कोर्ट ने कहा कि पति के द्वारा जबरन यौन संबंध से गर्भवती महिला भी रेप पीड़िता कहलाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मैरिटल रेप को साबित करने के लिए किसी आपराधिक कार्रवाई (criminal action) की जरूरत नहीं है. पति द्वारा जबरन यौन संबंधों से गर्भवती महिला भी रेप पीड़िता की श्रेणी में आएगी. ऐसे गर्भ को रखना है या नहीं, यह तय करने का एकाधिकार पत्नी या महिला को होगा. कोर्ट ने कहा कि विवाहित महिला को शारीरिक स्वायत्तता, कानूनी और सामाजिक संरक्षण देना ही होगा. 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि एमटीपी एक्ट की धारा 3(2)(b) 20 से 24 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने का अधिकार देता है. लेकिन अभी तक सिर्फ रेप पीड़िताओं को अपनी मर्जी से अनचाहे या बलात्कार से हुए गर्भ को समाप्त कराने का अधिकार था, लेकिन अब विवाहित महिला भी विवाहित जीवन में पति के जबरन संबंध बनाने से हुए अनचाहे गर्भ को गिराने या रखने का फैसला कर सकती है. यानी अब रेप पीड़िता की श्रेणी में पति से पीड़ित विवाहित महिला भी हो सकती है.
 
विवाहित महिला को ये अधिकार इसलिए दिया जा रहा है, क्योंकि गर्भ धारण करने के दौरान महिला के शरीर में कई जैविक परिवर्तन होते हैं. भ्रूण महिला के शरीर से ही आंतरिक खुराक पाता है. शारीरिक और मानसिक भावों से जुड़ा रहता है. लिहाजा गर्भधारण के दौरान अगर पति महिला को शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना दे तो इसका सीधा असर संतान पर पड़ता है. लिहाजा महिला को शारीरिक, कानूनी और सामाजिक स्वायत्तता देने से उसे इस प्रताड़ना से संरक्षण मिल जाएगा. 

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट और रूल्स के तहत बलात्कार से आशयों में "मेरिटल रेप" को भी शामिल करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि जिन पत्नियों ने पतियों द्वारा जबरन यौन संबंध बनाने के बाद गर्भधारण किया है, वे भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के रूल 3बी (ए) में वर्णित "यौन उत्पीड़न या बलात्कार या पीड़िता" के दायरे में आएंगी. विवाहित महिलाएं भी यौन उत्पीड़न या रेप पीड़ित कैटेगरी का हिस्सा बन सकती हैं.

बलात्कार शब्द यह अर्थ बताया 
बलात्कार शब्द का सामान्य अर्थ सहमति के बिना या इच्छा के खिलाफ किसी व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाना है. भले ही इस प्रकार बना जबरन संबंध विवाह के संदर्भ में हो या न हो, एक महिला पति द्वारा किए गए बिना सहमति बनाए गए यौन संबंधों  के परिणामस्वरूप गर्भवती हो सकती है. हम चूक जाएंगे अगर यह स्वीकार नहीं करेंगे कि अंतरंग साथी द्वारा की जाने वाली हिंसा वास्तविकता है और रेप का रूप ले सकती है.

सिर्फ अजनबी ही यौन अपराध करता है यह धारणा गलत है 
कोर्ट ने कहा कि यह गलत धारणा है कि सिर्फ अजनबी ही यौन और लिंग आधारित हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं, यह समझ खेदजनक है. यौन और लिंग आधारित हिंसा परिवार के संदर्भ में अपने सभी रूपों में लंबे समय से महिलाओं के जीवित अनुभवों का एक हिस्सा रही है. मौजूदा भारतीय कानूनों में पारिवारिक हिंसा के विभिन्न रूपों को पहले से ही मान्यता दी गई है.

हमने IPC की धारा 375 के अपवाद 2 को भी संक्षेप में छुआ है. इस धारा के बावजूद, नियम 3 बी (ए) में "यौन हमला" या " रेप" शब्द के अर्थ में पति का पत्नी पर किया गया यौन हमला या बलात्कार शामिल है. पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि केवल MTP अधिनियम के उद्देश्य के लिए बलात्कार के आशय में वैवाहिक बलात्कार को शामिल किया जा रहा है. अदालत ने यह भी कहा कि MTP अधिनियम के तहत गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए एक महिला को बलात्कार या यौन हमला होने को साबित करने की आवश्यकता नहीं है.

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किसी को दोषी बनाए बगैर महिलाएं करा सकेंगी गर्भपात 
गर्भपात के लिए जरूरी नहीं कि महिलाएं यौन उत्पीड़न या रेप के तथ्य को साबित करने के लिए औपचारिक कानूनी कार्यवाही का सहारा लें. गर्भवती महिलाओं के गर्भपात का उपयोग करने से पहले अपराधी को IPC या किसी अन्य आपराधिक कानून के तहत दोषी ठहराए जाने की आवश्यकता नहीं है.दरअसल सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रही है, जो मेरिटल रेप को बलात्कार के अपराध से छूट देता है.