गलत तरीके से केस में फंसाए लोगों को मुआवज़ा देने के लिए गाइडलाइंस बनाने का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा आदेश दिया गया तो ये और जटिलता पैदा करेगा. अदालत ऐसे मामलों के लिए अपनी प्रक्रियाओं का इस्तेमाल नहीं कर सकती. ये मामला कानून बनाने की प्रकृति का है.  इसे संबंधित एजेंसियों पर कार्रवाई करने के लिए छोड़ा जाता है. हम हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं देखते हैं.

गलत तरीके से केस में फंसाए लोगों को मुआवज़ा देने के लिए गाइडलाइंस बनाने का आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार

खास बातें

  • ऐसा आदेश जटिलता पैदा करेगा.
  • ये मामला कानून बनाने की प्रकृति का है
  • हम हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं देखते

गलत तरीके से केस में फंसाए गए लोगों को मुआवजा के लिए गाइडलाइंस बनाने के आदेश देने से सुप्रीम कोर्ट (Suprme Court) ने इंकार कर दिया है. कोर्ट ने बीजेपी नेता कपिल मिश्रा और अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई बंद की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा आदेश दिया गया तो ये और जटिलता पैदा करेगा. अदालत ऐसे मामलों के लिए अपनी प्रक्रियाओं का इस्तेमाल नहीं कर सकती. ये मामला कानून बनाने की प्रकृति का है.  इसे संबंधित एजेंसियों पर कार्रवाई करने के लिए छोड़ा जाता है. हम हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं देखते हैं.

वहीं नोटिस के मुद्दे पर केंद्र की ओर से जवाबी हलफनामे में यह कहा गया कि कानून आयोग की 277वीं रिपोर्ट की प्रतियां परिचालित की गई थीं और कुछ राज्यों ने अभी तक अपनी प्रतिक्रिया दर्ज नहीं की है. बीजेपी नेता कपिल मिश्रा और अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने सुनवाई की. पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील विजय हंसरिया ने कहा था कि मौजूदा तंत्र गलत तरीके से अभियोजन पक्ष से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं है.  याचिका में केंद्र सरकार को यह निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया है कि वह आपराधिक मामलों में झूठी शिकायतें दर्ज कराने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और इस तरह के गलत आरोप लगाए जाने पर पीड़ितों के लिए मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश बनाए जाने की मांग की गई है.

23 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने गलत तरीके से केस में फंसाए गए लोगों को मुआवजा के लिए गाइडलाइंस बनाए जाने का निर्देश की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट में यूपी के विष्णु तिवारी केस का हवाला दिया गया, जिन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी करते हुए कहा कि उन्हें आपसी झगड़े के कारण रेप और SC-ST केस में फंसाया गया.  वह 20 साल जेल में रहा था. सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई थी कि केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि वह ऐसे पीडि़तों को मुआवजा देने के लिए गाइडलाइंस तैयार करें और इस बाबत लॉ कमिशन की रिपोर्ट को लागू करें. 

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